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Ma, Mozey Aur Khwab | Prashant Purohit

2:12
 
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माँ, मोज़े, और ख़्वाब | प्रशांत पुरोहित

माँ के हाथों से बुने मोज़े

मैं अपने

पाँवों में पहनता हूँ, सिर पे रखता हूँ।

मेरे बचपन से कुछ बुनती आ रही है,

सब उसी के ख़्वाब हैं

जो दिल में रखता हूँ।

पाँव बढ़ते गए,

मोज़े घिसते-फटते गए,

हर माहे-पूस में

एक और ले रखता हूँ।

मैं माँगता जाता हूँ,

वो फिर दे देती है -

और एक नया ख़्वाब

नए रंगो-डिज़ाइन में

मेरे सब जाड़े नए-नए

फूले-फूले, गर्म-गर्म

ताज़े बुने मोज़ों की मौज में कटते हैं

कल मैंने माँ से कहा,

पाँवों का बढ़ना रुक गया है

अब नए मोज़े नहीं चाहिएँ।

माँ बोली,

चलना नहीं, पाँवों का बढ़ना रुका है,

और जाड़ा भी अभी कहाँ चुका है,

हर बरस जो आता है!

मेरे डिज़ाइन तो अभी और बाक़ी हैं,

वो सभी डिज़ाइन तुझे पहनाऊँगी

जाड़े से ज़्यादा चलते हैं मोज़े,

यह मैं मौसम को साबित कर दिखलाऊँगी।

  continue reading

682 एपिसोडस

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मैं अपने

पाँवों में पहनता हूँ, सिर पे रखता हूँ।

मेरे बचपन से कुछ बुनती आ रही है,

सब उसी के ख़्वाब हैं

जो दिल में रखता हूँ।

पाँव बढ़ते गए,

मोज़े घिसते-फटते गए,

हर माहे-पूस में

एक और ले रखता हूँ।

मैं माँगता जाता हूँ,

वो फिर दे देती है -

और एक नया ख़्वाब

नए रंगो-डिज़ाइन में

मेरे सब जाड़े नए-नए

फूले-फूले, गर्म-गर्म

ताज़े बुने मोज़ों की मौज में कटते हैं

कल मैंने माँ से कहा,

पाँवों का बढ़ना रुक गया है

अब नए मोज़े नहीं चाहिएँ।

माँ बोली,

चलना नहीं, पाँवों का बढ़ना रुका है,

और जाड़ा भी अभी कहाँ चुका है,

हर बरस जो आता है!

मेरे डिज़ाइन तो अभी और बाक़ी हैं,

वो सभी डिज़ाइन तुझे पहनाऊँगी

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यह मैं मौसम को साबित कर दिखलाऊँगी।

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