कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
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Environment
सार्वजनिक
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सर्वश्रेष्ठ Environment पॉडकास्ट हम पा सकते हैं
सर्वश्रेष्ठ Environment पॉडकास्ट हम पा सकते हैं
With rising sea levels, changing climate and worsening pollution around the world, discussions concerning the environment have greatly intensified these recent years. And in order to spread environmental awareness to more people, scientists, environmentalists and nature lovers are making efforts to amplify their voices through podcasts.
Podcasts are shows you can easily access on the web. They can be your new source of entertainment and information. With your computer or phone, you can conveniently stream podcasts when you're connected to wi-fi. You can also download podcasts for offline listening.
If you want to hear stories, news and conversations about the environment, there's a lot of podcasts you can tune in to. Topics may range from ecology, nature appreciation, greentech and sustainability, as well as pressing issues like climate change, air and water pollution, and global warming.
Here are the best environment podcasts today, which you may start listening to. Stay informed and make Mother Nature proud!
This channel is for a “Sanatana-Hindu-Vedic-Arya”. This is providing education and awareness; not entertainment. This talks about views from tradition and lineage. It will cover different Acharayas talks on Spirituality, Scriptures, Nationalism, Philosophy, and Rituals. These collections are not recorded in professional studios using high-end equipment, it is from traditional teachings environment. We are having the objective to spread the right things to the right people for the Sanatana Hi ...
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Sau Baaton Ki Ek Baat | Ramanath Awasthi
1:59
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1:59सौ बातों की एक बात - रमानाथ अवस्थी सौ बातों की एक बात है. रोज़ सवेरे रवि आता है दुनिया को दिन दे जाता है लेकिन जब तम इसे निगलता होती जग में किसे विकलता सुख के साथी तो अनगिन हैं लेकिन दुःख के बहुत कठिन हैं सौ बातो की एक बात है. अनगिन फूल नित्य खिलते हैं हम इनसे हँस-हँस मिलते हैं लेकिन जब ये मुरझाते हैं तब हम इन तक कब जाते हैं जब तक हममे साँस रहेगी त…
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आँच | वंदना मिश्रा गर्मियों में तेज़ आँच देखकर माँ कहती थी : 'आग अपने मायके आई है' और फिर चूल्हे की लकड़ियाँ कम कर दी जाती थीं मैं कहती थी : 'मायके में तो उसे अच्छे से रहने दो माँ कम क्यों कर रही हो?' माँ कहती थी : 'ये लड़की प्रश्न बहुत पूछती है।' बाद में समझ आया प्रश्न पूछने से मना करना आग कम करने की तरफ़ बढ़ा पहला क़दम होता है।…
