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Shayari Sukun: The Best Hindi Urdu Poetry Shayari Podcast

Shayari Sukun: Best Hindi Urdu Poetry

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हम अक्सर रोज की जिंदगी में सुकून भरे और दिल को तरोताजा रखने वाले पल ढूंढते हैं. शायरी सुकून आपको ऐसे ही पलों की बेहतरीन श्रृंखला से रूबरू करवाता है. हमारी shayarisukun.com वेबसाइट को विजिट करते ही आपकी इस सुकून की तलाश पूरी हो जायेगी. यह एक बेहतरीन और नायाब उर्दू-हिंदी शायरियो (Best Hindi Urdu Poetry Shayari) का संग्रह है. यहाँ आपको ऐसी शायरियां 🎙️ मिलेगी, जो और कही नहीं मिल पायेंगी. हम पूरी दिलो दिमाग से कोशिश करते हैं कि आपको एक से बढ़कर एक शायरियों से नवाजे गए खुशनुमा माहौल का अनुभव करा स ...
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This podcast presents Hindi poetry, Ghazals, songs, and Bhajans written by me. इस पॉडकास्ट के माध्यम से मैं स्वरचित कवितायेँ, ग़ज़ल, गीत, भजन इत्यादि प्रस्तुत कर रहा हूँ Awards StoryMirror - Narrator of the year 2022, Author of the month (seven times during 2021-22) Kalam Ke Jadugar - Three Times Poet of the Month. Sometimes I also collaborate with other musicians & singers to bring fresh content to my listeners. Always looking for fresh voices. Write to me at HindiPoemsByVivek@gmail.com #Hind ...
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कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
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Hello Poetry lovers, Here I will Publish classic Hindi poems to enrich your soul. They will take your emotions from love, sadness to the next level. Expect poetry every 3 days. नमस्कार दोस्तों , आपका पोएट्री विथ सिड में स्वागत है. यहाँ पे कविताये सुनेंगे उन कवियों की जिन्हे हम भूलते जा रहे है. Cover art photo provided by Tom Barrett on Unsplash: https://unsplash.com/@wistomsin
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BHARATVANI... Kavita Sings INDIA

Kavita Sings India भारतवाणी

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BHARATVAANI...KAVITA SINGS INDIA I Sing.. I Write.. I Chant.. I Recite.. I'm here to Tell Tales of my glorious motherland INDIA, Tales of our rich cultural, spiritual heritage, ancient Vedic history, literature and epic poetry. My podcasts will include Bharat Bharti by Maithilisharan Gupta, Rashmirathi and Parashuram ki Prateeksha by Ramdhari Singh Dinkar, Kamayani by Jaishankar Prasad, Madhushala by Harivanshrai Bachchan, Ramcharitmanas by Tulsidas, Radheshyam Ramayan, Valmiki Ramayan, Soun ...
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Khule Aasmaan Mein Kavita

Nayi Dhara Radio

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यहाँ हम सुनेंगे कविताएं – पेड़ों, पक्षियों, तितलियों, बादलों, नदियों, पहाड़ों और जंगलों पर – इस उम्मीद में कि हम ‘प्रकृति’ और ‘कविता’ दोनों से दोबारा दोस्ती कर सकें। एक हिन्दी कविता और कुछ विचार, हर दूसरे शनिवार... Listening to birds, butterflies, clouds, rivers, mountains, trees, and jungles - through poetry that helps us connect back to nature, both outside and within. A Hindi poem and some reflections, every alternate Saturday...
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*कहानीनामा( Hindi stories), *स्वकथा(Autobiography) *कवितानामा(Hindi poetry) ,*शायरीनामा(Urdu poetry) ★"The Great" Filmi show (based on Hindi film personalities) मशहूर कलमकारों द्वारा लिखी गयी कहानी, कविता,शायरी का वाचन व संरक्षण ★फिल्मकारों की जीवनगाथा ★स्वास्थ्य संजीवनी
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ये उलझने भी अब अज़ीब सी लग रही है बगैर तेरे ये शहर भी रंगहीन सी लग रही है वैसे तो दूरियाँ भी हैं बहुत ... हमारे दरमियाँ मेरी ख़ामोशियों को समझने वाली बस तेरी कमी सी लग रही है.. मंजर जो दिख रहा अब फिज़ाओं में वक़्त रद्दी के भाव में बिक रहा बाजारों में... रब ने तुम्हें सजाया है सितारों से.. यूँ ही नहीं मिले हो तुम मुझे... ढूँढा है मैंने तुझे लाखों हज़ारों में..
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it's fanindra bhardwaj's show

