show episodes
 
*कहानीनामा( Hindi stories), *स्वकथा(Autobiography) *कवितानामा(Hindi poetry) ,*शायरीनामा(Urdu poetry) ★"The Great" Filmi show (based on Hindi film personalities) मशहूर कलमकारों द्वारा लिखी गयी कहानी, कविता,शायरी का वाचन व संरक्षण ★फिल्मकारों की जीवनगाथा ★स्वास्थ्य संजीवनी
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Shayari Sukun: The Best Hindi Urdu Poetry Shayari Podcast

Shayari Sukun: Best Hindi Urdu Poetry

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साप्ताहिक
 
हम अक्सर रोज की जिंदगी में सुकून भरे और दिल को तरोताजा रखने वाले पल ढूंढते हैं. शायरी सुकून आपको ऐसे ही पलों की बेहतरीन श्रृंखला से रूबरू करवाता है. हमारी shayarisukun.com वेबसाइट को विजिट करते ही आपकी इस सुकून की तलाश पूरी हो जायेगी. यह एक बेहतरीन और नायाब उर्दू-हिंदी शायरियो (Best Hindi Urdu Poetry Shayari) का संग्रह है. यहाँ आपको ऐसी शायरियां 🎙️ मिलेगी, जो और कही नहीं मिल पायेंगी. हम पूरी दिलो दिमाग से कोशिश करते हैं कि आपको एक से बढ़कर एक शायरियों से नवाजे गए खुशनुमा माहौल का अनुभव करा स ...
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कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
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This podcast presents Hindi poetry, Ghazals, songs, and Bhajans written by me. इस पॉडकास्ट के माध्यम से मैं स्वरचित कवितायेँ, ग़ज़ल, गीत, भजन इत्यादि प्रस्तुत कर रहा हूँ Awards StoryMirror - Narrator of the year 2022, Author of the month (seven times during 2021-22) Kalam Ke Jadugar - Three Times Poet of the Month. Sometimes I also collaborate with other musicians & singers to bring fresh content to my listeners. Always looking for fresh voices. Write to me at HindiPoemsByVivek@gmail.com #Hind ...
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Khule Aasmaan Mein Kavita

Nayi Dhara Radio

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मासिक
 
यहाँ हम सुनेंगे कविताएं – पेड़ों, पक्षियों, तितलियों, बादलों, नदियों, पहाड़ों और जंगलों पर – इस उम्मीद में कि हम ‘प्रकृति’ और ‘कविता’ दोनों से दोबारा दोस्ती कर सकें। एक हिन्दी कविता और कुछ विचार, हर दूसरे शनिवार... Listening to birds, butterflies, clouds, rivers, mountains, trees, and jungles - through poetry that helps us connect back to nature, both outside and within. A Hindi poem and some reflections, every alternate Saturday...
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Nayidhara Ekal

Nayi Dhara Radio

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मासिक+
 
साहित्य और रंगकर्म का संगम - नई धारा एकल। इस शृंखला में अभिनय जगत के प्रसिद्ध कलाकार, अपने प्रिय हिन्दी नाटकों और उनमें निभाए गए अपने किरदारों को याद करते हुए प्रस्तुत करते हैं उनके संवाद और उन किरदारों से जुड़े कुछ किस्से। हमारे विशिष्ट अतिथि हैं - लवलीन मिश्रा, सीमा भार्गव पाहवा, सौरभ शुक्ला, राजेंद्र गुप्ता, वीरेंद्र सक्सेना, गोविंद नामदेव, मनोज पाहवा, विपिन शर्मा, हिमानी शिवपुरी और ज़ाकिर हुसैन।
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shaam e shayari

Fanindra bhardwaj

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रोज
 
"sham e shayari" is a captivating podcast that takes you on a poetic journey through the rich and expressive world of Hindi literature. With each episode, Fanindra Bhardwaj, a talented poet and voice artist, skillfully weaves together words and emotions to create a truly immersive experience. In this podcast, you'll encounter a wide range of themes, from love and heartbreak to nature and spirituality. Fanindra's poetry beautifully captures the essence of these emotions, allowing listeners to ...
