show episodes
 
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Pratidin Ek Kavita

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रोज
 
कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
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Kahani Train

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मासिक
 
कहानी ट्रेन यानी बच्चों की कहानियाँ, सीधे आपके फ़ोन तक। यह पहल है आज के दौर के बच्चों को साहित्य और किस्से कहानियों से जोड़ने की। प्रथम, रेख़्ता व नई धारा की प्रस्तुति।
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Khule Aasmaan Mein Kavita

Nayi Dhara Radio

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मासिक
 
यहाँ हम सुनेंगे कविताएं – पेड़ों, पक्षियों, तितलियों, बादलों, नदियों, पहाड़ों और जंगलों पर – इस उम्मीद में कि हम ‘प्रकृति’ और ‘कविता’ दोनों से दोबारा दोस्ती कर सकें। एक हिन्दी कविता और कुछ विचार, हर दूसरे शनिवार... Listening to birds, butterflies, clouds, rivers, mountains, trees, and jungles - through poetry that helps us connect back to nature, both outside and within. A Hindi poem and some reflections, every alternate Saturday...
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Nayi Dhara Samvaad Podcast

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मासिक
 
ये है नई धारा संवाद पॉडकास्ट। ये श्रृंखला नई धारा की वीडियो साक्षात्कार श्रृंखला का ऑडियो वर्जन है। इस पॉडकास्ट में हम मिलेंगे हिंदी साहित्य जगत के सुप्रसिद्ध रचनाकारों से। सीजन 1 में हमारे सूत्रधार होंगे वरुण ग्रोवर, हिमांशु बाजपेयी और मनमीत नारंग और हमारे अतिथि होंगे डॉ प्रेम जनमेजय, राजेश जोशी, डॉ देवशंकर नवीन, डॉ श्यौराज सिंह 'बेचैन', मृणाल पाण्डे, उषा किरण खान, मधुसूदन आनन्द, चित्रा मुद्गल, डॉ अशोक चक्रधर तथा शिवमूर्ति। सुनिए संवाद पॉडकास्ट, हर दूसरे बुधवार। Welcome to Nayi Dhara Samvaa ...
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THE SHIVANKIT VOICE

Shivankit Tiwari

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रोज+
 
आप सभी का स्वागत है! कृपया सुनें और अपना प्यार दे❤️🌻 This Show Presents Only Poetry,Stories and Many more Hindi Literature.
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Nayidhara Ekal

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मासिक+
 
साहित्य और रंगकर्म का संगम - नई धारा एकल। इस शृंखला में अभिनय जगत के प्रसिद्ध कलाकार, अपने प्रिय हिन्दी नाटकों और उनमें निभाए गए अपने किरदारों को याद करते हुए प्रस्तुत करते हैं उनके संवाद और उन किरदारों से जुड़े कुछ किस्से। हमारे विशिष्ट अतिथि हैं - लवलीन मिश्रा, सीमा भार्गव पाहवा, सौरभ शुक्ला, राजेंद्र गुप्ता, वीरेंद्र सक्सेना, गोविंद नामदेव, मनोज पाहवा, विपिन शर्मा, हिमानी शिवपुरी और ज़ाकिर हुसैन।
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Kahani Jaani Anjaani - Stories in Hindi

Piyush Agarwal

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मासिक
 
***Winner of Best Storytelling Fiction Podcast 2022 by Hubhopper*** Kahani Jaani Anjaani is a Hindi Stories (kahaani) podcast series narrated by theatre and voiceover artist, Piyush Agarwal. Following the mission of making sure no stories get lost he takes you to the world of Beautiful Hindi narrations & emotions. So stay tuned for new and old Hindi stories - every Friday! His weekly dramatized narrations of lesser known stories from popular authors like Premchand, Bhishm Sahani, Mannu Bhand ...
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Premchand Ki Ansuni Kahaniyaan

Piyush Agarwal

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मासिक
 
Munshi Premchand known as Katha Samrat of Hindi Literature. Out of the stories and novels he has written we know a very few of famous stories & novels written by him like Godaan, Nirmala, Bade Bhaisahab, kafan, buddhi Kaaki etc. But these are not the only stories which define his writing. Out of the 300 stories written by Munshi Premchand in Hindi, still there are stories which are unheard & unread. Indipodcaster presents unheard Premchand stories 'Premchand Ki Ansuni Kahaniyan' where member ...
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तुलसीदास जी का जन्म, आज से लग-भग 490 बरस पहले, 1532 ईसवी में उत्तर प्रदेश के एक गाँव में हुआ और उन्होंने अपने जीवन के अंतिम पल काशी में गुज़ारे। पैदाइश के कुछ वक़्त बाद ही तुलसीदास महाराज की वालिदा का देहांत हो गया, एक अशुभ नक्षत्र में पैदा होने की वजह से उनके पिता उन्हें अशुभ समझने लगे, तुलसीदास जी के जीवन में सैकड़ों परेशानियाँ आईं लेकिन हर परेशानी का रास्ता प्रभु श्री राम की भक्ति पर आकर खत्म हुआ। राम भक्ति की छाँव तले ही तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस और हनुमान चालीसा जैसी नायाब रचनाओं को ...
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Udaya Raj Sinha Ki Rachnayein Podcast