Fanindra bhardwaj

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साप्ताहिक
 
"sham e shayari" is a captivating podcast that takes you on a poetic journey through the rich and expressive world of Hindi literature. With each episode, Fanindra Bhardwaj, a talented poet and voice artist, skillfully weaves together words and emotions to create a truly immersive experience. In this podcast, you'll encounter a wide range of themes, from love and heartbreak to nature and spirituality. Fanindra's poetry beautifully captures the essence of these emotions, allowing listeners to ...
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Gita , krishna and success stories , ekadashi, janmashtami. "समय ⏲️को भी समय⏰ लगता है, समय ⏱️ बदलने में। इसलिए अपनेआप को समय दें,इस आपके ही चैनल के माध्यम से।" "श्रीमद्भगवद्गीता" के वजह से आपके जीवन में सफलता आए और यह चैनल उसका हिस्सा बनें इसमें मेरा सौभाग्य है। आपकी सफलता के लिए मंगल कामना . Krishna janm poetry https://hubhopper.com/episode/poetry-of-krishna-janmashtami-1630285171
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Nayidhara Ekal

Nayi Dhara Radio

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साहित्य और रंगकर्म का संगम - नई धारा एकल। इस शृंखला में अभिनय जगत के प्रसिद्ध कलाकार, अपने प्रिय हिन्दी नाटकों और उनमें निभाए गए अपने किरदारों को याद करते हुए प्रस्तुत करते हैं उनके संवाद और उन किरदारों से जुड़े कुछ किस्से। हमारे विशिष्ट अतिथि हैं - लवलीन मिश्रा, सीमा भार्गव पाहवा, सौरभ शुक्ला, राजेंद्र गुप्ता, वीरेंद्र सक्सेना, गोविंद नामदेव, मनोज पाहवा, विपिन शर्मा, हिमानी शिवपुरी और ज़ाकिर हुसैन।
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Hi there beautiful! In my podcast, I bring you topics that are close to women's heart. Using research and storytelling (and poetry), I shed light on issues that are often ignored by the society, such as contribution of full time mothers, grey hair and society ki soch, challenges faced by working mothers. I hope that you will find your story reflected in my podcasts. I also have a weekly news (samachar) brief where you can catch up with the latest from the world. So join me on a new journey e ...
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FM Countdown

Ashutosh Chauhan

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हेलो दोस्तों मैं हूं आशुतोष चौहान शायरियां,कहानियां, कविताएं सुनाता हूं | FM Countdown में आपका स्वागत है आपको हम हर एक कहानियां, कविताओं के साथ मिलते रहेंगे | कहानियां, कविताएं कैसी लग रही हैं मुझको जरूर बताएं मुझ तक अपनी बात या अपनी कहानियों को शेयर करने के लिए, Hello friends, I am Ashutosh Chauhan, I tell poetry, stories, poems. Welcome to FM Countdown, we will keep meeting you with every single stories, poems. stories, poems Feel free to tell me to share your point or your stories to me✍ ...
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Yakshi Yash Podcast | Teri Dosti