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तुलसीदास जी का जन्म, आज से लग-भग 490 बरस पहले, 1532 ईसवी में उत्तर प्रदेश के एक गाँव में हुआ और उन्होंने अपने जीवन के अंतिम पल काशी में गुज़ारे। पैदाइश के कुछ वक़्त बाद ही तुलसीदास महाराज की वालिदा का देहांत हो गया, एक अशुभ नक्षत्र में पैदा होने की वजह से उनके पिता उन्हें अशुभ समझने लगे, तुलसीदास जी के जीवन में सैकड़ों परेशानियाँ आईं लेकिन हर परेशानी का रास्ता प्रभु श्री राम की भक्ति पर आकर खत्म हुआ। राम भक्ति की छाँव तले ही तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस और हनुमान चालीसा जैसी नायाब रचनाओं को ...
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Hello Poetry lovers, Here I will Publish classic Hindi poems to enrich your soul. They will take your emotions from love, sadness to the next level. Expect poetry every 3 days. नमस्कार दोस्तों , आपका पोएट्री विथ सिड में स्वागत है. यहाँ पे कविताये सुनेंगे उन कवियों की जिन्हे हम भूलते जा रहे है. Cover art photo provided by Tom Barrett on Unsplash: https://unsplash.com/@wistomsin
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show series
 
The natural elements, perceived naturalness, and restorative qualities of natural environments are more than what's visible to the naked eye. From the buzzing of insects to the sounds of the thunder, nature has its own rhythm that can touch the deepest core. By aligning with the elemental forces and rhythm of nature, one can find stillness beyond t…
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Welcome to another enchanting episode of The Best Hindi Urdu Poetry Shayari Podcast, hosted by the talented Rajarshee Moitra. In this episode, we delve deep into the mesmerizing world of Manzil Shayari. Rajarshee takes you on a poetic journey, exploring the beauty and emotions encapsulated in the timeless verses of shayari. Discover the profound ex…
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कोर्ई आदमी मामूली नहीं होता | कुंवर नारायण अकसर मेरा सामना हो जाता इस आम सचाई से कि कोई आदमी मामूली नहीं होता कि कोई आदमी ग़ैरमामूली नहीं होता आम तौर पर, आम आदमी ग़ैर होता है इसीलिए हमारे लिए जो ग़ैर नहीं, वह हमारे लिए मामूली भी नहीं होता मामूली न होने की कोशिश दरअसल किसी के प्रति भी ग़ैर न होने की कोशिश है।…
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बाज़ार | अनामिका सुख ढूँढ़ा, गैया के पीछे बछड़े जैसा दुःख चला आया! जीवन के साथ बँधी मृत्यु चली आई! दिन के पीछे डोलती आई रात बाल खोले हुई। प्रेम के पीछे चली आई दाँत पीसती कछमछाहट! ‘बाई वन गेट वन फ़्री!' लेकिन अतिरेकों के बीच कहीं कुछ तो था जो जस का तस रह गया लिए लुकाठी हाथ- डफ़ली बजाता हुआ और मगन गाता हुआ- ‘मन लागो मेरो यार फ़क़ीरी में!…