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ज़ूमिंग |अशफ़ाक़ हुसैन देखूँ जो आसमाँ से तो इतनी बड़ी ज़मीं इतनी बड़ी ज़मीन पे छोटा सा एक शहर छोटे से एक शहर में सड़कों का एक जाल सड़कों के जाल में छुपी वीरान सी गली वीराँ गली के मोड़ पे तन्हा सा इक शजर तन्हा शजर के साए में छोटा सा इक मकान छोटे से इक मकान में कच्ची ज़मीं का सहन कच्ची ज़मीं के सहन में खिलता हुआ गुलाब खिलते हुए गुलाब में महका हुआ बदन मह…
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पगली आरज़ू | नासिरा शर्मा कहा था मैंने तुमसे उस गुलाबी जाड़े की शुरुआत में उड़ना चाहती हूँ मैं तुम्हारे साथ खुले आसमान में चिड़ियाँ उड़ती हैं जैसे अपने जोड़ों के संग नापतीं हैं आसमान की लम्बाई और चौड़ाई नज़ारा करती हैं धरती का, झांकती हैं घरों में पार करती हैं पहाड़, जंगल और नदियाँ फिर उतरती हैं ज़मीन पर, चुगती हैं दाना सुस्ताती किसी पेड़ की शाख़ पर…
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Hanso Ek Bachhe Ki Tarah | Amita Prajapati
1:15
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1:15हँसो एक बच्चे की तरह | अमिता प्रजापति तुम प्यार को पृथ्वी मान कर मत घूमो हर्क्यूलिस की तरह मत झुकाओ इसके वज़न से अपनी गर्दन धीरे से सरका के इसे गिरा लो अपने पैरों में उछालो गेंद की तरह हँसो एक बच्चे की तरह...द्वारा Nayi Dhara Radio
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धार | अरुण कमल कौन बचा है जिसके आगे इन हाथों को नहीं पसारा यह अनाज जो बदल रक्त में टहल रहा है तन के कोने-कोने यह क़मीज़ जो ढाल बनी है बारिश सर्दी लू में सब उधार का, माँगा-चाहा नमक-तेल, हींग-हल्दी तक सब क़र्ज़े का यह शरीर भी उनका बंधक अपना क्या है इस जीवन में सब तो लिया उधार सारा लोहा उन लोगों का अपनी केवल धार…
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Us Plumber Ka Naam Kya Hai | Rajesh Joshi
3:03
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3:03उस प्लम्बर का नाम क्या है | राजेश जोशी मैं दुनिया के कई तानाशाहों की जीवनियाँ पढ़ चुका हूँ कई खूँखार हत्यारों के बारे में भी जानता हूँ बहुत कुछ घोटालों और यौन प्रकरणों में चर्चित हुए कई उच्च अधिकारियों के बारे में तो बता सकता हूँ ढेर सारी अंतरंग बातें और निहायत ही नाकारा क़िस्म के राजनीतिज्ञों के बारे में घंटे भर तक बोल सकता हूँ धारा प्रवाह लेकिन घं…
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Rang Is Mausam Mein Bharna Chahiye | Anjum Rehbar
1:36
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1:36रंग इस मौसम में भरना चाहिए | अंजुम रहबर रंग इस मौसम में भरना चाहिए सोचती हूँ प्यार करना चाहिए ज़िंदगी को ज़िंदगी के वास्ते रोज़ जीना रोज़ मरना चाहिए दोस्ती से तज्रबा ये हो गया दुश्मनों से प्यार करना चाहिए प्यार का इक़रार दिल में हो मगर कोई पूछे तो मुकरना चाहिएद्वारा Nayi Dhara Radio
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कवि का घर | रामदरश मिश्र गेन्दे के बड़े-बड़े जीवन्त फूल बेरहमी से होड़ लिए गए और बाज़ार में आकर बिकने लगे बाज़ार से ख़रीदे जाकर वे पत्थर के चरणों पर चढ़ा दिए गए फिर फेंक दिए गए कूड़े की तरह मैं दर्द से भर आया और उनकी पंखुड़ियाँ रोप दीं अपनी आँगन-वाटिका की मिट्टी में अब वे लाल-लाल, पीले-पीले, बड़े-बड़े फूल बनकर दहक रहे हैं मैं उनके बीच बैठकर उनसे सम…
