HINDI KAVITA, STORY, POEM, JOKES
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This podcast presents Hindi poetry, Ghazals, songs, and Bhajans written by me. इस पॉडकास्ट के माध्यम से मैं स्वरचित कवितायेँ, ग़ज़ल, गीत, भजन इत्यादि प्रस्तुत कर रहा हूँ Awards StoryMirror - Narrator of the year 2022, Author of the month (seven times during 2021-22) Kalam Ke Jadugar - Three Times Poet of the Month. Sometimes I also collaborate with other musicians & singers to bring fresh content to my listeners. Always looking for fresh voices. Write to me at HindiPoemsByVivek@gmail.com #Hind ...
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यहाँ हम सुनेंगे कविताएं – पेड़ों, पक्षियों, तितलियों, बादलों, नदियों, पहाड़ों और जंगलों पर – इस उम्मीद में कि हम ‘प्रकृति’ और ‘कविता’ दोनों से दोबारा दोस्ती कर सकें। एक हिन्दी कविता और कुछ विचार, हर दूसरे शनिवार... Listening to birds, butterflies, clouds, rivers, mountains, trees, and jungles - through poetry that helps us connect back to nature, both outside and within. A Hindi poem and some reflections, every alternate Saturday...
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आओ जज़्बातों को लफ्ज़ देने की कोशिश करें MANKAHI ALSO AVAILABLE ON YOU TUBE KINDLY SUBSCRIBE https://youtube.com/c/MANKAHIGURTEJSINGHOFFICIAL
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ये है नई धारा संवाद पॉडकास्ट। ये श्रृंखला नई धारा की वीडियो साक्षात्कार श्रृंखला का ऑडियो वर्जन है। इस पॉडकास्ट में हम मिलेंगे हिंदी साहित्य जगत के सुप्रसिद्ध रचनाकारों से। सीजन 1 में हमारे सूत्रधार होंगे वरुण ग्रोवर, हिमांशु बाजपेयी और मनमीत नारंग और हमारे अतिथि होंगे डॉ प्रेम जनमेजय, राजेश जोशी, डॉ देवशंकर नवीन, डॉ श्यौराज सिंह 'बेचैन', मृणाल पाण्डे, उषा किरण खान, मधुसूदन आनन्द, चित्रा मुद्गल, डॉ अशोक चक्रधर तथा शिवमूर्ति। सुनिए संवाद पॉडकास्ट, हर दूसरे बुधवार। Welcome to Nayi Dhara Samvaa ...
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It's hindi poem(kavita). Title - Haari nahi hun.
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This is all about my compositions recited by me.
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Are you fascinated by the stories and mythology of ancient India? Do you want to learn more about the epic tale of Ramayana and its relevance to modern-day life? Then you should check out Ramayan Aaj Ke Liye, the ultimate podcast on Indian mythology and culture. Hosted by Kavita Paudwal, this podcast offers a deep dive into the world of Ramayana and its characters, themes, and teachings.
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कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
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Khushi Kaisa Durbhagya | Manglesh Dabral
2:44
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खुशी कैसा दुर्भाग्य | मगलेश डबराल जिसने कुछ रचा नहीं समाज में उसी का हो चला समाज वही है नियन्ता जो कहता है तोडँगा अभी और भी कुछ जो है खूँखार हँसी है उसके पास जो नष्ट कर सकता है उसी का है सम्मान झूठ फ़िलहाल जाना जाता है सच की तरह प्रेम की जगह सिंहासन पर विराजती घृणा बुराई गले मिलती अच्छाई से मूर्खता तुम सन्तुष्ट हो तुम्हारे चेहरे पर उत्साह है। घूर्त…