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माँ - दामोदर खड़से नदी सदियों से बह रही है इसका संगीत पीढ़ियों को लुभा रहा है आकांक्षाओं और आस्थाओं के संगम पर वह धीमी हो जाती है... उफनती है आकांक्षाओं की पुकार से पीढ़ियाँ, बहाती रही हैं इच्छा-दीप और निर्माल्य बिना जाने कि थोड़ी-सी आँच भी नदी को तड़पा सकती है पर नदी ने कभी प्रतिकार नहीं किया... हर फूल, हवन, राख को पहुँचाया है अखंड आराध्य तक कभी नह…
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हर तरफ़ हर जगह बेशुमार आदमी | निदा फ़ाज़ली हर तरफ़ हर जगह बेशुमार आदमी फिर भी तनहाईयों का शिकार आदमी सुबह से शाम तक बोझ ढोता हुआ अपनी ही लाश का ख़ुद मज़ार आदमी हर तरफ़ भागते दौड़ते रास्ते हर तरफ़ आदमी का शिकार आदमी रोज़ जीता हुआ रोज़ मरता हुआ हर नए दिन नया इंतज़ार आदमी ज़िन्दगी का मुक़द्दर सफ़र दर सफ़र आख़िरी साँस तक बेक़रार आदमी…
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बादल राग | अवधेश कुमार बादल इतने ठोस हों कि सिर पटकने को जी चाहे पर्वत कपास की तरह कोमल हों ताकि उन पर सिर टिका कर सो सकें झरने आँसुओं की तरह धाराप्रवाह हों कि उनके माध्यम से रो सकें धड़कनें इतनी लयबद्ध कि संगीत उनके पीछे-पीछे दौड़ा चला आए रास्ते इतने लंबे कि चलते ही चला जाए पृथ्वी इतनी छोटी कि गेंद बनाकर खेल सकें आकाश इतना विस्तीर्ण कि उड़ते ही चल…
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समय और बचपन - हेमंत देवलेकर उसने मेरी कलाई पर टिक टिक करती घड़ी देखी तो मचल उठी वैसी ही घड़ी पाने के लिए उसका जी बहलाते स्थिर समय की एक खिलौना घड़ी बाँध दी उसकी नन्हीं कलाई पर पर घड़ी का खिलौना मंज़ूर नहीं था उसे टिक टिक बोलती, समय बताती घड़ी असली मचल रही थी उसके हठ में यह सच है कि बच्चे समय का स्वप्न देखते हैं लेकिन मैं उसे समय के हाथों में कैसे सौंप दू…
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बरसों के बाद | गिरिजा कुमार माथुर बरसों के बाद कभी हम-तुम यदि मिलें कहीं देखें कुछ परिचित-से लेकिन पहिचाने ना। याद भी न आये नाम रूप, रंग, काम, धाम सोचें यह संभव है पर, मन में माने ना। हो न याद, एक बार आया तूफान ज्वार बंद, मिटे पृष्ठों को पढ़ने की ठाने ना। बातें जो साथ हुई बातों के साथ गई आँखें जो मिली रहीं उनको भी जानें ना।…
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प्रेम में मैं और तुम | अंशू कुमार एक दिन तुम और मैं जब अपनी अपनी धुरी पर लौट रहे होंगे ख़ाली हाथ, बेआवाज़ और बदहवास अपने-अपने हिस्से के सुख और दुःख लिए अब कब मिलेंगे, मिलेंगे भी या नहीं जैसे ख़ौफ़नाक सवाल लिए अनंत ख़ालीपन के साथ तब सबसे अंत में हमारे हिस्से का प्रेम ही बचेगा जो अगर बचा सकता तो बचा लेगा हमें एक बार फिर से मिलने की उम्मीद में...!…
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बारिश या पुण्यवर्षा | अरुणाभ सौरभ धरती पर गिरती बूँदें बारिश की छोटी - छोटी ये बूँद-बूँद गोलाइयाँ धरती को चुंबन है आकाश का या धरती से आकाश के मिलने का सबूत या प्यार है मर मिटनेवाला या प्यार की सिफ़ारिश ये बारिश है या हृदय के भीतर की बची हुई करुणा हमारे भीतर की बची हुई मनुष्यता पितरों के पुण्य की पुष्पवर्षा इसी के सहारे जीते हैं हम इसे देखकर जवान हो…