Yakshi Yash Podcast

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Become a Paid Subscriber: https://anchor.fm/yakshi-yash-podcast/subscribe Yakshi Yash Podcast | Teri Dosti Follow me on Instagram https://www.instagram.com/yakshi_yash/ #arzooterihai #yakshiyash #teridosti #loveable #punjabisong #podcast #yakshiyash #yakshi #yash #love #poems #poetry #poetrycommunity #inspirationalquotes #poetsofinstagram #writersofinstagram #wordsoftheday #forgiveness #quotes #writerscommunity #poemsofinstagram #poets #writers #poetryofinstagram #writingcommunity #w
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तुलसीदास जी का जन्म, आज से लग-भग 490 बरस पहले, 1532 ईसवी में उत्तर प्रदेश के एक गाँव में हुआ और उन्होंने अपने जीवन के अंतिम पल काशी में गुज़ारे। पैदाइश के कुछ वक़्त बाद ही तुलसीदास महाराज की वालिदा का देहांत हो गया, एक अशुभ नक्षत्र में पैदा होने की वजह से उनके पिता उन्हें अशुभ समझने लगे, तुलसीदास जी के जीवन में सैकड़ों परेशानियाँ आईं लेकिन हर परेशानी का रास्ता प्रभु श्री राम की भक्ति पर आकर खत्म हुआ। राम भक्ति की छाँव तले ही तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस और हनुमान चालीसा जैसी नायाब रचनाओं को ...
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Podcast Name: Shayari Sukun Episode Title: Episode 1152 - ज़िंदगी का भ्रम शायरी Narrator: Aditi Kshirsagar Shayari Writer: Moeen Episode Description: क्या ज़िंदगी वाकई वैसी है, जैसी हम उसे समझते हैं, या यह सिर्फ एक भ्रम है? Episode 1152, ज़िंदगी का भ्रम शायरी, में Moeen की गहराई से भरी शायरी आपके दिल को छू लेगी। Aditi Kshirsagar की दिलकश आवाज़ में …
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हम मिलते हैं बिना मिले ही | केदारनाथ अग्रवाल हे मेरी तुम! हम मिलते हैं बिना मिले ही मिलने के एहसास में जैसे दुख के भीतर सुख की दबी याद में। हे मेरी तुम! हम जीते हैं बिना जिये ही जीने के एहसास में जैसे फल के भीतर फल के पके स्वाद में।द्वारा Nayi Dhara Radio
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कम से कम एक दरवाज़ा | सुधा अरोड़ा चाहे नक़्क़ाशीदार एंटीक दरवाज़ा हो या लकड़ी के चिरे हुए फट्टों से बना उस पर खूबसूरत हैंडल जड़ा हो या लोहे का कुंडा वह दरवाज़ा ऐसे घर का हो जहाँ माँ बाप की रज़ामंदी के बग़ैर अपने प्रेमी के साथ भागी हुई बेटी से माता पिता कह सकें - 'जानते हैं, तुमने ग़लत फ़ैसला लिया फिर भी हमारी यही दुआ है ख़ुश रहो उसके साथ जिसे तुमने वरा है य…
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सुनो कबीर ! | नासिरा शर्मा सुनो कबीर, चलो मेरे साथ वहाँ जहाँ तुम्हारी प्रताड़ना के बावजूद डूब रहे हैं दोनों पक्ष ज़रूरत है उन्हें तुम्हारी फटकार की वह नहीं सुन रहे हैं हमारी बातें हमारी चेतावनी, कर रहे हैं मनमानी अंधविश्वास की पट्टी बंध चुकी है उनकी रौशन आँखों पर और आगे का रास्ता भूल , वह भटक रहे हैं पीछे बहुत पीछे अतीत की ओर तुम्हीं सिखा सकते हो, …
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सूर्यास्त के आसमान | आलोक धन्वा उतने सूर्यास्त के उतने आसमान उनके उतने रंग लम्बी सडकों पर शाम धीरे बहुत धीरे छा रही शाम होटलों के आसपास खिली हुई रौशनी लोगों की भीड़ दूर तक दिखाई देते उनके चेहरे उनके कंधे जानी -पह्चानी आवाज़ें कभी लिखेंगें कवि इसी देश में इन्हें भी घटनाओं की तरह!द्वारा Nayi Dhara Radio
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पहले बच्चे के जन्म से पहले | नरेश सक्सेना साँप के मुँह में दो ज़ुबानें होती हैं। मेरे मुँह में कितनी हैं अपने बच्चे को दुआ किस ज़ुबान से दूँगा खून सनी उँगलियाँ झर तो नहीं जाएँगी पतझर में अपनी कौन-सी उँगली उसे पकड़ाऊँगा सात रंग बदलता है गिरगिट मैं कितने बदलता हूँ किस रंग की रोशनी का पाठ उसे पढ़ाऊँगा आओ मेरे बच्चे मुझे पुनर्जन्म देते हुए आओ मेरे मैल पर…
