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Mann Ke Jheel Mein | Shashiprabha Tiwari

2:36
 
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मन के झील में | शशिप्रभा तिवारी

आज फिर

तुम्हारे मन के

झील की परिक्रमा कर रही हूं

धीरे-धीरे यादों की पगडंडी पर

गुज़रते हुए

वह पीपल का

पुराना पेड़ याद आया

उसके छांव में

बैठ कर

मुझसे बहुत सी

बातें तुम करते थे

मेरे कानों में

बहुत कुछ कह जाते

जो नज़रें मिला कर

नहीं कह पाते थे

क्या करूं गोविन्द!

बहुत रोकती हूं

मन कहा नहीं मानता

तुम द्वारका वासी

मैं बरसाने में बैठी

तुम्हें घड़ी-घड़ी

सुमरती हूं।

अनायास, बंशी की धुन

गूंजने लगती है

मेरे आस-पास

मेरा रोम-रोम

फिर, नाचने लगता है

और मैं भी

गुनगुनाने लगती हूं

तुम प्रेम हो

तुम प्रीत हो

तुम मनमीत हो

मनमोहन,

इसी प्रीत की रीत को

निभाया है, मैंने

और धीरे धीरे

मन के झील में

तुम्हें निहार कर

अपने मिलन के

नए सपने फिर संजोकर

नयनों को मूंदकर

खुद में तुम को

समा लेती हूं और

तुम्हारे भीतर मैं विलीन हो गई

फिर, मैं मैं नहीं रही

राधेश्याम बन गई।

राधे राधे, श्याम।

  continue reading

615 एपिसोडस

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आज फिर

तुम्हारे मन के

झील की परिक्रमा कर रही हूं

धीरे-धीरे यादों की पगडंडी पर

गुज़रते हुए

वह पीपल का

पुराना पेड़ याद आया

उसके छांव में

बैठ कर

मुझसे बहुत सी

बातें तुम करते थे

मेरे कानों में

बहुत कुछ कह जाते

जो नज़रें मिला कर

नहीं कह पाते थे

क्या करूं गोविन्द!

बहुत रोकती हूं

मन कहा नहीं मानता

तुम द्वारका वासी

मैं बरसाने में बैठी

तुम्हें घड़ी-घड़ी

सुमरती हूं।

अनायास, बंशी की धुन

गूंजने लगती है

मेरे आस-पास

मेरा रोम-रोम

फिर, नाचने लगता है

और मैं भी

गुनगुनाने लगती हूं

तुम प्रेम हो

तुम प्रीत हो

तुम मनमीत हो

मनमोहन,

इसी प्रीत की रीत को

निभाया है, मैंने

और धीरे धीरे

मन के झील में

तुम्हें निहार कर

अपने मिलन के

नए सपने फिर संजोकर

नयनों को मूंदकर

खुद में तुम को

समा लेती हूं और

तुम्हारे भीतर मैं विलीन हो गई

फिर, मैं मैं नहीं रही

राधेश्याम बन गई।

राधे राधे, श्याम।

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