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जगत के कुचले हुए पथ पर भला कैसे चलूं मैं? | हरिशंकर परसाई किसी के निर्देश पर चलना नहीं स्वीकार मुझको नहीं है पद चिह्न का आधार भी दरकार मुझको ले निराला मार्ग उस पर सींच जल कांटे उगाता और उनको रौंदता हर कदम मैं आगे बढ़ाता शूल से है प्यार मुझको, फूल पर कैसे चलूं मैं? बांध बाती में हृदय की आग चुप जलता रहे जो और तम से हारकर चुपचाप सिर धुनता रहे जो जगत क…
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अकाल और उसके बाद | नागार्जुन कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद…
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संतान साते - नीलेश रघुवंशी माँ परिक्रमा कर रही होगी पेड़ की हम परिक्रमा कर रहे हैं पराये शहर की जहाँ हमारी इच्छाएँ दबती ही जा रही हैं । सात पुए और सात पूड़ियाँ थाल में सजाकर रखी होंगी नौ चूड़ियाँ आठ बहन और एक भाई की ख़ुशहाली और लंबी आयु पेड़ की परिक्रमा करते कभी नहीं थके माँ के पाँव। माँ नहीं समझ सकी कभी जब माँग रही होती है वह दुआ हम सब थक चुके होते…
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जो हुआ वो हुआ किसलिए | निदा फ़ाज़ली जो हुआ वो हुआ किसलिए हो गया तो गिला किसलिए काम तो हैं ज़मीं पर बहुत आसमाँ पर ख़ुदा किसलिए एक ही थी सुकूँ की जगह घर में ये आइना किसलिएद्वारा Nayi Dhara Radio
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बचाओ - उदय प्रकाश चिंता करो मूर्द्धन्य 'ष' की किसी तरह बचा सको तो बचा लो ‘ङ’ देखो, कौन चुरा कर लिये चला जा रहा है खड़ी पाई और नागरी के सारे अंक जाने कहाँ चला गया ऋषियों का “ऋ' चली आ रही हैं इस्पात, फाइबर और अज्ञात यौगिक धातुओं की तमाम अपरिचित-अभूतपूर्व चीज़ें किसी विस्फोट के बादल की तरह हमारे संसार में बैटरी का हनुमान उठा रहा है प्लास्टिक का पहाड़ …
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जब मैं तेरा गीत लिखने लगी/अमृता प्रीतम मेरे शहर ने जब तेरे कदम छुए सितारों की मुट्ठियाँ भरकर आसमान ने निछावर कर दीं दिल के घाट पर मेला जुड़ा , ज्यूँ रातें रेशम की परियां पाँत बाँध कर आई...... जब मैं तेरा गीत लिखने लगी काग़ज़ के ऊपर उभर आईं केसर की लकीरें सूरज ने आज मेहंदी घोली हथेलियों पर रंग गई, हमारी दोनों की तकदीरें…
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टेलीफ़ोन पर पिता की आवाज़ - नीलेश रघुवंशी टेलीफ़ोन पर थरथराती है पिता की आवाज़ दिये की लौ की तरह काँपती-सी। दूर से आती हुई छिपाये बेचैनी और दुख। टेलीफ़ोन के तार से गुज़रती हुई कोसती खीझती इस आधुनिक उपकरण पर। तारों की तरह टिमटिमाती टूटती-जुड़ती-सी आवाज़। कितना सुखद पिता को सुनना टेलीफ़ोन पर पहले-पहल कैसे पकड़ा होगा पिता ने टेलीफ़ोन। कड़कती बिजली-सी …
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साम्य | नरेश सक्सेना समुद्र के निर्जन विस्तार को देखकर वैसा ही डर लगता है जैसा रेगिस्तान को देखकर समुद्र और रेगिस्तान में अजीब साम्य है दोनों ही होते हें विशाल लहरों से भरे हुए और दोनों ही भटके हुए आदमी को मारते हैं प्यासा।द्वारा Nayi Dhara Radio