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इस समय | नीलेश रघुवंशी एक कोने में बिल्ली अपने बच्चों को दूध पिला रही है। छोटे-छोटे बच्चे और बिल्ली इतने सटे हुए हैं आपस में मुश्किल है उन्हें गिननाq एक औरत पेड़ में रस्सी का झुला डाल, झुला रही है बच्चे को साथ-साथ बच्चे के-औरत भी जा रही है धीरे-धीरे नींद में इस समय एक पत्ता भी नहीं खड़कना चाहिए।द्वारा Nayi Dhara Radio
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पवित्र पुण्य भारती (पञ्चचामर छंद) भले अनेक धर्म हों, परन्तु एक धाम है। पवित्र पुण्य भारती, प्रणाम है प्रणाम है॥ समान सर्व प्राण हैं, विधान संविधान है। महान लोकतंत्र है, स्वतंत्रता महान है। तिरंग हाथ में उठा, कि आन बान शान है। कि कोटि कंठ गूंजता, सुभाष राष्ट्र गान है। ललाट गर्व से उठा, न शीश ये कभी झुका। सदैव साथ देश का, स्वदेश भक्ति काम है॥ पवित्र …
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मैंने पूछा क्या कर रही हो | अज्ञेय मैंने पूछा यह क्या बना रही हो? उसने आँखों से कहा धुआँ पोंछते हुए कहा- मुझे क्या बनाना है! सब-कुछ अपने आप बनता है। मैने तो यही जाना है। कह लो भगवान ने मुझे यही दिया है। मेरी सहानुभूति में हठ था- मैंने कहा- कुछ तो बना रही हो या जाने दो, न सही बना नहीं रही क्या कर रही हो? वह बोली- देख तो रहे हो छीलती हूँ नमक छिड़कती …
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घरौंदा | एकता वर्मा धूल में नहाए शैतान बच्चे खेल रहे हैं घरौंदा-घरौंदा। जोड़ रहे हैं ईट के टुकडे, पत्थर, सीमेंट के गुटके बना रहे हैं नन्हे-न्हे घर हँस रहे हैं, तालियाँ पीट रहे हैं। यह फ़िलिस्तीन का दुर्भाग्य है कि उसके बच्चे अपने न्हे घरों को बनाने के लिए चुन रहे हैं मलबा पड़ोसियों के ज़मीदोज़ हुए मकानों से। मैंने पूछा क्या कर रहे हो?…
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कथा सुनो सुभाष की, अदम्य स्वाभिमान की। अज़ाद हिन्द फ़ौज के, पराक्रमी जवान की॥ अनन्य राष्ट्र प्रेम की, अतुल्य शौर्य त्याग की। सहस्त्र लक्ष वक्ष में, प्रचंड दग्ध आग की॥ सशस्त्र युद्ध राह पे, सदैव वो रहा डटा। समस्त विश्व साक्ष्य है, नहीं डरा नहीं हटा॥ असंख्य शत्रु देख के, गिरा न स्वेद भाल से। अभीष्ट लक्ष्य के लिए, लड़ा कराल काल से॥ अतीव कष्ट मार्ग में, …
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एक बोसा | कैफ़ी आज़मी जब भी चूम लेता हूँ उन हसीन आँखों को सौ चराग अँधेरे में जगमगाने लगते हैं फूल क्या शगूफे क्या चाँद क्या सितारे क्या सब रकीब कदमों पर सर झुकाने लगते हैं रक्स करने लगतीं हैं मूरतें अजन्ता की मुद्दतों के लब-बस्ता ग़ार गाने लगते हैं फूल खिलने लगते हैं उजड़े उजड़े गुलशन में प्यासी प्यासी धरती पर अब्र छाने लगते हैं लम्हें भर को ये दुन…
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घिसी पेंसिल | रघुवीर सहाय फिर रात आ रही है। फिर वक्त आ रहा है। जब नींद दुःख दिन को संपूर्ण कर चलेंगे एकांत उपस्थत हो, 'सोने चलो' कहेगा क्या चीज़ दे रही है यह शांति इस घड़ी में ? एकांत या कि बिस्तर या फिर थकान मेरी ? या एक मुड़े कागज़ पर एक घिसी पेंसिल तकिये तले दबाकर जिसको कि सो गया हूँ ?द्वारा Nayi Dhara Radio
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सीखो | श्रीनाथ सिंह फूलों से नित हँसना सीखो, भौंरों से नित गाना। तरु की झुकी डालियों से नित, सीखो शीश झुकाना! सीख हवा के झोकों से लो, हिलना, जगत हिलाना! दूध और पानी से सीखो, मिलना और मिलाना! सूरज की किरणों से सीखो, जगना और जगाना! लता और पेड़ों से सीखो, सबको गले लगाना! वर्षा की बूँदों से सीखो, सबसे प्रेम बढ़ाना! मेहँदी से सीखो सब ही पर, अपना रंग चढ़…
