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The Unshakeables podcast from Chase for Business and iHeartMedia's Ruby Studio dives into the unbelievable “What are we gonna do now?” moments that changed everything for small business owners. From mom-and-pop coffee shops to auto-detailing garages, every small business owner knows that the journey is full of the unexpected. A single make-or-break experience can change the course of your business forever. Those who stand firm in their resolve have a special name. We call them The Unshakeables. These are their stories. Join Ben Walter, CEO of Chase for Business, and a lineup of special co-hosts as they speak with small business owners across America who’ve gone through some of the most unexpected situations anyone can face and walked away stronger for it. These aren’t stories about the darlings of Silicon Valley or titans of Wall Street. These are real stories from real people behind the small companies powering their communities every day. The speakers’ opinions belong to them and may differ from opinions of J.P. Morgan Chase & Co and its affiliates. Views presented on this podcast are those of the speakers; they are as of the podcast release date and they may not materialize.
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*कहानीनामा( Hindi stories), *स्वकथा(Autobiography) *कवितानामा(Hindi poetry) ,*शायरीनामा(Urdu poetry) ★"The Great" Filmi show (based on Hindi film personalities) मशहूर कलमकारों द्वारा लिखी गयी कहानी, कविता,शायरी का वाचन व संरक्षण ★फिल्मकारों की जीवनगाथा ★स्वास्थ्य संजीवनी
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'ओन' सूरज का एक नाम था ,इसी लिए फ़िनिशियन्स ने जब यूरोप में एक नयी धरती की खोज की ,उसका नाम ऐल -ओन-डोन रखा ,जो आज लन्दन हैं। इंग्लैंड की जड़ें हिब्रू भाषा में हैं। बैल के लिए हिब्रू भाषा में 'ऐंगल' शब्द हैं। नई खोजी हुई धरती को उन्होंने ऐंगल-लैंड का नाम दिया ,जो आज इंग्लैंड है। नींद के होठों से जैसे सपने की महक आती है पहली किरण रात के माथे पर तिलक लगती है हसरत के धागे जोड़ कर शालू-सा हम बुनते रहे विरह की हिचकी में भी हम शहनाई को सुनते रहे ----अमृता प्रीतम…
1975 में मेरे उपन्यास "सागर और सीपियाँ के आधार पर जब 'कादम्बरी' फिल्म बन रही थी तो उसके डायरेक्टर ने मुझसे फिल्म का गीत लिखने के लिए कहा। ... जब मैं गीत लिखने लगी तो अचानक वह गीत सामने आ गया ,जो मैंने 1960 में इमरोज़ से पहली बार मिलने पर अपने मन की दशा के बारे में लिखा था। ..... तब मुझे लगा जैसे चेतना के रूप में मैं पन्द्रह बरस पहले की वह घड़ी फिर से जी रही हूँ अम्बर की इक पाक सुराही ,बादल का एक जाम उठाकर घूँट चांदनी पी है हमने ,बात कुफ़्र की,की है हमने कैसे इसका क़र्ज़ चुकाएँ ,मांग के अपनी मौत के हाथों यह जो ज़िंदगी ली है हमने ,बात कुफ़्र की, की है हमने अपना इसमें कुछ भी नहीं है ,रोज़े -अज़ल से उसकी अमानत उसको वही तो दी है हमने ,बात कुफ़्र की, की है हमने…
एकाग्र मन हो कर इश्वर से कहा था कि 'मेरी माँ को मत मारो' विश्वास हो गया था कि अब मेरी माँ की मृत्यु नहीं होगी ,क्योंकि ईशवर बच्चों का कहा नहीं टालता ,पर माँ की मृत्यु हो गयी दो औरतें हैं ,जिनमें एक औरत शाहनी है और दूसरी एक वेश्या ,शाह की रखेल............. उस समय मैं भी वहां थी ,जब यह पता चला कि लाहौर की प्रसिद्ध गायिका तमंचा जान वहां आ रही है। वह आई --बड़ी ही छबीली ,नाज़ नखरे से आयी.............. ... तमंचा जान जब गा चुकी ,तब शाहनी ने सौ का नोट निकाल कर उसके आँचल में खैरात की तरह डाल दिया…