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नानी की कहानी में देवराज इन्द्र - अरुणाभ सौरभ कठोरतम तप से किसी साधक को मिलने लगेगी सिद्धि तो आपका स्वर्ग सिंहासन डोल जाएगा देवराज बचपन में आपसे नानी की कहानियों में मिलता रहा हूँ जवान हुआ तो समझा कि सबसे सुंदरतम दुनिया की अप्सराएँ सबसे मादक पेय और अमरत्व आपके अधीन जहाँ प्रवेश अत्यंत कठिन है मरणोपरांत पर हरेक हंदय में स्वर्ग की चाहना- कामना - इच्छा…
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1975 में मेरे उपन्यास "सागर और सीपियाँ के आधार पर जब 'कादम्बरी' फिल्म बन रही थी तो उसके डायरेक्टर ने मुझसे फिल्म का गीत लिखने के लिए कहा। ... जब मैं गीत लिखने लगी तो अचानक वह गीत सामने आ गया ,जो मैंने 1960 में इमरोज़ से पहली बार मिलने पर अपने मन की दशा के बारे में लिखा था। ..... तब मुझे लगा जैसे चेतना के रूप में मैं पन्द्रह बरस पहले की वह घड़ी फिर से…
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एकाग्र मन हो कर इश्वर से कहा था कि 'मेरी माँ को मत मारो' विश्वास हो गया था कि अब मेरी माँ की मृत्यु नहीं होगी ,क्योंकि ईशवर बच्चों का कहा नहीं टालता ,पर माँ की मृत्यु हो गयी दो औरतें हैं ,जिनमें एक औरत शाहनी है और दूसरी एक वेश्या ,शाह की रखेल............. उस समय मैं भी वहां थी ,जब यह पता चला कि लाहौर की प्रसिद्ध गायिका तमंचा जान वहां आ रही है। वह आ…
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आख़िरी कविता | इमरोज़ अनुवाद : अमिया कुँवर जन्म के साथ मेरी क़िस्मत नहीं लिखी गई जवानी में लिखी गई और वह भी कविता में... जो मैंने अब पढ़ी है पर तू क्यों मेरी क़िस्मत कविता को अपनी आख़िरी कविता कर रही हो... मेरे होते तेरी तो कभी भी कोई कविता आख़िरी कविता नहीं हो सकती...द्वारा Nayi Dhara Radio
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किवाड़ | कुमार अम्बुज ये सिर्फ़ किवाड़ नहीं हैं जब ये हिलते हैं माँ हिल जाती है और चौकस आँखों से देखती है—‘क्या हुआ?’ मोटी साँकल की चार कड़ियों में एक पूरी उमर और स्मृतियाँ बँधी हुई हैं जब साँकल बजती है बहुत कुछ बज जाता है घर में इन किवाड़ों पर चंदा सूरज और नाग देवता बने हैं एक विश्वास और सुरक्षा खुदी हुई है इन पर इन्हें देख कर हमें पिता की याद आती…
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लिखने से ही लिखी जाती है कविता | उदयन वाजपेयी लिखने से ही लिखी जाती है कविता प्रेम भी करने की ही चीज़ है जैसे जंगल सुनने की किताब डूबने की मृत्यु इंतज़ार की जीवन, अपने को चारों ओर से समेट कर किसी ऐसे बिंदु पर ला देने की जहाँ नर्तकी की तरह अपने पाँव के अँगूठे पर कुछ देर खड़ा रह सके वियोगद्वारा Nayi Dhara Radio
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सिर्फ मोहब्बत ही मज़हब है हर सच्चे इंसान का | लक्ष्मीशंकर वाजपेयी माँ की ममता, फूल की खुशबू, बच्चे की मुस्कान का सिर्फ़ मोहब्बत ही मज़हब है हर सच्चे इंसान का किसी पेड़ के नीचे आकर राही जब सुस्ताता है पेड़ नहीं पूछे है किस मज़हब से तेरा नाता है धूप गुनगुनाहट देती है चाहे जिसका आँगन हो जो भी प्यासा आ जाता है, पानी प्यास बुझाता है मिट्टी फसल उगाये पूछ…
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उम्र - हेमंत देवलेकर तुम कितने साल की हो डिंबू ? "तीन साल की” "और तुम्हारी मम्मी ?" "तीन साल की" "और पापा?" "तीन साल" अचानक मुझे यह दुनिया कच्चे टमाटर सी लगी महज़ तीन साल पुरानीद्वारा Nayi Dhara Radio