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Chupchap Ullas | Bhawani Prasad Mishra
1:33
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चुपचाप उल्लास | भवानीप्रसाद मिश्र हम रात देर तक बात करते रहे जैसे दोस्त बहुत दिनों के बाद मिलने पर करते हैं और झरते हैं जैसे उनके आस पास उनके पुराने गाँव के स्वर और स्पर्श और गंध और अंधियारे फिर बैठे रहे देर तक चुप और चुप्पी में कितने पास आए कितने सुख कितने दुख कितने उल्लास आए और लहराए हम दोनों के बीच चुपचाप !…
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Seene Me Kya Hai Tumhare | Akshay Upadhyay
1:56
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सीने में क्या है तुम्हारे / अक्षय उपाध्याय कितने सूरज हैं तुम्हारे सीने में कितनी नदियाँ हैं कितने झरने हैं कितने पहाड़ हैं तुम्हारी देह में कितनी गुफ़ाएँ हैं कितने वृक्ष हैं कितने फल हैं तुम्हारी गोद में कितने पत्ते हैं कितने घोंसले हैं तुम्हारी आत्मा में कितनी चिड़ियाँ हैं कितने बच्चे हैं तुम्हारी कोख में कितने सपने हैं कितनी कथाएँ हैं तुम्हारे स…
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भूख / अच्युतानंद मिश्र मेरी माँ अभी मरी नहीं उसकी सूखी झुलसी हुई छाती और अपनी फटी हुई जेब अक्सर मेरे सपनों में आती हैं मेरी नींद उचट जाती है मैं सोचने लगता हूँ मुझे किसका ख्याल करना चाहिए किसके बारे में लिखनी चाहिए कविताद्वारा Nayi Dhara Radio
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Khejadi Se Ugi Ho | Nandkishore Acharya
1:55
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खेजड़ी-सी उगी हो | नंदकिशोर आचार्य खेजड़ी-सी उगी हो मुझ में हरियल खेजड़ी सी तुम सूने, रेतीले विस्तार में : तुम्हीं में से फूट आया हूँ ताज़ी, घनी पत्तियों-सा। कभी पतझड़ की हवाएँ झरा देंगी मुझे जला देंगी कभी ये सुखे की आहें! तब भी तुम रहोगी मुझे भजती हुई अपने में सींचता रहूँगा मैं तुम्हें अपने गहनतम जल से। जब तलक तुम हो मेरे खिलते रहने की सभी सम्भावन…
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Raat Yun Kehne Laga Mujhse Gagan Ka Chand | Ramdhari Singh 'Dinkar'
2:45
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रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद / रामधारी सिंह "दिनकर" रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद, आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है! उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता, और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है। जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ? मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते; और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी चाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते। आदमी का स्वप्न? ह…
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पिता के घर में | रूपम मिश्रा पिता क्या मैं तुम्हें याद हूँ! मुझे तो तुम याद रहते हो क्योंकि ये हमेशा मुझे याद कराया गया फासीवाद मुझे कभी किताब से नहीं समझना पड़ा पिता के लिए बेटियाँ शरद में देवभूमि से आई प्रवासी चिड़िया थीं या बँसवारी वाले खेत में उग आई रंग-बिरंगी मौसमी घास पिता क्या मैं तुम्हें याद हूँ! शुकुल की बेटी हो! ये आखर मेरे साथ चलता रहा ज…