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साप्ताहिक
 
स्वागत है आपका नई धारा रेडियो की एक और पॉडकास्ट श्रृंखला में। यह श्रृंखला नई धारा के संस्थापक श्री उदय राज सिंह जी के साहित्य को समर्पित है। खड़ी बोली प्रसिद्ध गद्य लेखक राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह के पुत्र उदय राज सिंह ने अपने पिता की साहित्यिक धरोहर को आगे बढ़ाया। उन्होंने अपने जीवनकाल में बहुत से उपन्यास, कहानियाँ, लघुकथाएँ, नाटक आदि लिखे। सन 1950 में उदय राज सिंह जी ने नई धारा पत्रिका की स्थापना की जो आज 70+ वर्षों बाद भी साहित्य की सेवा में समर्पित है। उदयराज जी के इस जन्मशती वर्ष में हम उ ...
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it's fanindra bhardwaj's show

Fanindra bhardwaj

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साप्ताहिक
 
"sham e shayari" is a captivating podcast that takes you on a poetic journey through the rich and expressive world of Hindi literature. With each episode, Fanindra Bhardwaj, a talented poet and voice artist, skillfully weaves together words and emotions to create a truly immersive experience. In this podcast, you'll encounter a wide range of themes, from love and heartbreak to nature and spirituality. Fanindra's poetry beautifully captures the essence of these emotions, allowing listeners to ...
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Navbharat Gold from the house of BCCL (Times Group), is a first of a kind Hindi Podcast Infotainment Service in the world, offering an unmatched range and quality of content across multiple genres such as Hindi audio news, current affairs, science, audio-documentaries, sports, economy, history, spirituality, art and literature, life lessons, relationships and much more. To listen to a much wider range of such exclusive Hindi podcasts, visit us at www.navbharatgold.com
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show series
 