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कवि लोग | ऋतुराज कवि लोग बहुत लंबी उमर जीते हैं मारे जा रहे होते हैं फिर भी जीते हैं कृतघ्न समय में मूर्खों और लंपटों के साथ निभाते अपनी दोस्ती उनके हाथों में ठूँसते अपनी किताब कवि लोग बहुत दिनों तक हँसते हैं चीख़ते हैं और चुप रहते हैं लेकिन मरते नहीं हैं कमबख़्त! कवि लोग बच्चों में चिड़ियाँ और चिड़ियों में लड़कियाँ और लड़कियों में फूल देखते हैं सब…
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परिन्दे पर कवि को पहचानते हैं - राजेश जोशी सालिम अली की क़िताबें पढ़ते हुए मैंने परिन्दों को पहचानना सीखा। और उनका पीछा करने लगा पाँव में जंज़ीर न होती तो अब तक तो . न जाने कहाँ का कहाँ निकल गया होता हो सकता था पीछा करते-करते मेरे पंख उग आते और मैं उड़ना भी सीख जाता जब परिन्दे गाना शुरू करतें और पहाड़ अँधेरे में डूब जाते। ट्रक ड्राइवर रात की लम्बाई…
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एक तिनका | अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ मैं घमण्डों में भरा ऐंठा हुआ। एक दिन जब था मुण्डेरे पर खड़ा। आ अचानक दूर से उड़ता हुआ। एक तिनका आँख में मेरी पड़ा। मैं झिझक उठा, हुआ बेचैन-सा। लाल होकर आँख भी दुखने लगी। मूँठ देने लोग कपड़े की लगे। ऐंठ बेचारी दबे पाँवों भगी। जब किसी ढब से निकल तिनका गया। तब 'समझ' ने यों मुझे ताने दिए। ऐंठता तू किसलिए इतना रह…
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बहुत दिनों के बाद | नागार्जुन बहुत दिनों के बाद अबकी मैंने जी भर देखी पकी-सुनहली फ़सलों की मुस्कान - बहुत दिनों के बाद बहुत दिनों के बाद अबकी मैं जी भर सुन पाया धान कूटती किशोरियों की कोकिलकंठी तान - बहुत दिनों के बाद बहुत दिनों के बाद अबकी मैंने जी भर सूँघे मौलसिरी के ढेर-ढेर-से ताज़े-टटके फूल - बहुत दिनों के बाद बहुत दिनों के बाद अबकी मैं जी भर छ…
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उठ जाग मुसाफ़िर | वंशीधर शुक्ल उठ जाग मुसाफ़िर! भोर भई, अब रैन कहाँ जो सोवत है। जो सोवत है सो खोवत है, जो जागत है सो पावत है। उठ जाग मुसाफ़िर! भोर भई, अब रैन कहाँ जो सोवत है। टुक नींद से अँखियाँ खोल ज़रा पल अपने प्रभु से ध्यान लगा, यह प्रीति करन की रीति नहीं जग जागत है, तू सोवत है। तू जाग जगत की देख उड़न, जग जागा तेरे बंद नयन, यह जन जाग्रति की बेला …
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मौत इक गीत रात गाती थी ज़िन्दगी झूम झूम जाती थी ज़िक्र था रंग-ओ-बू का और दिल में तेरी तस्वीर उतरती जाती थी वो तिरा ग़म हो या ग़म-ए-आफ़ाक़ शम्मअ सी दिल में झिलमिलाती थी ज़िन्दगी को रह-ए-मोहब्बत में मौत ख़ुद रौशनी दिखाती थी जल्वा-गर हो रहा था कोई उधर धूप इधर फीकी पड़ती जाती थी ज़िन्दगी ख़ुद को राह-ए-हस्ती में कारवाँ कारवाँ छुपाती थी हमा-तन-गोशा ज़िन्दग…
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सिर छिपाने की जगह | राजेश जोशी न उन्होंने कुंडी खड़खड़ाई न दरवाज़े पर लगी घंटी बजाई अचानक घर के अन्दर तक चले आए वे लोग उनके सिर और कपड़े कुछ भीगे हुए थे मैं उनसे कुछ पूछ पाता, इससे पहले ही उन्होंने कहना शुरू कर दिया कि शायद तुमने हमें पहचाना नहीं । हाँ...पहचानोगे भी कैसे बहुत बरस हो गए मिले हुए तुम्हारे चेहरे को, तुम्हारी उम्र ने काफ़ी बदल दिया है …