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पास | अशोक वाजपेयी पत्थर के पास था वृक्ष वृक्ष के पास थी झाड़ी झाड़ी के पास थी घास घास के पास थी धरती धरती के पास थी ऊँची चट्टान चट्टान के पास था क़िले का बुर्ज बुर्ज के पास था आकाश आकाश के पास था शुन्य शुन्य के पास था अनहद नाद नाद के पास था शब्द शब्द के पास था पत्थर सब एक-दूसरे के पास थे पर किसी के पास समय नहीं था।…
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रघुपुङ्गव राघवेंद्र रामचन्द्र राजा राम। सर्वदेवादिदेव सबसे सुन्दर यह नाम। शरणत्राणतत्पर सुन लो विनती हमारी। हरकोदण्डखण्डन खरध्वंसी धनुषधारी। दशरथपुत्र कौसलेय जानकीवल्लभ। विश्वव्याप्त प्रभु आपका कीर्ति सौरभ। विराधवधपण्डित विभीषणपरित्राता। भवरोगस्य भेषजम् शिवलिङ्गप्रतिष्ठाता। सप्ततालप्रभेत्ता सत्यवाचे सत्यविक्रम। आदिपुरुष अद्वितीय अनन्त पराक्रम। रघुप…
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Padhakku Ka Soojh | Ramdhari Singh 'Dinkar'
2:42
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पढ़क्कू की सूझ | रामधारी सिंह "दिनकर" एक पढ़क्कू बड़े तेज थे, तर्कशास्त्र पढ़ते थे, जहाँ न कोई बात, वहाँ भी नए बात गढ़ते थे। एक रोज़ वे पड़े फिक्र में समझ नहीं कुछ न पाए, "बैल घुमता है कोल्हू में कैसे बिना चलाए?" कई दिनों तक रहे सोचते, मालिक बड़ा गज़ब है? सिखा बैल को रक्खा इसने, निश्चय कोई ढब है। आखिर, एक रोज़ मालिक से पूछा उसने ऐसे, "अजी, बिना दे…
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ढहाई | प्रशांत पुरोहित उसने पहले मेरे घर के दरवाज़े को तोड़ा, छज्जे को पटका फिर, बालकनी को टहोका, अब दीवारों का नम्बर आया, तो उन्हें भी गिराया, मेरे छोटे मगर उत्तुंग घर की ज़मीन चौरस की, मेरी बच्ची किसी बची-खुची मेहराब के नीचे सो न जाए कहीं, हरिक छोटे छज्जे को अपने लोहे के हाथ से सहलाया, मेरे आँगन को पथराया उसका लोहा ग़ुस्से से गर्म था, लाल था, उसे…
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उस रोज़ भी | अचल वाजपेयी उस रोज़ भी रोज़ की तरह लोग वह मिट्टी खोदते रहे जो प्रकृति से वंध्या थी उस आकाश की गरिमा पर प्रार्थनाएँ गाते रहे जो जन्मजात बहरा था उन लोगों को सौंप दी यात्राएँ जो स्वयं बैसाखियों के आदी थे उन स्वरों को छेड़ा जो सदियों से मात्र संवादी थे पथरीले द्वारों पर दस्तकों का होना भर था वह न होने का प्रारंभ था…
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यह किसका घर है? | रामदरश मिश्रा "यह किसका घर है?" "हिन्दू का।" "यह किसका घर है?" "मुसलमान का।" यह किसका घर है?" "ईसाई का।” शाम होने को आयी सवेरे से ही भटक रहा हूँ मकानों के इस हसीन जंगल में कहाँ गया वह घर जिसमें एक आदमी रहता था? अब रात होने को है। मैं कहाँ जाऊँगा?द्वारा Nayi Dhara Radio
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एक आशीर्वाद | दुष्यंत कुमार जा तेरे स्वप्न बड़े हों। भावना की गोद से उतर कर जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें। चाँद तारों सी अप्राप्य ऊचाँइयों के लिये रूठना मचलना सीखें। हँसें मुस्कुराएँ गाएँ। हर दीये की रोशनी देखकर ललचायें उँगली जलाएँ। अपने पाँव पर खड़े हों। जा तेरे स्वप्न बड़े हों।द्वारा Nayi Dhara Radio
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Baarish Mein Joote Ke Bina Nikalta Hun Ghar Se | Shahanshah Alam
2:00
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बारिश में जूते के बिना निकलता हूँ घर से | शहंशाह आलम बारिश में जूते के बिना निकलता हूँ घर से बचपन में हम सब कितनी दफ़ा निकल जाते थे घर से नंगे पाँव बारिश के पानी में छपाछप करने उन दिनों हम कवि नहीं हुआ करते थे ख़ालिस बच्चे हुआ करते थे नए पत्ते के जैसे बारिश में बिना जूते के निकलना अपने बचपन को याद करना है इस निकलने में फ़र्क़ इतना भर है कि माँ की आ…