कवि का घर | रामदरश मिश्र गेन्दे के बड़े-बड़े जीवन्त फूल बेरहमी से होड़ लिए गए और बाज़ार में आकर बिकने लगे बाज़ार से ख़रीदे जाकर वे पत्थर के चरणों पर चढ़ा दिए गए फिर फेंक दिए गए कूड़े की तरह मैं दर्द से भर आया और उनकी पंखुड़ियाँ रोप दीं अपनी आँगन-वाटिका की मिट्टी में अब वे लाल-लाल, पीले-पीले, बड़े-बड़े फूल बनकर दहक रहे हैं मैं उनके बीच बैठकर उनसे सम…
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तुमने मुझे | शमशेर बहादुर सिंह तुमने मुझे और गूँगा बना दिया एक ही सुनहरी आभा-सी सब चीज़ों पर छा गई मै और भी अकेला हो गया तुम्हारे साथ गहरे उतरने के बाद मैं एक ग़ार से निकला अकेला, खोया हुआ और गूँगा अपनी भाषा तो भूल ही गया जैसे चारों तरफ़ की भाषा ऐसी हो गई जैसे पेड़-पौधों की होती है नदियों में लहरों की होती है हज़रत आदम के यौवन का बचपना हज़रत हौवा क…
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आदत | गुलज़ार साँस लेना भी कैसी आदत है जिए जाना भी क्या रिवायत है कोई आहट नहीं बदन में कहीं कोई साया नहीं है आँखों में पाँव बेहिस हैं चलते जाते हैं इक सफ़र है जो बहता रहता है कितने बरसों से कितनी सदियों से जिए जाते हैं जिए जाते हैं आदतें भी अजीब होती हैंद्वारा Nayi Dhara Radio
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औरतें | शुभा औरतें मिट्टी के खिलौने बनाती हैं मिट्टी के चूल्हे और झाँपी बनाती हैं औरतें मिट्टी से घर लीपती हैं मिट्टी के रंग के कपड़े पहनती हैं और मिट्टी की तरह गहन होती हैं औरतें इच्छाएँ पैदा करती हैं और ज़मीन में गाड़ देती हैं औरतों की इच्छाएँ बहुत दिनों में फलती हैंद्वारा Nayi Dhara Radio
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स्वप्न में पिता | ग़ुलाम मोहम्मद शेख़ बापू, कल तुम फिर से दिखे घर से हज़ारों योजन दूर यहाँ बाल्टिक के किनारे मैं लेटा हूँ यहीं, खाट के पास आकर खड़े आप इस अंजान भूमि पर भाइयों में जब सुलह करवाई तब पहना था वही थिगलीदार, मुसा हुआ कोट, दादा गए तब भी शायद आप इसी तरह खड़े होंगे अकेले दादा का झुर्रीदार हाथ पकड़। आप काठियावाड़ छोड़कर कब से यहाँ क्रीमिया के…
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उस दिन | रूपम मिश्र उस दिन कितने लोगों से मिली कितनी बातें , कितनी बहसें कीं कितना कहा ,कितना सुना सब ज़रूरी भी लगा था पर याद आते रहे थे बस वो पल जितनी देर के लिए तुमसे मिली विदा की बेला में हथेली पे धरे गये ओठ देह में लहर की तरह उठते रहे कदम बस तुम्हारी तरफ उठना चाहते थे और मैं उन्हें धकेलती उस दिन जाने कहाँ -कहाँ भटकती रही वे सारी जगहें मेरी नहीं …
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मनुष्य - विमल चंद्र पाण्डेय मुझे किसी की मृत्यु की कामना से बचना है चाहे वो कोई भी हो चाहे मैं कितने भी क्रोध में होऊँ और समय कितना भी बुरा हो सामने वाला मेरा कॉलर पकड़ कर गालियाँ देता हुआ क्यों न कर रहा हो मेरी मृत्यु का एलान मुझे उसकी मृत्यु की कामना से बचना है यह समय मौतों के लिए मुफ़ीद है मनुष्यों की अकाल मौत का कोलाज़ रचता हुआ फिर भी मैं मरते हु…
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अपने प्रेम के उद्वेग में | अज्ञेय अपने प्रेम के उद्वेग में मैं जो कुछ भी तुमसे कहता हूँ, वह सब पहले कहा जा चुका है। तुम्हारे प्रति मैं जो कुछ भी प्रणय-व्यवहार करता हूँ, वह सब भी पहले हो चुका है। तुम्हारे और मेरे बीच में जो कुछ भी घटित होता है उससे एक तीक्ष्ण वेदना-भरी अनुभूति मात्र होती है—कि यह सब पुराना है, बीत चुका है, कि यह अभिनय तुम्हारे ही जी…