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मेरे बेटे | कविता कादम्बरी मेरे बेटे कभी इतने ऊँचे मत होना कि कंधे पर सिर रखकर कोई रोना चाहे तो उसे लगानी पड़े सीढ़ियाँ न कभी इतने बुद्धिजीवी कि मेहनतकशों के रंग से अलग हो जाए तुम्हारा रंग इतने इज़्ज़तदार भी न होना कि मुँह के बल गिरो तो आँखें चुराकर उठो न इतने तमीज़दार ही कि बड़े लोगों की नाफ़रमानी न कर सको कभी इतने सभ्य भी मत होना कि छत पर प्रेम करते कबू…
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बाद के दिनों में प्रेमिकाएँ | रूपम मिश्रा बाद के दिनों में प्रेमिकाएँ पत्नियाँ बन गईं वे सहेजने लगीं प्रेमी को जैसे मुफलिसी के दिनों में अम्मा घी की गगरी सहेजती थीं वे दिन भर के इन्तजार के बाद भी ड्राइव करते प्रेमी से फोन पर बात नहीं करतीं वे लड़ने लगीं कम सोने और ज़्यादा शराब पीने पर प्रेमी जो पहले ही घर में बिनशी पत्नी से परेशान था अब प्रेमिका से …
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ईश्वर और प्याज़ | केदारनाथ सिंह क्या ईश्वर प्याज़ खाता है? एक दिन माँ ने मुझसे पूछा जब मैं लंच से पहले प्याज़ के छिलके उतार रहा था क्यों नहीं माँ मैंने कहा जब दुनिया उसने बनाई तो गाजर मूली प्याज़ चुकन्दर- सब उसी ने बनाया होगा फिर वह खा क्‍यों नहीं सकता प्याज़? वो बात नहीं- हिन्दू प्याज़ नहीं खाता धीरे-से कहती है वह तो क्‍या ईश्वर हिन्दू हैं माँ? हँसत…
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अनंत जन्मों की कथा | विश्वनाथ प्रसाद तिवारी मुझे याद है अपने अनंत जन्मों की कथा पिता ने उपेक्षा की सती हुई मैं चक्र से कटे मेरे अंग-प्रत्यंग जन्मदात्री माँ ने अरण्य में छोड़ दिया असहाय पक्षियों ने पाला शकुंतला कहलाई जिसने प्रेम किया उसी ने इनकार किया पहचानने से सीता नाम पड़ा धरती से निकली समा गई अग्नि-परीक्षा की धरती में जन्मते ही फेंक दी गई आम्र क…
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खुल कर | नंदकिशोर आचार्य खुल कर हो रही बारिश खुल कर नहाना चाहती लड़की अपनी खुली छत पर। किन्तु लोगों की खुली आँखें उसको बन्द रखती हैं खुल कर हो रही बरसात में।द्वारा Nayi Dhara Radio
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जानना ज़रूरी है | इन्दु जैन जब वक्त कम रह जाए तो जानना ज़रूरी है कि क्या ज़रूरी है सिर्फ़ चाहिए के बदले चाहना पहचानना कि कहां हैं हाथ में हाथ दिए दोनों मुखामुख मुस्करा रहे हैं कहां फ़िर इन्हें यों सराहना जैसे बला की गर्मी में घूंट भरते मुंह में आई बर्फ़ की डली।द्वारा Nayi Dhara Radio
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हम ओर लोग | केदारनाथ अग्रवाल हम बड़े नहीं फिर भी बड़े हैं इसलिए कि लोग जहाँ गिर पड़े हैं हम वहाँ तने खड़े हैं द्वन्द की लड़ाई भी साहस से लड़े हैं; न दुख से डरे, न सुख से मरे हैं; काल की मार में जहाँ दूसरे झरे हैं, हम वहाँ अब भी हरे-के-हरे हैं।द्वारा Nayi Dhara Radio