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तुमने मुझे | शमशेर बहादुर सिंह तुमने मुझे और गूँगा बना दिया एक ही सुनहरी आभा-सी सब चीज़ों पर छा गई मै और भी अकेला हो गया तुम्हारे साथ गहरे उतरने के बाद मैं एक ग़ार से निकला अकेला, खोया हुआ और गूँगा अपनी भाषा तो भूल ही गया जैसे चारों तरफ़ की भाषा ऐसी हो गई जैसे पेड़-पौधों की होती है नदियों में लहरों की होती है हज़रत आदम के यौवन का बचपना हज़रत हौवा क…
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आदत | गुलज़ार साँस लेना भी कैसी आदत है जिए जाना भी क्या रिवायत है कोई आहट नहीं बदन में कहीं कोई साया नहीं है आँखों में पाँव बेहिस हैं चलते जाते हैं इक सफ़र है जो बहता रहता है कितने बरसों से कितनी सदियों से जिए जाते हैं जिए जाते हैं आदतें भी अजीब होती हैंद्वारा Nayi Dhara Radio
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औरतें | शुभा औरतें मिट्टी के खिलौने बनाती हैं मिट्टी के चूल्हे और झाँपी बनाती हैं औरतें मिट्टी से घर लीपती हैं मिट्टी के रंग के कपड़े पहनती हैं और मिट्टी की तरह गहन होती हैं औरतें इच्छाएँ पैदा करती हैं और ज़मीन में गाड़ देती हैं औरतों की इच्छाएँ बहुत दिनों में फलती हैंद्वारा Nayi Dhara Radio
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Swapn Mein Pita | Ghulam Mohammad Sheikh
2:23
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2:23स्वप्न में पिता | ग़ुलाम मोहम्मद शेख़ बापू, कल तुम फिर से दिखे घर से हज़ारों योजन दूर यहाँ बाल्टिक के किनारे मैं लेटा हूँ यहीं, खाट के पास आकर खड़े आप इस अंजान भूमि पर भाइयों में जब सुलह करवाई तब पहना था वही थिगलीदार, मुसा हुआ कोट, दादा गए तब भी शायद आप इसी तरह खड़े होंगे अकेले दादा का झुर्रीदार हाथ पकड़। आप काठियावाड़ छोड़कर कब से यहाँ क्रीमिया के…
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उस दिन | रूपम मिश्र उस दिन कितने लोगों से मिली कितनी बातें , कितनी बहसें कीं कितना कहा ,कितना सुना सब ज़रूरी भी लगा था पर याद आते रहे थे बस वो पल जितनी देर के लिए तुमसे मिली विदा की बेला में हथेली पे धरे गये ओठ देह में लहर की तरह उठते रहे कदम बस तुम्हारी तरफ उठना चाहते थे और मैं उन्हें धकेलती उस दिन जाने कहाँ -कहाँ भटकती रही वे सारी जगहें मेरी नहीं …
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मनुष्य - विमल चंद्र पाण्डेय मुझे किसी की मृत्यु की कामना से बचना है चाहे वो कोई भी हो चाहे मैं कितने भी क्रोध में होऊँ और समय कितना भी बुरा हो सामने वाला मेरा कॉलर पकड़ कर गालियाँ देता हुआ क्यों न कर रहा हो मेरी मृत्यु का एलान मुझे उसकी मृत्यु की कामना से बचना है यह समय मौतों के लिए मुफ़ीद है मनुष्यों की अकाल मौत का कोलाज़ रचता हुआ फिर भी मैं मरते हु…
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अपने प्रेम के उद्वेग में | अज्ञेय अपने प्रेम के उद्वेग में मैं जो कुछ भी तुमसे कहता हूँ, वह सब पहले कहा जा चुका है। तुम्हारे प्रति मैं जो कुछ भी प्रणय-व्यवहार करता हूँ, वह सब भी पहले हो चुका है। तुम्हारे और मेरे बीच में जो कुछ भी घटित होता है उससे एक तीक्ष्ण वेदना-भरी अनुभूति मात्र होती है—कि यह सब पुराना है, बीत चुका है, कि यह अभिनय तुम्हारे ही जी…