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तुम | अदनान कफ़ील दरवेश जब जुगनुओं से भर जाती थी दुआरे रखी खाट और अम्मा की सबसे लंबी कहानी भी ख़त्म हो जाती थी उस वक़्त मैं आकाश की तरफ़ देखता और मुझे वह ठीक जुगनुओं से भरी खाट लगता कितना सुंदर था बचपन जो झाड़ियों में चू कर खो गया मैं धीरे-धीरे बड़ा हुआ और जवान भी और तुम मुझे ऐसे मिले जैसे बचपन की खोई गेंद मैंने तुम्हें ध्यान से देखा मुझे अम्मा की याद आ…
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प्रेम के प्रस्थान | अनुपम सिंह सुनो, एक दिन बन्द कमरे से निकलकर हम दोनों पहाड़ों की ओर चलेंगे या फिर नदियों की ओर नदी के किनारे, जहाँ सरपतों के सफ़ेद फूल खिले हैं। या पहाड़ पर जहाँ सफ़ेद बर्फ़ उज्ज्वल हँसी-सी जमी है दरारों में और शिखरों पर काढेंगे एक दुसरे की पीठ पर रात का गाढ़ा फूल इस बार मैं नहीं तुम मेरे बाजुओं पर रखना अपना सिर मैं तुम्हें दूँगी…
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धूप भी तो बारिश है | शहंशाह आलम धूप भी तो बारिश है बारिश बहती है देह पर धूप उतरती है नेह पर मेरे संगीतज्ञ ने मुझे बताया धूप है तो बारिश है बारिश है तो धूप है मैंने जिससे प्रेम किया उसको बताया तुम हो तो ताप और जल दोनों है मेरे अंदर।द्वारा Nayi Dhara Radio
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जो उलझकर रह गई है फ़ाइलों के जाल में | अदम गोंडवी जो उलझकर रह गई है फ़ाइलों के जाल में गाँव तक वह रौशनी आएगी कितने साल में बूढ़ा बरगद साक्षी है किस तरह से खो गई रमसुधी की झोंपड़ी सरपंच की चौपाल में खेत जो सीलिंग के थे सब चक में शामिल हो गए हमको पट्टे की सनद मिलती भी है तो ताल में जिसकी क़ीमत कुछ न हो इस भीड़ के माहौल में ऐसा सिक्का ढालिए मत जिस्म की टकसा…
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लड़ाई के समाचार | नवीन सागर लड़ाई के समाचार दूसरे सारे समाचारों को दबा देते हैं छा जाते हैं शांति के प्रयासों की प्रशंसा करते हुए हम अपनी उत्तेजना में मानो चाहते हैं युद्ध जारी रहे। फिर अटकलों और सरगर्मियों का दौर जिसमें फिर युद्ध छिड़ने की गुंजाइश दिखती है। युद्ध रोमांचित करता है! ध्वस्त आबादियों के चित्र देखने का ढंग बाद में शर्मिंदा करता है अकेल…
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खाना बनाती स्त्रियाँ | कुमार अम्बुज जब वे बुलबुल थीं उन्होंने खाना बनाया फिर हिरणी होकर फिर फूलों की डाली होकर जब नन्ही दूब भी झूम रही थी हवाओं के साथ जब सब तरफ़ फैली हुई थी कुनकुनी धूप उन्होंने अपने सपनों को गूँधा हृदयाकाश के तारे तोड़कर डाले भीतर की कलियों का रस मिलाया लेकिन आख़िर में उन्हें सुनाई दी थाली फेंकने की आवाज़ आपने उन्हें सुंदर कहा तो …
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एक बहुत ही तन्मय चुप्पी | भवानीप्रसाद मिश्र एक बहुत ही तन्मय चुप्पी ऐसी जो माँ की छाती में लगाकर मुँह चूसती रहती है दूध मुझसे चिपककर पड़ी है और लगता है मुझे यह मेरे जीवन की लगभग सबसे निविड़ ऐसी घड़ी है जब मैं दे पा रहा हूँ स्वाभाविक और सुख के साथ अपने को किसी अनोखे ऐसे सपने को जो अभी-अभी पैदा हुआ है और जो पी रहा है मुझे अपने साथ-साथ जो जी रहा है मुझ…
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देना | नवीन सागर जिसने मेरा घर जलाया उसे इतना बड़ा घर देना कि बाहर निकलने को चले पर निकल न पाए जिसने मुझे मारा उसे सब देना मृत्यु न देना जिसने मेरी रोटी छीनी उसे रोटियों के समुद्र में फेंकना और तूफ़ान उठाना जिनसे मैं नहीं मिला उनसे मिलवाना मुझे इतनी दूर छोड़ आना कि बराबर संसार में आता रहूँ अगली बार इतना प्रेम देना कि कह सकूँ प्रेम करता हूँ और वह मे…
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इक बार कहो तुम मेरी हो | इब्न-ए-इंशा हम घूम चुके बस्ती बन में इक आस की फाँस लिए मन में कोई साजन हो कोई प्यारा हो कोई दीपक हो, कोई तारा हो जब जीवन रात अँधेरी हो इक बार कहो तुम मेरी हो जब सावन बादल छाए हों जब फागुन फूल खिलाए हों जब चंदा रूप लुटाता हो जब सूरज धूप नहाता हो या शाम ने बस्ती घेरी हो इक बार कहो तुम मेरी हो हाँ दिल का दामन फैला है क्यूँ गोर…