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अपाहिज व्यथा | दुष्यंत कुमार ‎ अपाहिज व्यथा को सहन कर रहा हूँ, तुम्हारी कहन थी, कहन कर रहा हूँ । ये दरवाज़ा खोलो तो खुलता नहीं है, इसे तोड़ने का जतन कर रहा हूँ । अँधेरे में कुछ ज़िन्दगी होम कर दी, उजाले में अब ये हवन कर रहा हूँ । वे सम्बन्ध अब तक बहस में टँगे हैं, जिन्हें रात-दिन स्मरण कर रहा हूँ । तुम्हारी थकन ने मुझे तोड़ डाला, तुम्हें क्या पता क…
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धूल | हेमंत देवलेकर धीरे-धीरे साथ छोड़ने लगते हैं लोग तब उन बेसहारा और यतीम होती चीज़ों को धूल अपनी पनाह में लेती है। धूल से ज़्यादा करुण और कोई नहीं संसार का सबसे संजीदा अनाथालय धूल चलाती है काश हम कभी धूल बन पाते यूं तो मिट्टी के छिलके से ज़्यादा हस्ती उसकी क्या पर उसके छूने से चीज़ें इतिहास होने लगती हैं। समय के साथ गाढ़ी होते जाना - धूल को प्रेम की त…
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दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के वीराँ है मय-कदा ख़ुम-ओ-साग़र उदास हैं तुम क्या गए कि रूठ गए दिन बहार के इक फ़ुर्सत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिन देखे हैं हम ने हौसले पर्वरदिगार के दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया तुझ से भी दिल-फ़रेब हैं ग़म रोज़गार के भूले…
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बेरोज़गार हम / शांति सुमन पिता किसान अनपढ़ माँ बेरोज़गार हैं हम जाने राम कहाँ से होगी घर की चिन्ता कम आँगन की तुलसी-सी बढ़ती घर में बहन कुमारी आसमान में चिड़िया-सी उड़ती इच्छा सुकुमारी छोटा भाई दिल्ली जाने का भरता है दम । पटवन के पैसे होते तो बिकती नहीं ज़मीन और तकाज़े मुखिया के ले जाते सुख को छीन पतले होते मेड़ों पर आँखें जाती है थम । जहाँ-तहाँ फटन…
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तुमसे मिलकर | गौरव तिवारी नदी अकेली होती है, पर उतनी नहीं जितनी अकेली हो जाती है सागर से मिलने के बाद। धरा अत्यधिक अकेली होती है क्षितिज पर, क्योंकि वहाँ मान लिया जाता है उसका मिलन नभ से। भँवरा भी तब तक नहीं होता तन्हा जब तक आकर्षित नहीं होता किसी फूल से। गलत है यह धारणा कि प्रेम कर देता है मनुष्य को पूरा मैं और भी अकेला हो गया हूँ, तुमसे मिलकर।…
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एक दुआ | कैफ़ी आज़मी अब और क्या तेरा बीमार बाप देगा तुझे बस एक दुआ कि ख़ुदा तुझको कामयाब करे वो टाँक दे तेरे आँचल में चाँद और तारे तू अपने वास्ते जिस को भी इंतख़ाब करेद्वारा Nayi Dhara Radio
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घटती हुई ऑक्सीजन | मंगलेश डबराल अकसर पढ़ने में आता है दुनिया में ऑक्सीजन कम हो रही है। कभी ऐन सामने दिखाई दे जाता है कि वह कितनी तेज़ी से घट रही है रास्तों पर चलता हूँ खाना खाता हूँ पढ़ता हूँ सोकर उठता हूँ एक लम्बी जम्हाई आती है जैसे ही किसी बन्द वातानुकूलित जगह में बैठता हूँ। उबासी का एक झोका भीतर से बाहर आता है एक ताक़तवर आदमी के पास जाता हूँ तो …
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हम औरतें | वीरेन डंगवाल रक्त से भरा तसला है रिसता हुआ घर के कोने-अंतरों में हम हैं सूजे हुए पपोटे प्यार किए जाने की अभिलाषा सब्जी काटते हुए भी पार्क में अपने बच्चों पर निगाह रखती हुई प्रेतात्माएँ हम नींद में भी दरवाज़े पर लगा हुआ कान हैं दरवाज़ा खोलते ही अपने उड़े-उड़े बालों और फीकी शक्ल पर पैदा होने वाला बेधक अपमान हैं हम हैं इच्छा-मृग वंचित स्वप्…