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तुम | अदनान कफ़ील दरवेश जब जुगनुओं से भर जाती थी दुआरे रखी खाट और अम्मा की सबसे लंबी कहानी भी ख़त्म हो जाती थी उस वक़्त मैं आकाश की तरफ़ देखता और मुझे वह ठीक जुगनुओं से भरी खाट लगता कितना सुंदर था बचपन जो झाड़ियों में चू कर खो गया मैं धीरे-धीरे बड़ा हुआ और जवान भी और तुम मुझे ऐसे मिले जैसे बचपन की खोई गेंद मैंने तुम्हें ध्यान से देखा मुझे अम्मा की याद आ…
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प्रेम के प्रस्थान | अनुपम सिंह सुनो, एक दिन बन्द कमरे से निकलकर हम दोनों पहाड़ों की ओर चलेंगे या फिर नदियों की ओर नदी के किनारे, जहाँ सरपतों के सफ़ेद फूल खिले हैं। या पहाड़ पर जहाँ सफ़ेद बर्फ़ उज्ज्वल हँसी-सी जमी है दरारों में और शिखरों पर काढेंगे एक दुसरे की पीठ पर रात का गाढ़ा फूल इस बार मैं नहीं तुम मेरे बाजुओं पर रखना अपना सिर मैं तुम्हें दूँगी…
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Dhoop Bhi To Barish Hai | Shahanshah Alam
1:41
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1:41धूप भी तो बारिश है | शहंशाह आलम धूप भी तो बारिश है बारिश बहती है देह पर धूप उतरती है नेह पर मेरे संगीतज्ञ ने मुझे बताया धूप है तो बारिश है बारिश है तो धूप है मैंने जिससे प्रेम किया उसको बताया तुम हो तो ताप और जल दोनों है मेरे अंदर।द्वारा Nayi Dhara Radio
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Jo Ulajhkar Reh Gayi Hai Filon Ke Jaal Mein | Adam Gondvi
1:48
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1:48जो उलझकर रह गई है फ़ाइलों के जाल में | अदम गोंडवी जो उलझकर रह गई है फ़ाइलों के जाल में गाँव तक वह रौशनी आएगी कितने साल में बूढ़ा बरगद साक्षी है किस तरह से खो गई रमसुधी की झोंपड़ी सरपंच की चौपाल में खेत जो सीलिंग के थे सब चक में शामिल हो गए हमको पट्टे की सनद मिलती भी है तो ताल में जिसकी क़ीमत कुछ न हो इस भीड़ के माहौल में ऐसा सिक्का ढालिए मत जिस्म की टकसा…
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लड़ाई के समाचार | नवीन सागर लड़ाई के समाचार दूसरे सारे समाचारों को दबा देते हैं छा जाते हैं शांति के प्रयासों की प्रशंसा करते हुए हम अपनी उत्तेजना में मानो चाहते हैं युद्ध जारी रहे। फिर अटकलों और सरगर्मियों का दौर जिसमें फिर युद्ध छिड़ने की गुंजाइश दिखती है। युद्ध रोमांचित करता है! ध्वस्त आबादियों के चित्र देखने का ढंग बाद में शर्मिंदा करता है अकेल…
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खाना बनाती स्त्रियाँ | कुमार अम्बुज जब वे बुलबुल थीं उन्होंने खाना बनाया फिर हिरणी होकर फिर फूलों की डाली होकर जब नन्ही दूब भी झूम रही थी हवाओं के साथ जब सब तरफ़ फैली हुई थी कुनकुनी धूप उन्होंने अपने सपनों को गूँधा हृदयाकाश के तारे तोड़कर डाले भीतर की कलियों का रस मिलाया लेकिन आख़िर में उन्हें सुनाई दी थाली फेंकने की आवाज़ आपने उन्हें सुंदर कहा तो …
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Ek Bahut Hi Tanmay Chuppi | Bhavani Prasad Mishra
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1:45एक बहुत ही तन्मय चुप्पी | भवानीप्रसाद मिश्र एक बहुत ही तन्मय चुप्पी ऐसी जो माँ की छाती में लगाकर मुँह चूसती रहती है दूध मुझसे चिपककर पड़ी है और लगता है मुझे यह मेरे जीवन की लगभग सबसे निविड़ ऐसी घड़ी है जब मैं दे पा रहा हूँ स्वाभाविक और सुख के साथ अपने को किसी अनोखे ऐसे सपने को जो अभी-अभी पैदा हुआ है और जो पी रहा है मुझे अपने साथ-साथ जो जी रहा है मुझ…