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मेरे एकांत का प्रवेश-द्वार | निर्मला पुतुल यह कविता नहीं मेरे एकांत का प्रवेश-द्वार है यहीं आकर सुस्ताती हूँ मैं टिकाती हूँ यहीं अपना सिर ज़िंदगी की भाग-दौड़ से थक-हारकर जब लौटती हूँ यहाँ आहिस्ता से खुलता है इसके भीतर एक द्वार जिसमें धीरे से प्रवेश करती मैं तलाशती हूँ अपना निजी एकांत यहीं मैं वह होती हूँ जिसे होने के लिए मुझे कोई प्रयास नहीं करना प…
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लफ़्ज़ों का पुल | निदा फ़ाज़ली मस्जिद का गुम्बद सूना है मंदिर की घंटी ख़ामोश जुज़दानों में लिपटे आदर्शों को दीमक कब की चाट चुकी है रंग गुलाबी नीले पीले कहीं नहीं हैं तुम उस जानिब मैं इस जानिब बीच में मीलों गहरा ग़ार लफ़्ज़ों का पुल टूट चुका है तुम भी तन्हा मैं भी तन्हाद्वारा Nayi Dhara Radio
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रामायण में महाभारत | अवतार एनगिल रविवार की सुबह उस औरत ने बड़ी मुश्किल से पति और बच्चों को जगाया किसी को ब्रश किसी को बनियान किसी को तौलिया थमाया चूल्हे के सामने खड़ी जैसे चौखटे में जड़ी बड़े के लिए लिए परांठे छोटों को ऑमलेट ’उनके’ लिए कम नमक वाला सासु के लिए नरम ससुर के लिए गरम अलग अलग अलग नाश्ते बना रही है और उसकी सासु माँ चौपाईयाँ गा रही है टी-व…
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तुम्हारे बग़ैर लड़ना | विभाग वैभव तुम्हारे जाने के बाद मैं राह के पत्थर जितना अकेला रहा फिर एक दिन सिसकियों को एक खाली कैसेट में डालकर किताबों के बीच छिपा दिया बहुत से लोग थे जिन्हें फूलों की ज़रुरत थी मैंने माली का काम किया किसी कमज़ोर के खेत का पानी किसी ने लाठी के दम पर काट लिया दोस्तों को जुटाया हड्डियों को चूम लेने वाली सर्दियों की रातों में घुटने…
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सितारों से उलझता जा रहा हूँ | फ़िराक़ गोरखपुरी सितारों से उलझता जा रहा हूँ शब-ए-फ़ुरक़त बहुत घबरा रहा हूँ यक़ीं ये है हक़ीक़त खुल रही है गुमाँ ये है कि धोखे खा रहा हूँ इन्ही में राज़ हैं गुल-बारियों के मै जो चिंगारियाँ बरसा रहा हूँ तेरे पहलू में क्यों होता है महसूस कि तुझसे दूर होता जा रहा हूँ जो उलझी थी कभी आदम के हाथों वो गुत्थी आज तक सुलझा रहा हू…
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आपके लिए | अजय दुर्ज्ञेय आप यहां से जाइये! आप जब मेरी कविताएँ सुनेंगे तो ऐसा लगेगा कि जैसे कोई दशरथ-मांझी पहाड़ पर बजा रहा हो हथौडे मैं जब बोलूंगा तो आपको लगेगा कि मैं आपके कपड़े उतार रहा हूँ और न केवल उतार रहा हूँ बल्कि उन्हीं कपड़ों से अपनी विजय पताका बना रहा हूँ मैं जब अपने हक़ की कविता पढ़ंगा तो आपको लगेगा कि छीन रहा हूँ आपकी गद्दी, छीन रहा हूँ…
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जब तेरी समुंदर आँखों में | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ये धूप किनारा शाम ढले मिलते हैं दोनों वक़्त जहाँ जो रात न दिन जो आज न कल पल-भर को अमर पल भर में धुआँ इस धूप किनारे पल-दो-पल होंटों की लपक बाँहों की छनक ये मेल हमारा झूठ न सच क्यूँ रार करो क्यूँ दोश धरो किस कारण झूठी बात करो जब तेरी समुंदर आँखों में इस शाम का सूरज डूबेगा सुख सोएँगे घर दर वाले और राही अपनी …
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कभी कभी जीवन में ऐसे भी क्षण आये | लक्ष्मीशंकर वाजपेयी कभी कभी जीवन में ऐसे भी कुछ क्षण आये कहना चाहा पर होठों से बोल नहीं फूटे। महज़ औपचारिकता अक्सर होठों तक आयी रहा अनकहा जो उसको, बस नज़र समझ पायी कभी कभी तो मौन ढल गया जैसे शब्दों में और शब्द कोशों वाले सब शब्द लगे झूठे कहना चाहा पर होठों से शब्द नही फूटे। जिनसे न था खून का नाता, रिश्तों का बंधन …