मैं जब रोमानिया से बल्गारिया जा रही थी ,रात बहुत ठंडी थी ,पास में अपने कोट के सिवाय कुछ नहीं था ,वही घुटने जोड़ कर ऊपर तान लिया था ,फिर भी जब उसे सर करर और खींचती थी ,तो पैरों में ठिठुरन लगती थी। न जाने कब मुझे नींद आ गयी। लगा ,सारे शरीर में गर्मी आ गयी हैं। बाकी रात खूब गर्माइश में सोती रही ....... नायक को जानती हूँ ,उस दिन से ,जिस दिन उसे साधुओं के एक डेरे में चढ़ाया गया था। बहुत बरसों की बात ,पर अब भी ध्यान आ जाती है ,तो बहुत तराशे हुए नक़्श वाला उसका सांवला चेहरा ,उसकी सारी उदासी के समेत आँखों के सामने आ जाता है…
यह मेरी ज़िन्दगी में पहला समय था, जब मैंने जाना कि दुनिया में मेरा भी कोइ दोस्त है, हर हाल में दोस्त ,और पहली बार जाना कि कविता केवल इश्क़ के तूफ़ान से ही नहीं निकलती ,यह दोस्ती के शांत पानियों में से भी तैरती हुई आ सकती है। उस रात को उसने नज़्म लिखी थी --"मेरे साथी ख़ाली जाम ,तुम आबाद घरों के वासी ,हम हैं आवारा बदनाम "..... और ये नज़्म उसने मुझे रात को कोइ ग्यारह बजे फ़ोन पर सुनाई ,और बताया.....…
.गर्मी हो या सर्दी मैं बहुत से कपडे पहन कर नहीं सो सकती। सो रही थी ,जब यह फोन आया था। उसी तरह रजाई से निकल कर फोन तक आयी थी। लगा ,शरीर का मांस पिघल कर रूह में मिल गया है ,और मैं प्योर नेकेड सोल वहां खड़ी हूँ....... उस रेतीले स्थान पर दो तम्बू लगे हुए थे। मेरी आँखों के सामने तम्बू के अंदर का दृश्य फ़ैल गया। मैं देखता हूँ कि इसमें एक पुरुष है जिसे मैं भली-भांति पहचनता हूँ ,जिसके भाव और विचार एक यंत्र की भांति मेरे अंदर ट्रांसमिट हो जाते हैं। उसके सामने तीन तरह के वस्त्र पहने हुए ,पर एक ही चेहरे की तीन युवतियां खड़ी हुई हैं। पुरुष परेशान हो गया ,क्योंकि उनमें से एक उसकी प्रेमिका थी। ......…
समरकंद में मैंने भी ऐसी ही बात वहां के लोगों से पूछी थी कि आपका इज़्ज़त बेग़ जब हमारे देश आया और उसने एक सुन्दर कुम्हारन से प्रेम किया ,तो हमने में कई गीत लिखे। क्या आपके देश में भी उसके गीत हैं ? तो वहां एक प्यारी सी औरत ने जवाब दिया ,हमारे देश में तो एक अमीर सौदागर का बेटा था ,और कुछ नहीं। प्रेमी तो वह आपके देश जाकर बना ,सो गीत आपको ही लिखने थे ,हम कैसे लिखते .... यूं तो हर देश एक कविता के समान है ,जिसके कुछ अक्षर सुनहरे रंग के हो जाते हैं और उसका मान बन जाते , कुछ लाल सुर्ख हो जारी हैं...…
इथोपिया के प्रिंस का मन छलक उठा "आप कवि लोग भाग्यशाली हैं वास्तविक संसार नहीं बसता तो कल्पना का संसार बसा लेते हैं ,मैं बीस बरस वॉयलान बजाता रहा ,साज़ के तारों से मुझे इश्क़ है ,पर युद्ध के दिनों में मेरे दाहिने हाथ में गोली लग गयी थी ,अब मैं वॉयलान नहीं बजा सकता ,संगीत जैसे मेरी छाती में जम गया है। .... इतिहास चुप है। ..... मैं भी कल से चुप हूँ। ..... संगीत के आशिक़ हाथ को गोलियां क्यों लगती हैं ,इसका उत्तर किसी के पास नहीं है…
टॉलस्टॉय की एक सफ़ेद कमीज़ टंगी हुई है। पलंग की पट्टी पर मैं एक हाथ रखे खड़ी थी कि ....... दाहिने हाथ की खिड़की से हल्की सी हवा आयी ..... और ुउस टंगी हुई कमीज की बांह मेरी बांह से छू गयी ..... एक पल के लिए जैसे समय की सूईयाँ पीछे लौट गयीं , 1966 से 1910 पर आ गयीं और मैंने देखा शरीर पर सफ़ेद कमीज पहन कर वहां दीवार के पास टॉलस्टॉय खड़े हैं। .... फिर लहू की हरकत ने शांत होकर देखा ..... कमरे में कोई नहीं था और बाएं हाथ की दीवार पर केवल एक कमीज टंगी हुई थी -----अमृता प्रीतम ,रसीदी टिकट…