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देना | नवीन सागर जिसने मेरा घर जलाया उसे इतना बड़ा घर देना कि बाहर निकलने को चले पर निकल न पाए जिसने मुझे मारा उसे सब देना मृत्यु न देना जिसने मेरी रोटी छीनी उसे रोटियों के समुद्र में फेंकना और तूफ़ान उठाना जिनसे मैं नहीं मिला उनसे मिलवाना मुझे इतनी दूर छोड़ आना कि बराबर संसार में आता रहूँ अगली बार इतना प्रेम देना कि कह सकूँ प्रेम करता हूँ और वह मे…
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Ek Baar Kaho Tum Meri Ho | Ibn e Insha
2:08
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2:08इक बार कहो तुम मेरी हो | इब्न-ए-इंशा हम घूम चुके बस्ती बन में इक आस की फाँस लिए मन में कोई साजन हो कोई प्यारा हो कोई दीपक हो, कोई तारा हो जब जीवन रात अँधेरी हो इक बार कहो तुम मेरी हो जब सावन बादल छाए हों जब फागुन फूल खिलाए हों जब चंदा रूप लुटाता हो जब सूरज धूप नहाता हो या शाम ने बस्ती घेरी हो इक बार कहो तुम मेरी हो हाँ दिल का दामन फैला है क्यूँ गोर…
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Mere Ekant Ka Pravesh Dwar | Nirmala Putul
2:14
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2:14मेरे एकांत का प्रवेश-द्वार | निर्मला पुतुल यह कविता नहीं मेरे एकांत का प्रवेश-द्वार है यहीं आकर सुस्ताती हूँ मैं टिकाती हूँ यहीं अपना सिर ज़िंदगी की भाग-दौड़ से थक-हारकर जब लौटती हूँ यहाँ आहिस्ता से खुलता है इसके भीतर एक द्वार जिसमें धीरे से प्रवेश करती मैं तलाशती हूँ अपना निजी एकांत यहीं मैं वह होती हूँ जिसे होने के लिए मुझे कोई प्रयास नहीं करना प…
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लफ़्ज़ों का पुल | निदा फ़ाज़ली मस्जिद का गुम्बद सूना है मंदिर की घंटी ख़ामोश जुज़दानों में लिपटे आदर्शों को दीमक कब की चाट चुकी है रंग गुलाबी नीले पीले कहीं नहीं हैं तुम उस जानिब मैं इस जानिब बीच में मीलों गहरा ग़ार लफ़्ज़ों का पुल टूट चुका है तुम भी तन्हा मैं भी तन्हाद्वारा Nayi Dhara Radio
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Ramayana Mein Mahabharat | Avtar Engill
2:09
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2:09रामायण में महाभारत | अवतार एनगिल रविवार की सुबह उस औरत ने बड़ी मुश्किल से पति और बच्चों को जगाया किसी को ब्रश किसी को बनियान किसी को तौलिया थमाया चूल्हे के सामने खड़ी जैसे चौखटे में जड़ी बड़े के लिए लिए परांठे छोटों को ऑमलेट ’उनके’ लिए कम नमक वाला सासु के लिए नरम ससुर के लिए गरम अलग अलग अलग नाश्ते बना रही है और उसकी सासु माँ चौपाईयाँ गा रही है टी-व…
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Tumhare Bagair Ladna | Vihaag Vaibhav
2:51
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2:51तुम्हारे बग़ैर लड़ना | विभाग वैभव तुम्हारे जाने के बाद मैं राह के पत्थर जितना अकेला रहा फिर एक दिन सिसकियों को एक खाली कैसेट में डालकर किताबों के बीच छिपा दिया बहुत से लोग थे जिन्हें फूलों की ज़रुरत थी मैंने माली का काम किया किसी कमज़ोर के खेत का पानी किसी ने लाठी के दम पर काट लिया दोस्तों को जुटाया हड्डियों को चूम लेने वाली सर्दियों की रातों में घुटने…
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Sitaron Se Ulajhta Ja Raha Hun | Firaq Gorakhpuri