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Kumhaar Akela Shaks Hota Hai | Shahanshah Alam
3:05
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कुम्हार अकेला शख़्स होता है | शहंशाह आलम जब तक एक भी कुम्हार है जीवन से भरे इस भूतल पर और मिट्टी आकार ले रही है समझो कि मंगलकामनाएं की जा रही हैं नदियों के अविरत बहते रहने की कितना अच्छा लगता है मंगलकामनाएं की जा रही हैं अब भी और इस बदमिजाज़ व खुर्राट सदी में कुम्हार काम-भर मिट्टी ला रहा है कुम्हार जब सुस्ताता बीड़ी पीता है बीवी उसकी आग तैयार करती है …
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Sagar Se Milkar Jaise | Bhavani Prasad Mishra
1:43
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सागर से मिलकर जैसे / भवानीप्रसाद मिश्र सागर से मिलकर जैसे नदी खारी हो जाती है तबीयत वैसे ही भारी हो जाती है मेरी सम्पन्नों से मिलकर व्यक्ति से मिलने का अनुभव नहीं होता ऐसा नहीं लगता धारा से धारा जुड़ी है एक सुगंध दूसरी सुगंध की ओर मुड़ी है तो कहना चाहिए सम्पन्न व्यक्ति व्यक्ति नहीं है वह सच्ची कोई अभिव्यक्ति नहीं है कई बातों का जमाव है सही किसी भी …
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एक बार जो | अशोक वाजपेयी एक बार जो ढल जाएँगे शायद ही फिर खिल पाएँगे। फूल शब्द या प्रेम पंख स्वप्न या याद जीवन से जब छूट गए तो फिर न वापस आएँगे। अभी बचाने या सहेजने का अवसर है अभी बैठकर साथ गीत गाने का क्षण है। अभी मृत्यु से दाँव लगाकर समय जीत जाने का क्षण है। कुम्हलाने के बाद झुलसकर ढह जाने के बाद फिर बैठ पछताएँगे। एक बार जो ढल जाएँगे शायद ही फिर ख…
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आँगन | रामदरश मिश्रा तने हुए दो पड़ोसी दरवाज़े एक-दूसरे की आँखों में आँखें धँसाकर गुर्राते रहे कुत्तों की तरह फेंकते रहे आग और धुआँ भरे शब्दों का कोलाहल खाते रहे कसमें एक -दूसरे को समझ लेने की फिर रात को एक-दूसरे से मुँह फेरकर सो गये रात के सन्नाटे में दोनों घरों की खिड़कियाँ खुलीं प्यार से बोलीं- "कैसी हो बहना?" फिर देर तक दो आँगन आपस में बतियाते र…
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Shabd Jo Parinde Hain | Nasira Sharma
2:04
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शब्द जो परिंदे हैं | नासिरा शर्मा शब्द जो परिंदे हैं। उड़ते हैं खुले आसमान और खुले ज़हनों में जिनकी आमद से हो जाती है, दिल की कंदीलें रौशन। अक्षरों को मोतियों की तरह चुन अगर कोई रचता है इंसानी तस्वीर,तो क्या एतराज़ है तुमको उस पर? बह रहा है समय,सब को लेकर एक साथ बहने दो उन्हें भी, जो ले रहें हैं साँस एक साथ। डाल के कारागार में उन्हें, क्या पाओगे सि…
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बचे हुए शब्द | मदन कश्यप जितने शब्द आ पाते हैं कविता में उससे कहीं ज़्यादा छूट जाते हैं। बचे हुए शब्द छपछप करते रहते हैं मेरी आत्मा के निकट बह रहे पनसोते में बचे हुए शब्द थल को जल को हवा को अग्नि को आकाश को लगातार करते रहते हैं उद्वेलित मैं इन्हें फाँसने की कोशिश करता हूँ तो मुस्कुरा कर कहते हैं: तिकड़म से नहीं लिखी जाती कविता और मुझ पर छींटे उछाल क…