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नागरिक पराभव | कुमार अम्बुज बहुत पहले से प्रारंभ करूँ तो उससे डरता हूँ जो अत्यंत विनम्र है कोई भी घटना जिसे क्रोधित नहीं करती बात-बात में ईश्वर को याद करता है जो बहुत डरता हूँ अति धार्मिक आदमी से जो मारा जाएगा अगले दिन की बर्बरता में उसे प्यार करना चाहता हूँ कक्षा तीन में पढ़ रही पड़ोस की बच्ची को नहीं पता आने वाले समाज की भयावहता उसे नहीं पता उसके…
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करूँ प्रेम ख़ुद से | शिवानी शर्मा किसी के लिए हूँ मैं ममता की मूरत, किसी के लिए अब भी छोटी सी बेटी ll तजुर्बों ने किया संजीदा मुझको , पर किसी के लिए अब भी अल्हड़ सी छोटी॥ कहीं पे हूँ माहिर, कहीं पे अनाड़ी, कभी लाँघ जाऊँ मुश्किलों की पहाड़ी॥ कभी अनगिनत यूँ ही यादें पिरोती, कभी होके मायूस पलकें भिगोती॥ कभी संग अपनों के बाँटू मैं खुशियाँ, अकेले कभी ढे…
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दो मिनट का मौन | केदारनाथ सिंह भाइयो और बहनों यह दिन डूब रहा है। इस डूबते हुए दिन पर दो मिनट का मौन जाते हुए पक्षी पर रुके हुए जल पर घिरती हुई रात पर दो मिनट का मौन जो है उस पर जो नहीं है उस पर जो हो सकता था उस पर दो मिनट का मौन गिरे हुए छिलके पर टूटी हुई घास पर हर योजना पर हर विकास पर दो मिनट का मौन इस महान शताब्दी पर महान शताब्दी के महान इरादों प…
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बेचैन बहारों में क्या-क्या है / क़तील बेचैन बहारों में क्या-क्या है जान की ख़ुश्बू आती है जो फूल महकता है उससे तूफ़ान की ख़ुश्बू आती है कल रात दिखा के ख़्वाब-ए-तरब जो सेज को सूना छोड़ गया हर सिलवट से फिर आज उसी मेहमान की ख़ुश्बू आती है तल्कीन-ए-इबादत की है मुझे यूँ तेरी मुक़द्दस आँखों ने मंदिर के दरीचों से जैसे लोबान की ख़ुश्बू आती है कुछ और भी साँ…
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दौड़ | रामदरश मिश्र वह आगे-आगे था मैं उसके पीछे-पीछे मेरे पीछे अनेक लोग थे हाँ, यह दौड़-प्रतिस्पर्धा थी लक्ष्य से कुछ ही दूर पहले एकाएक उसकी चाल धीमी पड़ गयी और रुक गया मैं आगे निकल गया जीत के गर्वीले सुख के उन्माद से मैं झूम उठा उसके हार-जन्य दुख की कल्पना से मेरा सुख और भी उन्मत्त हो उठा मूर्ख कहीं का मैं मन ही मन भुनभुनाया उन्माद की हँसी हँसता ह…
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जैसे जब से तारा देखा | अज्ञेय क्या दिया-लिया? जैसे जब तारा देखा सद्यःउदित —शुक्र, स्वाति, लुब्धक— कभी क्षण-भर यह बिसर गया मैं मिट्टी हूँ; जब से प्यार किया, जब भी उभरा यह बोध कि तुम प्रिय हो— सद्यःसाक्षात् हुआ— सहसा देने के अहंकार पाने की ईहा से होने के अपनेपन (एकाकीपन!) से उबर गया। जब-जब यों भूला, धुल कर मंज कर एकाकी से एक हुआ। जिया।…
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साल मुबारक! | आशीष पण्ड्या साल मुबारक! भगवा हो या लाल, मुबारक! साल मुबारक! आज नया कल हुआ पुराना, टिक टिक करता काल मुबारक! पैसे की भूखी दुनिया को, थाल में रोटी-दाल मुबारक! चिंताओं से लदी चाँद पर, बचे खुचे कुछ बाल मुबारक! यहाँ पड़े हैं जान के लाले, वो कहते लोकपाल मुबारक! काली करतूतों की गठरी, धवल रेशमी शाल मुबारक! ग़ैरत! इज्ज़त! शर्म? निरर्थक, अब तो म…
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जीवन बचा है अभी | शलभ श्रीराम सिंह जीवन बचा है अभी ज़मीन के भीतर नमी बरक़रार है बरकरार है पत्थर के भीतर आग हरापन जड़ों के अन्दर साँस ले रहा है! जीवन बचा है अभी रोशनी खाकर भी हरकत में हैं पुतलियाँ दिमाग सोच रहा है जीवन के बारे में ख़ून दिल तक पहुँचने की कोशिश में है! जीवन बचा है अभी सूख गए फूल के आसपास है ख़ुशबू आदमी को छोड़कर भागे नहीं हैं सपने भाष…