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जगह | विश्वनाथ प्रसाद तिवारी खड़े-खड़े मेरे पाँव दुखने लगे थे थोड़ी-सी जगह चाहता था बैठने के लिए कलि को मिल गया था राजा परीक्षेत का मुकुट मैं बिलबिलाता रहा कोने-अँतरे जगह, हाय जगह सभी बेदखल थे अपनी अपनी जगह से रेल में मुसाफिरों के लिए गुरुकुलों में वटुकों के लिए शहर में पशुओं आकाश में पक्षियों सागर में जलचरों पृथ्वी पर वनस्पतियों के लिए नहीं थी जगह…
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गर हम ने दिल सनम को दिया | नज़ीर अकबराबादी गर हम ने दिल सनम को दिया फिर किसी को क्या इस्लाम छोड़ कुफ़्र लिया फिर किसी को क्या क्या जाने किस के ग़म में हैं आँखें हमारी लाल ऐ हम ने गो नशा भी पिया फिर किसी को क्या आफी किया है अपने गिरेबाँ को हम ने चाक आफी सिया सिया न सिया फिर किसी को क्या उस बेवफ़ा ने हम को अगर अपने इश्क़ में रुस्वा किया ख़राब किया फिर…
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जिस का कोई इंतिज़ार न कर रहा हो/ अफ़ज़ाल अहमद सय्यद जिस का कोई इंतिज़ार न कर रहा हो उसे नहीं जाना चाहिए वापस आख़िरी दरवाज़ा बंद होने से पहले जिस का कोई इंतिज़ार न कर रहा हो उसे नहीं फिरना चाहिए बे-क़रार एक ख़ूबसूरत राहदारी में जब तक वो वीरान न हो जाए जिस का कोई इंतिज़ार न कर रहा हो उसे नहीं जुदा करना चाहिए ख़ून-आलूद पाँव से एक पूरा सफ़र जिस का कोई इं…
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एक लम्हे से दूसरे लम्हे तक | शहरयार एक आहट अभी दरवाज़े पे लहराई थी एक सरगोशी अभी कानों से टकराई थी एक ख़ुश्बू ने अभी जिस्म को सहलाया था एक साया अभी कमरे में मिरे आया था और फिर नींद की दीवार के गिरने की सदा और फिर चारों तरफ़ तेज़ हवा!!द्वारा Nayi Dhara Radio
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चिड़ीमार ने चिड़िया मारी | केदारनाथ अग्रवाल हे मेरी तुम! चिड़ीमार ने चिड़िया मारी; नन्नी-मुन्नी तड़प गई प्यारी बेचारी। हे मेरी तुम! सहम गई पौधों की सेना, पाहन-पाथर हुए उदास; हवा हाय कर ठिठकी ठहरी; पीली पड़ी धूप की देही। हे मेरी तुम! अब भी वह चिड़िया ज़िंदा है मेरे भीतर, नीड़ बनाये मेरे दिल में, सुबुक-सुबुक कर चूँ-चूँ करती चिड़ीमार से डरी-डरी-सी।…
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घरौंदे | अवतार एनगिल सागर किनारे खेलते दो बच्चों ने मिलकर घरौंदे बनाए देखते-देखते लहरों के थपेड़े आए उनके घर गिराए और भागकर सागर में जा छिपे माना, कि सदैव ऎसा हुआ तो भी किसी भी सागर के किसी भी तट पर कहीं भी कभी भी बच्चों ने घरौंदे बनाने बन्द नहीं किएद्वारा Nayi Dhara Radio
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गवेषणा | आकाश इस नुमाइश मे ईश्वर खोज रहा हूँ, बच्चों की मानिंद बौराया हुआ, इस दुकान से उस दुकान, उथली रौशनी की परिधि के भीतर, चमकीली भीड़ में घिरे, जहाँ केवल नीरसता और बीरानगी विद्यमान है। इस नुमाइश में, मैं अस्पष्ट अज्ञात लय में चलता हूँ, और घूमकर पाता हूँ स्वयं को निहत्था, निराश और पराजित। छान आया हूँ आस्था की चार दीवारी, लाँघ लिए हैं प्रकाश के प…
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चार और पंक्तियाँ | प्रभाकर माचवे जब दिल ने दिल को जान लिया जब अपना-सा सब मान लिया तब ग़ैर-बिराना कौन बचा यदि बचा सिर्फ़ तो मौन बचाद्वारा Nayi Dhara Radio
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नावें | नरेश सक्सेना नावों ने खिलाए हैं फूल मटमैले क्या उन्हें याद है कि वे कभी पेड़ बनकर उगी थीं नावें पार उतारती हैं ख़ुद नहीं उतरतीं पार नावें धार के बीचों-बीच रहना चाहती हैं तैरने न दे उस उथलेपन को समझती हैं ठीक-ठीक लेकिन तैरने लायक गहराई से ज़्यादा के बारे में कुछ भी नहीं जानतीं नावें बाढ़ उतरने के बाद वे अकसर मिलती हैं छतों या पेड़ों पर चढ़ी हुईं…