2:10
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2:10सितारों से उलझता जा रहा हूँ | फ़िराक़ गोरखपुरी सितारों से उलझता जा रहा हूँ शब-ए-फ़ुरक़त बहुत घबरा रहा हूँ यक़ीं ये है हक़ीक़त खुल रही है गुमाँ ये है कि धोखे खा रहा हूँ इन्ही में राज़ हैं गुल-बारियों के मै जो चिंगारियाँ बरसा रहा हूँ तेरे पहलू में क्यों होता है महसूस कि तुझसे दूर होता जा रहा हूँ जो उलझी थी कभी आदम के हाथों वो गुत्थी आज तक सुलझा रहा हू…
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आपके लिए | अजय दुर्ज्ञेय आप यहां से जाइये! आप जब मेरी कविताएँ सुनेंगे तो ऐसा लगेगा कि जैसे कोई दशरथ-मांझी पहाड़ पर बजा रहा हो हथौडे मैं जब बोलूंगा तो आपको लगेगा कि मैं आपके कपड़े उतार रहा हूँ और न केवल उतार रहा हूँ बल्कि उन्हीं कपड़ों से अपनी विजय पताका बना रहा हूँ मैं जब अपने हक़ की कविता पढ़ंगा तो आपको लगेगा कि छीन रहा हूँ आपकी गद्दी, छीन रहा हूँ…
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Jab Teri Samundar Aankhon Mein | Faiz Ahmed Faiz
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1:38जब तेरी समुंदर आँखों में | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ये धूप किनारा शाम ढले मिलते हैं दोनों वक़्त जहाँ जो रात न दिन जो आज न कल पल-भर को अमर पल भर में धुआँ इस धूप किनारे पल-दो-पल होंटों की लपक बाँहों की छनक ये मेल हमारा झूठ न सच क्यूँ रार करो क्यूँ दोश धरो किस कारण झूठी बात करो जब तेरी समुंदर आँखों में इस शाम का सूरज डूबेगा सुख सोएँगे घर दर वाले और राही अपनी …
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Kabhi Kabhi Jeevan Mein | Laxmishankar Vajpeyi
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1:49कभी कभी जीवन में ऐसे भी क्षण आये | लक्ष्मीशंकर वाजपेयी कभी कभी जीवन में ऐसे भी कुछ क्षण आये कहना चाहा पर होठों से बोल नहीं फूटे। महज़ औपचारिकता अक्सर होठों तक आयी रहा अनकहा जो उसको, बस नज़र समझ पायी कभी कभी तो मौन ढल गया जैसे शब्दों में और शब्द कोशों वाले सब शब्द लगे झूठे कहना चाहा पर होठों से शब्द नही फूटे। जिनसे न था खून का नाता, रिश्तों का बंधन …
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जगह | विश्वनाथ प्रसाद तिवारी खड़े-खड़े मेरे पाँव दुखने लगे थे थोड़ी-सी जगह चाहता था बैठने के लिए कलि को मिल गया था राजा परीक्षेत का मुकुट मैं बिलबिलाता रहा कोने-अँतरे जगह, हाय जगह सभी बेदखल थे अपनी अपनी जगह से रेल में मुसाफिरों के लिए गुरुकुलों में वटुकों के लिए शहर में पशुओं आकाश में पक्षियों सागर में जलचरों पृथ्वी पर वनस्पतियों के लिए नहीं थी जगह…
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Gar Humne Dil Sanam Ko Diya | Nazeer Akbarabadi
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1:57गर हम ने दिल सनम को दिया | नज़ीर अकबराबादी गर हम ने दिल सनम को दिया फिर किसी को क्या इस्लाम छोड़ कुफ़्र लिया फिर किसी को क्या क्या जाने किस के ग़म में हैं आँखें हमारी लाल ऐ हम ने गो नशा भी पिया फिर किसी को क्या आफी किया है अपने गिरेबाँ को हम ने चाक आफी सिया सिया न सिया फिर किसी को क्या उस बेवफ़ा ने हम को अगर अपने इश्क़ में रुस्वा किया ख़राब किया फिर…
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Jis Ka Koi Intezaar Na Kar Raha Ho | Afzal Ahmed Sayyid