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परिचय | अंजना टंडन अब तक हर देह के ताने बाने पर स्थित है जुलाहे की ऊँगलियों के निशान बस थोड़ा सा अंदर रूह तक जा धँसे हैं, विश्वास ना हो तो कभी किसी की रूह की दीवारों पर हाथ रख देखना तुम्हारे दस्ताने का माप भी शर्तिया उसके जितना निकलेगा।द्वारा Nayi Dhara Radio
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सूर्य | नरेश सक्सेना ऊर्जा से भरे लेकिन अक्ल से लाचार, अपने भुवनभास्कर इंच भर भी हिल नहीं पाते कि सुलगा दें किसी का सर्द चुल्हा ठेल उढ़का हुआ दरवाजा चाय भर की ऊष्मा औ' रोशनी भर दें किसी बीमार की अंधी कुठरिया में सुना सम्पाती उड़ा था इसी जगमग ज्योति को छूने झुलस कर देह जिसकी गिरी धरती पर धुआँ बन पंख जिसके उड़ गए आकाश में हे अपरिमित ऊर्जा के स्रोत कोई…
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लड़की | प्रतिभा सक्सेना आती है एक लड़की, मगन-मुस्कराती, खिलखिलाकर हँसती है, सब चौंक उठते हैं - क्यों हँसी लड़की ? उसे क्या पता आगे का हाल, प्रसन्न भावनाओं में डूबी, कितनी जल्दी बड़ी हो जाती है, सारे संबंध मन से निभाती ! कोई नहीं जानता, जानना चाहता भी नहीं क्या चाहती है लड़की मन की बात बोल दे तो बदनाम हो जाती है लड़की और एक दिन एक घर से दूसरे घर, अन…
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जरखरीद देह - रूपम मिश्र हम एक ही पटकथा के पात्र थे एक ही कहानी कहते हुए हम दोनों अलग-अलग दृश्य में होते जैसे एक दृश्य तुम देखते हुए कहते तुमसे कभी मिलने आऊँगा तुम्हारे गाँव तो नदी के किनारे बैठेंगे जी भर बातें करेंगे तुम बेहया के हल्के बैंगनी फूलों की अल्पना बनाना उसी दृश्य में तुमसे आगे जाकर देखती हूँ नदी का वही किनारा है बहेरी आम का वही पुराना पे…
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ख़ालीपन | विनय कुमार सिंह माँ अंदर से उदास है सब कुछ वैसा ही नहीं है जो बाहर से दिख रहा है वैसे तो घर भरा हुआ है सब हंस रहे हैं खाने की खुशबू आ रही है शाम को फिल्म देखना है पिताजी का नया कुर्ता सबको अच्छा लग रहा है लेकिन माँ उदास है. बच्चा नौकरी करने जा रहा है कई सालों से घर, घर था अब नहीं रहेगा अब माँ के मन के एक कोने में हमेशा खालीपन रहेगा !…
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हम न रहेंगे | केदारनाथ अग्रवाल हम न रहेंगे- तब भी तो यह खेत रहेंगे; इन खेतों पर घन घहराते शेष रहेंगे; जीवन देते, प्यास बुझाते, माटी को मद-मस्त बनाते, श्याम बदरिया के लहराते केश रहेंगे! हम न रहेंगे- तब भी तो रति-रंग रहेंगे; लाल कमल के साथ पुलकते भृंग रहेंगे! मधु के दानी, मोद मनाते, भूतल को रससिक्त बनाते, लाल चुनरिया में लहराते अंग रहेंगे।…
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तन गई रीढ़ | नागार्जुन झुकी पीठ को मिला किसी हथेली का स्पर्श तन गई रीढ़ महसूस हुई कन्धों को पीछे से, किसी नाक की सहज उष्ण निराकुल साँसें तन गई रीढ़ कौंधी कहीं चितवन रंग गए कहीं किसी के होंठ निगाहों के ज़रिये जादू घुसा अन्दर तन गई रीढ़ गूँजी कहीं खिलखिलाहट टूक-टूक होकर छितराया सन्नाटा भर गए कर्णकुहर तन गई रीढ़ आगे से आया अलकों के तैलाक्त परिमल का झो…
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मृत्यु - विश्वनाथ प्रसाद तिवारी मेरे जन्म के साथ ही हुआ था उसका भी जन्म... मेरी ही काया में पुष्ट होते रहे उसके भी अंग में जीवन-भर सँवारता रहा जिन्हें और ख़ुश होता रहा कि ये मेरे रक्षक अस्त्र हैं दरअसल वे उसी के हथियार थे अजेय और आज़माये हुए मैं जानता था कि सब कुछ जानता हूँ मगर सच्चाई यह थी कि मैं नहीं जानता था कि कुछ नहीं जानता हूँ... मैं सोचता था फ…