अजीब अकेलेपन का एहसास है। हवाई जहाज़ की खिड़की से बाहर देखते हुए अच्छा लगता है ,जैसे किसी ने आसमान को फाड़कर उसके दो भाग कर दिए हों। प्रतीत होता है -- फटे हुए आसमान का एक भाग मैंने नीचे बिछा लिया है ,और दूसरा अपने ऊपर ओढ़ लिया है सोफ़िया के हवाई अड्डे पर बिलकुल अजनबी सी खड़ी हूँ। अचानक किसी ने लाल फूलों का गुच्छा हाथ में पकड़ा दिया है ,और साथ ही पूछा है ,आप अमृता..... ? और मैं लाल फूलों की उंगली पकड़ अजनबी चेहरों के शहर में चल दी हूँ ...…
हमने आज ये दुनियां बेची .... और दीन खरीद लाये ... बात क़ुफ़्र की ,की है हमने ... सपनों का इक थान बुना था.... गज़ एक कपड़ा फ़ाड़ लिया ... और उम्र की चोली सी ली हमने .... अंबर की इक पाक सुराही ... बादल का इक जाम उठाकर ... घूँट चांदनी पी है हमने ....हमने आज ये दुनिया बेची। ........ मैं औरत थी चाहे बच्ची सी और ये ख़ौफ़ विरासत में पाया था कि दुनिया के भयानक जंगल से मैं अकेली नहीं गुज़र सकती ,और शायद इसी समय में से अपने साथ के लिये मर्द मुहँ की कल्पना करना मेरी कल्पना का अंतिम साधन था.... पर इस मर्द शब्द के मेरे अर्थ कहीं भी पढ़े ,सुने , या पहचाने हुए अर्थ नहीं थे।…
छोटी-छोटी कहानियां, वो कहानियां जो हम पढ़ते है सोशल मीडिया के बड़े बड़े प्लेटफ़ॉर्मस पर, छोटी छोटी कहानियां हमारे जीवन का आईना होती हैं ,इनमें हमारा अक्स दिखता है। छोटी छोटी कहानियां हमें बड़ी बड़ी सीख दी जाती हैं। सुनिये छोटी सी कहानी "खुशियों भरी पासबुक"
एक सपना और था जिसने मेरी उठती जवानी को अपने धागों में लपेट लिया था। हर तीसरी या चौथी रात देखती थी कोइ दो मंज़िला मकान है, वो बिलकुल अकेला ,आसपास कोइ बस्ती नहीं ,चारो ओर जंगल है और जहाँ वो मकान है उसके एक तरफ नदी बहती है...... नदी की ओर उस मकान की दूसरी मंज़िल की एक खिड़की खुलती है। जहाँ कोई खड़ा खिड़की से बाहर जंगल के पेड़ों व नदी को देख रहा है। मुझे सिर्फ़ उसकी पीठ दिखाई देती थी ,और सिर्फ इतना ... की गर्म चादर उसके कन्धों से लिपटी होती थी ...…
महारानी एलिज़ाबेथ जिस युवक से मन ही मन प्यार करती हैं ,उसे जब समुद्री जहाज़ देकर काम सौंपती हैं ,तो दूरबीन लगाकर जाते हुए जहाज़ को देखकर परेशान हो जाती हैं । देखती हैं कि नौजवान प्रेमिका भी जहाज़ पर उसके साथ है। वे दोनों डैक पर खड़े हैं ,उस समय महारानी को परेशान देखकर उसका एक शुभचिंतक कहता है ,'मैडम ! लुक ए बिट हायर !' ऊपर ,उस नवयुवक और उसकी प्रेमिका के सिरों से ऊपर ,महारानी के राज्य का झंडा लहरा रहा था। मिल गयी थी इसमें एक बूँद तेरे इश्क़ की ,इसलिए मैंने उम्र की सारी कड़वाहट पी ली ,पर आज इस महफ़िल में बैठे हुए मुझे लग रहा है की मेरी उम्र के प्याले में इंसानी प्यार की बहुत सी बूंदे मिल गयी हैं ,और उम्र का प्याला मीठा हो गया है। ' ------ अमृता प्रीतम ,रसीदी टिकट…
किसी बहुत ऊंची ईमारत के शिखर पर मैं अकेले खड़े हो कर अपने हाथ में लिए हुए कलम से बातें कर रही थी --- 'तुम मेरा साथ दोगे ? --कितने समय मेरा साथ दोगे ?' अचानक किसी ने कसकर मेरा हाथ पकड़ लिया। 'तुम छलावा हो ,मेरा हाथ छोड़ दो।' मैंने कहा , और ज़ोर से अपना हाथ छुड़ाकर उस ईमारत की सीढ़ियां उतरने लगी। मैं बड़ी तेज़ी से उतर रही थी , पर सीढ़ियां ख़त्म होने में नहीं आती थीं। मेरी सांस तेज़ होती जा रही थी ,डर रही थी कि अभी पीछे से आकर वह छलावा मुझे पकड़ लेगा। मैं एक उजाड़ जगह से गुज़र रही थी। मुझे किसी की शक्ल नज़र नहीं आयी ,लेकिन एक आवाज़ सुनाई दी। कोई गा रहा था -- बुरा कित्तोई साहिबां मेरा तरकश टंगयोई जंड। ' तुम कौन हो ? मैंने उस उजाड़ में खड़े हो कर चारों ओर देख कर कहा। "मैं बहादुर मिर्ज़ा हूँ। साहिबां ने मेरे तीर छिपा दिए, और मुझे लोगों के हाथों बे -आयी मौत मरवा दिया। ' मैंने फिर चारों ओर देखा ,पर मुझे किसी की सूरत दिखाई नहीं दी।…
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