1:43
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1:43जिस का कोई इंतिज़ार न कर रहा हो/ अफ़ज़ाल अहमद सय्यद जिस का कोई इंतिज़ार न कर रहा हो उसे नहीं जाना चाहिए वापस आख़िरी दरवाज़ा बंद होने से पहले जिस का कोई इंतिज़ार न कर रहा हो उसे नहीं फिरना चाहिए बे-क़रार एक ख़ूबसूरत राहदारी में जब तक वो वीरान न हो जाए जिस का कोई इंतिज़ार न कर रहा हो उसे नहीं जुदा करना चाहिए ख़ून-आलूद पाँव से एक पूरा सफ़र जिस का कोई इं…
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Ek Lamhe Se Doosre Lamhe Tak | Shaharyar
1:30
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1:30एक लम्हे से दूसरे लम्हे तक | शहरयार एक आहट अभी दरवाज़े पे लहराई थी एक सरगोशी अभी कानों से टकराई थी एक ख़ुश्बू ने अभी जिस्म को सहलाया था एक साया अभी कमरे में मिरे आया था और फिर नींद की दीवार के गिरने की सदा और फिर चारों तरफ़ तेज़ हवा!!द्वारा Nayi Dhara Radio
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Chidimaar Ne Chidiya Maari | Kedarnath Aggarwal
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1:48चिड़ीमार ने चिड़िया मारी | केदारनाथ अग्रवाल हे मेरी तुम! चिड़ीमार ने चिड़िया मारी; नन्नी-मुन्नी तड़प गई प्यारी बेचारी। हे मेरी तुम! सहम गई पौधों की सेना, पाहन-पाथर हुए उदास; हवा हाय कर ठिठकी ठहरी; पीली पड़ी धूप की देही। हे मेरी तुम! अब भी वह चिड़िया ज़िंदा है मेरे भीतर, नीड़ बनाये मेरे दिल में, सुबुक-सुबुक कर चूँ-चूँ करती चिड़ीमार से डरी-डरी-सी।…
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घरौंदे | अवतार एनगिल सागर किनारे खेलते दो बच्चों ने मिलकर घरौंदे बनाए देखते-देखते लहरों के थपेड़े आए उनके घर गिराए और भागकर सागर में जा छिपे माना, कि सदैव ऎसा हुआ तो भी किसी भी सागर के किसी भी तट पर कहीं भी कभी भी बच्चों ने घरौंदे बनाने बन्द नहीं किएद्वारा Nayi Dhara Radio
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गवेषणा | आकाश इस नुमाइश मे ईश्वर खोज रहा हूँ, बच्चों की मानिंद बौराया हुआ, इस दुकान से उस दुकान, उथली रौशनी की परिधि के भीतर, चमकीली भीड़ में घिरे, जहाँ केवल नीरसता और बीरानगी विद्यमान है। इस नुमाइश में, मैं अस्पष्ट अज्ञात लय में चलता हूँ, और घूमकर पाता हूँ स्वयं को निहत्था, निराश और पराजित। छान आया हूँ आस्था की चार दीवारी, लाँघ लिए हैं प्रकाश के प…
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Char Aur Panktiyan | Prabhakar Machve
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1:07चार और पंक्तियाँ | प्रभाकर माचवे जब दिल ने दिल को जान लिया जब अपना-सा सब मान लिया तब ग़ैर-बिराना कौन बचा यदि बचा सिर्फ़ तो मौन बचाद्वारा Nayi Dhara Radio
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नावें | नरेश सक्सेना नावों ने खिलाए हैं फूल मटमैले क्या उन्हें याद है कि वे कभी पेड़ बनकर उगी थीं नावें पार उतारती हैं ख़ुद नहीं उतरतीं पार नावें धार के बीचों-बीच रहना चाहती हैं तैरने न दे उस उथलेपन को समझती हैं ठीक-ठीक लेकिन तैरने लायक गहराई से ज़्यादा के बारे में कुछ भी नहीं जानतीं नावें बाढ़ उतरने के बाद वे अकसर मिलती हैं छतों या पेड़ों पर चढ़ी हुईं…