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इच्छाओं का घर | अंजना भट्ट इच्छाओं का घर- कहाँ है? क्या है मेरा मन या मस्तिष्क या फिर मेरी सुप्त चेतना? इच्छाएं हैं भरपूर, जोरदार और कुछ मजबूर पर किसने दी हैं ये इच्छाएं? क्या पिछले जन्मों से चल कर आयीं या शायद फिर प्रभु ने ही हैं मन में समाईं? पर क्यों हैं और क्या हैं ये इच्छाएं? क्या इच्छाएं मार डालूँ? या फिर उन पर काबू पा लूं? और यदि हाँ तो भी क…
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Swadesh Ke Prati | Subhadra Kumari Chauhan
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स्वदेश के प्रति / सुभद्राकुमारी चौहान आ, स्वतंत्र प्यारे स्वदेश आ, स्वागत करती हूँ तेरा। तुझे देखकर आज हो रहा, दूना प्रमुदित मन मेरा॥ आ, उस बालक के समान जो है गुरुता का अधिकारी। आ, उस युवक-वीर सा जिसको विपदाएं ही हैं प्यारी॥ आ, उस सेवक के समान तू विनय-शील अनुगामी सा। अथवा आ तू युद्ध-क्षेत्र में कीर्ति-ध्वजा का स्वामी सा॥ आशा की सूखी लतिकाएं तुझको प…
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अपनी देवनागरी लिपि | केदारनाथ सिंह यह जो सीधी-सी, सरल-सी अपनी लिपि है देवनागरी इतनी सरल है कि भूल गई है अपना सारा अतीत पर मेरा ख़याल है 'क' किसी कुल्हाड़ी से पहले नहीं आया था दुनिया में 'च' पैदा हुआ होगा किसी शिशु के गाल पर माँ के चुम्बन से! 'ट' या 'ठ' तो इतने दमदार हैं कि फूट पड़े होंगे किसी पत्थर को फोड़कर 'न' एक स्थायी प्रतिरोध है हर अन्याय का '…
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ढेला | उदय प्रकाश वह था क्या एक ढेला था कहीं दूर गाँव-देहात से फिंका चला आया था दिल्ली की ओर रोता था कड़कड़डूमा, मंगोलपुरी, पटपड़गंज में खून के आँसू चुपचाप ढेले की स्मृति में सिर्फ़ बचपन की घास थी जिसका हरापन दिल्ली में हर साल और हरा होता था एक दिन ढेला देख ही लिया गया राजधानी में लोग-बाग चौंके कि ये तो कैसा ढेला है। कि रोता भी है आदमी लोगों की तरह…
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O Mandir Ke Shankh, Ghantiyon | Ankit Kavyansh
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ओ मन्दिर के शंख, घण्टियों | अंकित काव्यांश ओ मन्दिर के शंख, घण्टियों तुम तो बहुत पास रहते हो, सच बतलाना क्या पत्थर का ही केवल ईश्वर रहता है? मुझे मिली अधिकांश प्रार्थनाएँ चीखों सँग सीढ़ी पर ही। अनगिन बार थूकती थीं वे हम सबकी इस पीढ़ी पर ही। ओ मन्दिर के पावन दीपक तुम तो बहुत ताप सहते हो, पता लगाना क्या वह ईश्वर भी इतनी मुश्किल सहता है? भजन उपेक्षित …
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तुम आईं | केदारनाथ सिंह तुम आईं जैसे छीमियों में धीरे- धीरे आता है रस जैसे चलते-चलते एड़ी में काँटा जाए धँस तुम दिखीं जैसे कोई बच्चा सुन रहा हो कहानी तुम हँसी जैसे तट पर बजता हो पानी तुम हिलीं जैसे हिलती है पत्ती जैसे लालटेन के शीशे में काँपती हो बत्ती। तुमने छुआ जैसे धूप में धीरे धीरे उड़ता है भुआ और अन्त में जैसे हवा पकाती है गेहूँ के खेतों को तु…
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Raat Kati Din Tara Tara | Shiv Kumar Batalvi
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रात कटी गिन तारा तारा - शिव कुमार बटालवी अनुवाद: आकाश 'अर्श' रात कटी गिन तारा तारा हुआ है दिल का दर्द सहारा रात फुंका मिरा सीना ऐसा पार अर्श के गया शरारा आँखें हो गईं आँसू आँसू दिल का शीशा पारा-पारा अब तो मेरे दो ही साथी इक आह और इक आँसू खारा मैं बुझते दीपक का धुआँ हूँ कैसे करूँ तिरा रौशन द्वारा मरना चाहा मौत न आई मौत भी मुझ को दे गई लारा छोड़ न मे…