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ईश्वर के बच्चे | आलोक आज़ाद क्या आपने ईश्वर के बच्चों को देखा है? ये अक्सर सीरिया और अफ्रीका के खुले मैदानों में धरती से क्षितिज की और दौड़ लगा रहे होते हैं ये अपनी माँ की कोख से ही मज़दूर है। और अपने पिता के पहले स्पर्श से ही युद्धरत है। ये किसी चमत्कार की तरह युद्ध में गिराए जा रहे खाने के थैलों के पास प्रकट हो जाते हैं। और किसी चमत्कार की तरह ही …
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सुख का दुख / भवानीप्रसाद मिश्र ज़िन्दगी में कोई बड़ा सुख नहीं है, इस बात का मुझे बड़ा दु:ख नहीं है, क्योंकि मैं छोटा आदमी हूँ, बड़े सुख आ जाएँ घर में तो कोई ऎसा कमरा नहीं है जिसमें उसे टिका दूँ। यहाँ एक बात इससे भी बड़ी दर्दनाक बात यह है कि, बड़े सुखों को देखकर मेरे बच्चे सहम जाते हैं, मैंने बड़ी कोशिश की है उन्हें सिखा दूँ कि सुख कोई डरने की चीज़ नह…
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वह मुझी में है भय | नंदकिशोर आचार्य एक अनन्त शून्य ही हो यदि तुम तो मुझे भय क्यों है ? कुछ है ही नहीं जब जिस पर जा गिरूँ चूर-चूर हो छितर जाऊँ उड़ जायें मेरे परखच्चे तब क्यों डरूँ? नहीं, तुम नहीं वह मुझी में है भय मुझ को जो मार देता है। और इसलिए वह रूप भी जो तुम्हें आकार देता है।द्वारा Nayi Dhara Radio
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एक आदमी दो पहाड़ों को कुहनियों से ठेलता | शमशेर बहादुर सिंह एक आदमी दो पहाड़ों को कुहनियों से ठेलता पूरब से पच्छिम को एक क़दम से नापता बढ़ रहा है कितनी ऊँची घासें चाँद-तारों को छूने-छूने को हैं जिनसे घुटनों को निकालता वह बढ़ रहा है अपनी शाम को सुबह से मिलाता हुआ फिर क्यों दो बादलों के तार उसे महज़ उलझा रहे हैं?…
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माँ, मोज़े, और ख़्वाब | प्रशांत पुरोहित माँ के हाथों से बुने मोज़े मैं अपने पाँवों में पहनता हूँ, सिर पे रखता हूँ। मेरे बचपन से कुछ बुनती आ रही है, सब उसी के ख़्वाब हैं जो दिल में रखता हूँ। पाँव बढ़ते गए, मोज़े घिसते-फटते गए, हर माहे-पूस में एक और ले रखता हूँ। मैं माँगता जाता हूँ, वो फिर दे देती है - और एक नया ख़्वाब नए रंगो-डिज़ाइन में मेरे सब जाड…
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दुख | मदन कश्यप दुख इतना था उसके जीवन में कि प्यार में भी दुख ही था उसकी आँखों में झाँका दुख तालाब के जल की तरह ठहरा हुआ था उसे बाँहों में कसा पीठ पर दुख दागने के निशान की तरह दिखा उसे चूमना चाहा दुख होंठों पर पपड़ियों की तरह जमा था उसे निर्वस्त्र करना चाहा उसने दुख पहन रखा था जिसे उतारना संभव नहीं था।…
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बचपन की वह नदी | नासिरा शर्मा बचपन की वह नदी जो बहती थी मेरी नसों में जाने कितनी बार उतारा है मैंने उसे अक्षरों में पढ़ने वाले करते हैं शिकायत यह नदी कहाँ है जिसका ज़िक्र है अकसर आपकी कहानियों में? कैसे कहूँ कि यादों का भी एक सच होता है जो वर्तमान में कहीं नज़र नहीं आता वर्तमान का अतीत हो जाना भी समय के बहने जैसा है जैसे वह नदी बहती थी कभी पिघली चा…
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डेली पैसेंजर | अरुण कमल मैंने उसे कुछ भी तो नहीं दिया इसे प्यार भी तो नहीं कहेंगे एक धुँधले-से स्टेशन पर वह हमारे डब्बे में चढ़ी और भीड़ में खड़ी रही कुछ देर सीकड़ पकड़े पाँव बदलती फिर मेरी ओर देखा और मैंने पाँव सीट से नीचे कर लिए और नीचे उतार दिया झोला उसने कुछ कहा तो नहीं था वह आ गई और मेरी बग़ल में बैठ गई धीरे से पीठ तख़्ते से टिकाई और लंबी साँस …
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देहरी | गीतू गर्ग बुढ़ा जाती है मायके की ढ्योडियॉं अशक्त होती मॉं के साथ.. अकेलेपन को सीने की कसमसाहट में भरने की आतुरता निढाल आशंकाओं में झूलती उतराती.. थाली में परसी एक तरकारी और दाल देती है गवाही दीवारों पर चस्पाँ कैफ़ियत की अब इनकी उम्र को लच्छेदार भोजन नहीं पचता मन को चलाना इस उमर में नहीं सजता होंठ भीतर ही भीतर फड़फड़ाते हैं बिटिया को खीर पसं…