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बारिश की भाषा | शहंशाह आलम उसकी देह कितनी बातूनी लग रही है जो बारिश से बचने की ख़ातिर खड़ी है जामुन पेड़ के नीचे जामुनी रंग के कपड़े में ‘जामुन ख़रीदकर घर लाए कितने दिन हुए’ हज़ारों मील तक बरस रही बारिश के बीच वह लड़की क्या ऐसा सोच रही होगी या यह कि इस शून्यता में जामुन का पेड़ बारिश से उसको कितनी देर बचा पाएगा बारिश किसी नाव की तरह बाँधी नहीं जा स…
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वे कैसे दिन थे | कीर्ति चौधरी वे कैसे दिन थे जब चीज़ें भागती थीं और हम स्थिर थे जैसे ट्रेन के एक डिब्बे में बंद झाँकते हुए ओझल होते थे दृश्य पल के पल में— ...कौन थी यह तार पर बैठी हुई बुलबुल, गौरय्या या नीलकंठ? आसमान को छूता हुआ सवन का जोड़ा था? दूरी पर झिलमिल-झिलमिल करती नदिया थी? या रेती का भ्रम? कभी कम कभी ज़्यादा प्रश्न ही प्रश्न उठते थे हम विमूढ…
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दिन भर | रामदरश मिश्रा आज दिन भर कुछ नहीं किया सुबह की झील में एक कंकड़ी मारकर बैठ गया तट पर और उसमें उठने वाली लहरों को देखता रहा शाम को लोग घर लौटे तो न जाने क्या-क्या सामान थे उनके पास मेरे पास कुछ नहीं था केवल एक अनुभव था कंकड़ी और लहरों के सम्बन्ध से बना हुआ।द्वारा Nayi Dhara Radio
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Join us on The Best Hindi Urdu Poetry Shayari Podcast for a special episode dedicated to Father's Day. Hosted by the talented Vanshika Navlani, this episode brings you beautiful and emotional shayari that perfectly captures the essence of fatherhood and the love we share with our fathers. Tune in now to immerse yourself in touching verses and heart…
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औरत की गुलामी | डॉ श्योराज सिंह ‘बेचैन’ किसी आँख में लहू है- किसी आँख में पानी है। औरत की गुलामी भी- एक लम्बी कहानी है। पैदा हुई थी जिस दिन- घर शोक में डूबा था। बेटे की तरह उसका- उत्सव नहीं मना था। बंदिश भरा है बचपन- बोझिल-सी जवानी है। औरत की गुलामी भी- एक लम्बी कहानी है। तालीम में कमतर है-- बाहरी हवा ज़हर है। लड़का कहीं भी जाए- उस पर कड़ी नज़र है। …
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चल इंशा अपने गाँव में | इब्ने इंशा यहाँ उजले उजले रूप बहुत पर असली कम, बहरूप बहुत इस पेड़ के नीचे क्या रुकना जहाँ साये कम,धूप बहुत चल इंशा अपने गाँव में बेठेंगे सुख की छाओं में क्यूँ तेरी आँख सवाली है ? यहाँ हर एक बात निराली है इस देस बसेरा मत करना यहाँ मुफलिस होना गाली है जहाँ सच्चे रिश्ते यारों के जहाँ वादे पक्के प्यारों के जहाँ सजदा करे वफ़ा पां…
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सात पंक्तियाँ - मंगलेश डबराल मुश्किल से हाथ लगी एक सरल पंक्ति एक दूसरी बेडौल-सी पंक्ति में समा गई उसने तीसरी जर्जर क़िस्म की पंक्ति को धक्का दिया इस तरह जटिल-सी लड़खड़ाती चौथी पंक्ति बनी जो ख़ाली झूलती हुई पाँचवीं पंक्ति से उलझी जिसने छटपटाकर छठी पंक्ति को खोजा जो आधा ही लिखी गई थी अन्ततः सातवीं पंक्ति में गिर पड़ा यह सारा मलबा।…
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