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सुंदरियों | नीलेश रघुवंशी मत आया करो तुम सम्मान समारोहों में तश्तरी, शाल और श्रीफल लेकर दीप प्रज्वलन के समय मत खड़ी रहा करो माचिस और दीया -बाती के संग मंच पर खड़े होकर मत बाँचा करो अभिनंदन पत्र उपस्थिति को अपनी सिर्फ मोहक और दर्शनीय मत बनने दिया करो सुंदरियो, तुम ऐसा करके तो देखो बदल जाएगी ये दुनिया सारी।…
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नहीं दूँगा नाम | नंदकिशोर आचार्य नहीं दूँगा तुम्हें कोई नाम। जूही की कली, कलगी बाजरे की छरहरी, या और कुछ। नाम देना पहचान को जड़ करना है मैं तो तुम्हें हर बार आविष्कृत करता हूँ। नाम देकर तुम्हे तीसरा नहीं करूँगा क्यों कि तुम सम्पूर्ण मेरी हो तुम्हें तुम ही कहूँगा कोई नाम नहीं दूँगा।द्वारा Nayi Dhara Radio
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रिश्तेदारी | लक्ष्मीशंकर वाजपेयी नहीं, यह भी संभव नहीं होता कि उनके शहर जाकर भी जाया ही न जाय रिश्तेदारों के घर अकसर कुछ एहसान लदे होते हैं उनके बुज़ुर्गों के अपने बुज़ुर्गों पर ऐसा कुछ न भी हो, तो ज़रूरी होता है लोकाचार निभाना किंतु अकसर खड़ी हो जाती है समस्या कि पत्नी की कुशलक्षेम, बच्चों की सुचारू पढ़ाई का विवरण दे देने तथा ’और क्या हाल-चाल हैं‘ का…
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अब्बास मियाँ | नीरव पंद्रह बीघे की खेती अकेले संभालने वाले अब्बास मियाँ हमारे हरवाहे थे हम काका कहते थे उन्हें हम सुनते बड़े हुए थे काका खानदानी शहनाई वादक थे अपने ज़माने में बहुत मशहूर दूर-दूर तक उनके सुरों की गूंज थी हमारे बाबा भी एक क़िस्सा बताते थे काशी में काका को एक दफे उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के सामने शहनाई बजाने का मौका मिला था और उस्ताद ने पी…
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क्या काम | मंगलेश डबराल आप दिखते हैं बहुत उदास आपको इस शहर में क्या काम आपके भीतर भरा है ग़ुस्सा आपको इस शहर में क्या काम आप सफलता नहीं चाहते नहीं चाहते ताक़त जो मिल जाए उसे छोड़ कुछ नहीं माँगते आपको इस शहर में क्या काम आप तुरंत लपकते नहीं और न खिलखिल करते हाथ जेब में डाले चलते रोज़ रात में पाते ख़ुद को लहूलुहान आपको इस शहर में क्या काम।…
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मेरा आँगन, मेरा पेड़ | जावेद अख़्तर मेरा आँगन कितना कुशादा फैला हुआ कितना बड़ा था जिसमें मेरे सारे खेल समा जाते थे और आँगन के आगे था वह पेड़ कि जो मुझसे काफ़ी ऊँचा था लेकिन मुझको इसका यकीं था जब मैं बड़ा हो जाऊँगा इस पेड़ की फुनगी भी छू लूँगा बरसों बाद मैं घर लौटा हूँ देख रहा हूँ ये आँगन कितना छोटा है पेड़ मगर पहले से भी थोड़ा ऊँचा है…
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बालश्रम| पवन सैन मासूम छणकु साफ़ कर रहा है चाय के झूठे गिलास इसलिए नहीं कि उसके नन्हें हाथ सरलता से पहुँच पा रहे हैं गिलास की तह तक बल्कि इसलिए कि उसके घर में भी हों झूठे बर्तन जो चमचमा रहे हैं एक अरसे से अन्न के अभाव में। दुकिया पहुँचा रहा है चाय ठेले से दुकानों, चौकों तक इसलिए नहीं कि वह नन्हें पाँवों से तेज़ दौड़ता है बल्कि इसलिए कि उसके शराबी पित…
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मकान की ऊपरी मंज़िल पर | गुलज़ार वो कमरे बंद हैं कब से जो चौबीस सीढ़ियां जो उन तक पहुँचती थी, अब ऊपर नहीं जाती मकान की ऊपरी मंज़िल पर अब कोई नहीं रहता वहाँ कमरों में, इतना याद है मुझको खिलौने एक पुरानी टोकरी में भर के रखे थे बहुत से तो उठाने, फेंकने, रखने में चूरा हो गए वहाँ एक बालकनी भी थी, जहां एक बेंत का झूला लटकता था मेरा एक दोस्त था, तोता, वो र…