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Apne Purkhon Ke Liye | Vishwanath Prasad Tiwari
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अपने पुरखों के लिए | विश्वनाथ प्रसाद तिवारी इसी मिट्टी में मिली हैं उनकी अस्थियाँ अँधेरी रातों में जो करते रहते थे भोर का आवाहन बेड़ियों में जकड़े हुए जो गुनगुनाते रहते थे आज़ादी के तराने माचिस की तीली थे वे चले गए एक लौ जलाकर थोड़ी सी आग जो चुराकर लाये थे वे जन्नत से हिमालय की सारी बर्फ और समुद्र का सारा पानी नहीं बुझा पा रहे हैं उसे लड़ते रहे, लड़ते …
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अमलताश | अंजना वर्मा उठा लिया है भार इस भोले अमलताश ने दुनिया को रौशन करने का बिचारा दिन में भी जलाये बैठा है करोड़ों दीये! न जाने किस स्त्री ने टाँग दिये अपने सोने के गहने अमलताश की टहनियों पर और उन्हें भूलकर चली गई पीली तितलियों का घर है अमलताश या सोने का शहर है अमलताश दीवाली की रात है अमलताश या जादुई करामात है अमलताश!…
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Atyachari ke Pramaan | Manglesh Dabral
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अत्याचारी के प्रमाण | मंगलेश डबराल अत्याचारी के निर्दोष होने के कई प्रमाण हैं उसके नाखुन या दाँत लम्बे नहीं हैं आँखें लाल नहीं रहती... बल्कि वह मुस्कराता रहता है अक्सर अपने घर आमंत्रित करता है और हमारी ओर अपना कोमल हाथ बढ़ाता है उसे घोर आश्चर्य है कि लोग उससे डरते हैं अत्याचारी के घर पुरानी तलवारें और बन्दूकें., सिर्फ़ सजावट के लिए रखी हुई हैं उसका…
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Main Shamil Hun Ya Na Hun | Nasira Sharma
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मैं शामिल हूँ या न हूँ | नासिरा शर्मा मैं शामिल हूँ या न हूँ मगर हूँ तो इस काल- खंड की चश्मदीद गवाह! बरसों पहले वह गर्भवती जवान औरत गिरी थी, मेरे उपन्यासों के पन्नों पर ख़ून से लथपथ। ईरान की थी या फिर टर्की की या थी अफ़्रीका की या फ़िलिस्तीन की या फिर हिंदुस्तान की क्या फ़र्क़ पड़ता है वह कहाँ की थी। वह लेखिका जो पूरे दिनों से थी जो अपने देश के इति…
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अम्बपाली | विश्वनाथ प्रसाद तिवारी मंजरियों से भूषित यह सघन सुरोपित आम्र कानन सत्य नहीं है, अम्बपाली ! -यही कहा तथागत ने झड़ जाएँगी तोते के पंख जैसी पत्तियाँ ठूँठ हो जाएँगी भुजाएँ कोई सम्मोहन नहीं रह जाएगा पक्षियों के लिए इस आम्रकुंज में -यही कहा तथागत ने दर्पण से पूछती है अम्बपाली अपने भास्वर, सुरुचिर मणि जैसे नेत्रों से पूछती है पूछती है भ्रमरवर्णी…
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कौन हो तुम | अंजना बख्शी तंग गलियों से होकर गुज़रता है कोई आहिस्ता-आहिस्ता फटा लिबास ओढ़े कहता है कोई आहिस्ता-आहिस्ता पैरों में नहीं चप्पल उसके काँटों भरी सेज पर चलता है कोई आहिस्ता-आहिस्ता आँखें हो गई हैं अब उसकी बूढ़ी धँसी हुई आँखों से देखता है कोई आहिस्ता-आहिस्ता एक रोज़ पूछा मैंने उससे, कौन हो तुम ‘तेरे देश का कानून’ बोला आहिस्ता-आहिस्ता !!…
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Tha Kiska Adhoorapan | Nandkishore Acharya
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था किसका अधूरापन | नंदकिशोर आचार्य शुरू में शब्द था केवल' -शब्द जो मौन को आकार देता है इसलिए मौन को पूर्ण करता हुआ उसी से बनी है यह सृष्टि पर सृष्टि में पूरा हुआ जो था किसका अधूरापन?द्वारा Nayi Dhara Radio