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पूरा दिन | गुलज़ार मुझे खर्ची में पूरा एक दिन, हर रोज़ मिलता है मगर हर रोज़ कोई छीन लेता है, झपट लेता है, अंटी से कभी खीसे से गिर पड़ता है तो गिरने की आहट भी नहीं होती, खरे दिन को भी खोटा समझ के भूल जाता हूँ मैं गिरेबान से पकड़ कर मांगने वाले भी मिलते हैं "तेरी गुज़री हुई पुश्तों का कर्जा है, तुझे किश्तें चुकानी है " ज़बरदस्ती कोई गिरवी रख लेता है, …
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ओंठ | अशोक वाजपेयी तराशने में लगा होगा एक जन्मांतर पर अभी-अभी उगी पत्तियों की तरह ताज़े हैं। उन पर आयु की झीनी ओस हमेशा नम है उसी रास्ते आती है हँसी मुस्कुराहट वहीं खिलते हैं शब्द बिना कविता बने वहीं पर छाप खिलती है दूसरे ओठों की वह गुनगुनाती है समय की अँधेरी कंदरा में बैठा कालदेवता सुनता है वह हंसती है। बर्फ़ में ढँकी वनराशि सुगबुगाती है वह चूमती ह…
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सौंदर्य का आश्चर्यलोक | सविता सिंह बचपन में घंटों माँ को निहारा करती थी मुझे वह बेहद सुंदर लगती थी उसके हाथ कोमल गुलाबी फूलों की तरह थे पाँव ख़रगोश के पाँव जैसे उसकी आँखें सदा सपनों से सराबोर दिखतीं उसके लंबे काले बाल हर पल उलझाए रखते मुझे याद है सबसे ज़्यादा मैं उसके बालों से ही खेला करती थी उसे गूँथती फिर खोलती थी जब माँ नहा-धोकर तैयार होती साड़ी …
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संकट | मदन कश्यप अक्सर ताला उसकी ज़ुबान पर लगा होता है जो बहुत ज़्यादा सोचता है जो बहुत बोलता है उसके दिमाग पर ताला लगा होता है संकट तब बढ़ जाता है जब चुप्पा आदमी इतना चुप हो जाए कि सोचना छोड़ दे और बोलने वाला ऐसा शोर मचाये कि उसकी भाषा से विचार ही नहीं, शब्द भी गुम हो जाएँ!द्वारा Nayi Dhara Radio
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हम नदी के साथ-साथ | अज्ञेय हम नदी के साथ-साथ सागर की ओर गए पर नदी सागर में मिली हम छोर रहे: नारियल के खड़े तने हमें लहरों से अलगाते रहे बालू के ढूहों से जहाँ-तहाँ चिपटे रंग-बिरंग तृण-फूल-शूल हमारा मन उलझाते रहे नदी की नाव न जाने कब खुल गई नदी ही सागर में घुल गई हमारी ही गाँठ न खुली दीठ न धुली हम फिर, लौट कर फिर गली-गली अपनी पुरानी अस्ति की टोह में …
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सूई | रामदरश मिश्रा अभी-अभी लौटी हूँ अपनी जगह पर परिवार के एक पाँव में चुभा हुआ काँटा निकालकर फिर खोंस दी गयी हूँ धागे की रील में जहाँ पड़ी रहूंगी चुपचाप परिवार की हलचलों में अस्तित्वहीन-सी अदृश्य एकाएक याद आएगी नव गृहिणी को मेरी जब ऑफिस जाता उसका पति झल्लाएगा- अरे, कमीज़ का बटन टूटा हुआ है" गृहिणी हँसती हुई आएगी रसोईघर से और मुझे लेकर बटन टाँकने ल…
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दरार में उगा पीपल | अरविन्द अवस्थी ज़मीन से बीस फीट ऊपर किले की दीवार की दरार में उगा पीपल महत्वकांक्षा की डोर पकड़ लगा है कोशिश में ऊपर और ऊपर जाने की जीने के लिए खींच ले रहा है हवा से नमी सूरज से रोशनी अपने हिस्से की पत्तियाँ लहराकर दे रहा है सबूत अपने होने काद्वारा Nayi Dhara Radio
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क्या करूँ कोरा ही छोड़ जाऊँ काग़ज़? | अनूप सेठी क से लिखता हूँ कव्वा कर्कश क से कपोत छूट जाता है पंख फड़फड़ाता हुआ लिखना चाहता हूँ कला कल बनकर उत्पादन करने लगती है लिखता हूँ कर्मठ पढ़ा जाता है कायर डर जाता हूँ लिखूँगा क़ायदा अवतार लेगा उसमें से क़ातिल कैसा है यह काल कैसी काल की रचना-विरचना और कैसा मेरा काल का बोध बटी हुई रस्सी की तरह उलझते, छिटकते, टूटत…
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