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रचता वृक्ष | रघुवीर सहाय देखो वक्ष को देखो वह कुछ कर रहा है। किताबी होगा कवि जो कहेगा कि हाय पत्ता झर रहा है रूखे मुँह से रचता है वृक्ष जब वह सूखे पत्ते गिराता है ऐसे कि ठीक जगह जाकर गिरें धूप में छाँह में ठीक-ठीक जानता है वह उस अल्पना का रूप चलती सड़क के किनारे जिसे आँकेगा और जो परिवर्तन उसमें हवा करे उससे उदासीन है।…
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वर्ष के सबसे कठिन दिनों में | केदारनाथ सिंह अगर धीरे चलो वह तुम्हें छू लेगी दौड़ो तो छूट जाएगी नदी अगर ले लो साथ वह चलती चली जाएगी कहीं भी यहाँ तक - कि कबाड़ी की दुकान तक भी छोड़ दो तो वही अंधेरे में करोड़ों तारों की आँख बचाकर वह चुपके से रच लेगी एक समूची दुनिया एक छोटे से घोंघे में सच्चाई यह है कि तुम कहीं भी रहो तुम्हें वर्ष के सबसे कठिन दिनों मे…
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मणिकर्णिका का बाशिंदा | ज्ञानेन्द्रपति साढ़े तीन टाँगों वाला एक कुत्ता मणिकर्णिका का स्थायी बाशिंदा है लकड़ी की टालों और चायथानों वालों से हिलगा यह नहीं कि दुत्कारा नहीं जाता वह लेकिन हमेशा दूर-दूर रखने वाली दुर-दुर नहीं भुगतता वह यहाँ विकलांगता के बावजूद विकल नहीं रहता यहाँ साढ़े तीन टाँगों वाला वह भूरा कुत्ता तनिक उदास ऑँखों से मानुष मन को थाहता-सा…
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एक और अकाल | केदारनाथ सिंह सभाकक्ष में जगह नहीं थी तो मैंने कहा कोई बात नहीं सड़क तो है चल तो सकता हूँ सो, मैंने चलना शुरू किया चलते-चलते एक दिन अचानक मैंने पाया मेरे पैरों के नीचे अब नहीं है सड़क तो मैंने कहा चलो ठीक है न सही सड़क मेरे शहर में एक गाती-गुनगुनाती हुई नदी तो है फिर एक दिन बहुत दिनों बाद मैंने सुबह-सुबह जब खिड़की खोली तो देखा- तट उसी …
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लकड़हारे की पीठ | अनुज लुगुन जलती हुई लकड़ियों का गट्ठर है मेरी पीठ पर और तुम मुझे बाँहों में भरना चाहती हो मैं कहता हूँ— तुम भी झुलस जाओगी मेरी देह के साथ।द्वारा Nayi Dhara Radio
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मित्र | अश्विनी लक्ष्य को सदा चेताए, तेरी त्रुटि कभी न छुपाए, तेरा क्रोध भी सह जाए, जो भटकने न दे मार्ग से, वह मित्र है । मित्र का हृदय निर्मल, विशाल, मित्र ही बने मित्र की ढाल, आँच न दे आने मित्र पर, जो दे काल को टाल, वह मित्र है । क्षुब्ध मन को बहलाता मित्र है, असफलता को करता सहज, ढांढस बंधाता मित्र है । मन की तपती हुई रेत पर, ठंडा जल छिड़काता मि…
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सुनो सितारों! | नासिरा शर्मा कहाँ गुम हो जाते हो तुम रात आते ही जाते हो शराबख़ाने या फिर थके हारे मज़दूर की तरह पड़ जाते हो बेसुध चादर ओढ़ तुम! मच्छर लाख काटें और गुनगुनाएँ उठते नहीं हो तुम नींद से कुछ तो बताओ आख़िर कहाँ चले जाते हो तुम हमारी आँखों की पहुँच से दूर अंधेरी रातों में आ जाते थे रौशनी भरने आँखों में आँखें डाल टिमटिमाते थे सारे दिन की थक…
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बीज पाखी | हेमंत देवलेकर यह कितना रोमांचक दृश्य है: किसी एकवचन को बहुवचन में देखना पेड़ पैराशुट पहनकर उत्तर रहा है। वह सिर्फ़ उतर नहीं रहा बिखर भी रहा है। कितनी गहरी व्यंजना : पेड़ को हवा बनते देखने में सफ़ेद रोओं के ये गुच्छे मिट्टी के बुलबुले है पत्थर हों या पेड़ मन सबके उड़ते हैं हर पेड़ कहीं दूर फिर अपना पेड़ बसाना चाहता है और यह सिर्फ़ पेड़ की आ…
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