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कबाड़खाना | प्रतिभा सक्सेना हर घर में कुछ कुठरियाँ या कोने होते हैं, जहाँ फ़ालतू कबाड़ इकट्ठा रहता है. मेरे मस्तिष्क के कुछ कोनों में भी ऐसा ही अँगड़-खंगड़ भरा है! जब भी कुछ खोजने चलती हूँ तमाम फ़ालतू चीज़ें सामने आ जाती हैं, उन्हीं को बार-बार, देखने परखने में लीन भूल जाती हूँ, कि क्या ढूँढने आई थी!द्वारा Nayi Dhara Radio
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Baarish Chamatkaar Ki Tarah Hoti Hai | Shahanshah Alam
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बारिश चमत्कार की तरह होती है | शहंशाह आलम बारिश चमत्कार की तरह होती है उसने मुझे यह बात इस तरह बताई जिस तरह कोई अपने भीतर के किसी चमत्कार के बारे में बताता है उसने बारिश को लेकर जो कुछ कहा सच कहा मैंने भी देखा बारिश को प्रार्थना की मुद्रा में पेड़ के पत्तों पर बरसते पूरी तरह चमत्कारी।द्वारा Nayi Dhara Radio
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Ye Bhari Aankhen Tumhari | Kunwar Bechain
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ये भरी आँखें तुम्हारी | कुँअर बेचैन जागती हैं रात भर क्यों ये भरी आँखें तुम्हारी! क्या कहीं दिन में तड़पता स्वप्न देखा सुई जैसी चुभ गई क्या हस्त-रेखा बात क्या थी क्यों डरी आँखें तुम्हारी। जागती हैं रात भर क्यों, ये भरी आँखें तुम्हारी! लालसा थी क्या उजेरा देखने की चाँद के चहुँ ओर घेरा देखने की बन गईं क्यों गागरी आँखें तुम्हारी। जागती है रात भर क्यों…
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Zindagi Tere Ghere Mein Rehkar | Sheoraj Singh 'Bechain'
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ज़िन्दगी तेरे घेरे में रहकर - श्योराज सिंह 'बेचैन' ज़िन्दगी तेरे घेरे में रहकर क्या करें इस बसेरे में रहकर इस उजाले में दिखता नहीं कुछ आँख चुंधियाएँ, पलके भीगी सी रहकर अब कहीं कोई राहत नहीं है दर्द कहता है आँखों से बहकर हाँ, हमी ने बढ़ावा दिया है ज़ुल्म सहते हैं ख़ामोश रहकर मुक्ति देखी ग़ुलामी से बदतर क्यों चिढ़ाते हैं आज़ाद कहकर घूँट भर पीने लायक न छोड़ी म…
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ख़ाली जगह | अमृता प्रीतम सिर्फ़ दो रजवाड़े थे – एक ने मुझे और उसे बेदखल किया था और दूसरे को हम दोनों ने त्याग दिया था। नग्न आकाश के नीचे – मैं कितनी ही देर – तन के मेंह में भीगती रही, वह कितनी ही देर तन के मेंह में गलता रहा। फिर बरसों के मोह को एक ज़हर की तरह पीकर उसने काँपते हाथों से मेरा हाथ पकड़ा! चल! क्षणों के सिर पर एक छत डालें वह देख! परे – स…
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तुम हँसी हो | अज्ञेय तुम हँसी हो - जो न मेरे होंठ पर दीखे, मुझे हर मोड़ पर मिलती रही है। धूप - मुझ पर जो न छाई हो, किंतु जिसकी ओर मेरे रुद्ध जीवन की कुटी की खिड़कियाँ खुलती रही हैं। तुम दया हो जो मुझे विधि ने न दी हो, किंतु मुझको दूसरों से बाँधती है जो कि मेरी ही तरह इंसान हैं। आँख जिनसे न भी मेरी मिले, जिनको किंतु मेरी चेतना पहचानती है। धैर्य हो त…
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चूल्हे के पास - मदन कश्यप गीली लकड़ियों को फूँक मारती आँसू और पसीने से लथपथ चूल्हे के पास बैठी है औरत हज़ारों-हज़ार बरसों से धुएँ में डूबी हुई चूल्हे के पास बैठी है औरत जब पहली बार जली थी आग धरती पर तभी से राख की परतों में दबाकर आग ज़िंदा रखे हुई है औरत!द्वारा Nayi Dhara Radio
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