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सुंदरियों | नीलेश रघुवंशी मत आया करो तुम सम्मान समारोहों में तश्तरी, शाल और श्रीफल लेकर दीप प्रज्वलन के समय मत खड़ी रहा करो माचिस और दीया -बाती के संग मंच पर खड़े होकर मत बाँचा करो अभिनंदन पत्र उपस्थिति को अपनी सिर्फ मोहक और दर्शनीय मत बनने दिया करो सुंदरियो, तुम ऐसा करके तो देखो बदल जाएगी ये दुनिया सारी।…
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Nahi Dunga Naam | Nandkishore Acharya
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1:40नहीं दूँगा नाम | नंदकिशोर आचार्य नहीं दूँगा तुम्हें कोई नाम। जूही की कली, कलगी बाजरे की छरहरी, या और कुछ। नाम देना पहचान को जड़ करना है मैं तो तुम्हें हर बार आविष्कृत करता हूँ। नाम देकर तुम्हे तीसरा नहीं करूँगा क्यों कि तुम सम्पूर्ण मेरी हो तुम्हें तुम ही कहूँगा कोई नाम नहीं दूँगा।द्वारा Nayi Dhara Radio
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रिश्तेदारी | लक्ष्मीशंकर वाजपेयी नहीं, यह भी संभव नहीं होता कि उनके शहर जाकर भी जाया ही न जाय रिश्तेदारों के घर अकसर कुछ एहसान लदे होते हैं उनके बुज़ुर्गों के अपने बुज़ुर्गों पर ऐसा कुछ न भी हो, तो ज़रूरी होता है लोकाचार निभाना किंतु अकसर खड़ी हो जाती है समस्या कि पत्नी की कुशलक्षेम, बच्चों की सुचारू पढ़ाई का विवरण दे देने तथा ’और क्या हाल-चाल हैं‘ का…
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अब्बास मियाँ | नीरव पंद्रह बीघे की खेती अकेले संभालने वाले अब्बास मियाँ हमारे हरवाहे थे हम काका कहते थे उन्हें हम सुनते बड़े हुए थे काका खानदानी शहनाई वादक थे अपने ज़माने में बहुत मशहूर दूर-दूर तक उनके सुरों की गूंज थी हमारे बाबा भी एक क़िस्सा बताते थे काशी में काका को एक दफे उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के सामने शहनाई बजाने का मौका मिला था और उस्ताद ने पी…
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क्या काम | मंगलेश डबराल आप दिखते हैं बहुत उदास आपको इस शहर में क्या काम आपके भीतर भरा है ग़ुस्सा आपको इस शहर में क्या काम आप सफलता नहीं चाहते नहीं चाहते ताक़त जो मिल जाए उसे छोड़ कुछ नहीं माँगते आपको इस शहर में क्या काम आप तुरंत लपकते नहीं और न खिलखिल करते हाथ जेब में डाले चलते रोज़ रात में पाते ख़ुद को लहूलुहान आपको इस शहर में क्या काम।…
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मेरा आँगन, मेरा पेड़ | जावेद अख़्तर मेरा आँगन कितना कुशादा फैला हुआ कितना बड़ा था जिसमें मेरे सारे खेल समा जाते थे और आँगन के आगे था वह पेड़ कि जो मुझसे काफ़ी ऊँचा था लेकिन मुझको इसका यकीं था जब मैं बड़ा हो जाऊँगा इस पेड़ की फुनगी भी छू लूँगा बरसों बाद मैं घर लौटा हूँ देख रहा हूँ ये आँगन कितना छोटा है पेड़ मगर पहले से भी थोड़ा ऊँचा है…
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बालश्रम| पवन सैन मासूम छणकु साफ़ कर रहा है चाय के झूठे गिलास इसलिए नहीं कि उसके नन्हें हाथ सरलता से पहुँच पा रहे हैं गिलास की तह तक बल्कि इसलिए कि उसके घर में भी हों झूठे बर्तन जो चमचमा रहे हैं एक अरसे से अन्न के अभाव में। दुकिया पहुँचा रहा है चाय ठेले से दुकानों, चौकों तक इसलिए नहीं कि वह नन्हें पाँवों से तेज़ दौड़ता है बल्कि इसलिए कि उसके शराबी पित…
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मकान की ऊपरी मंज़िल पर | गुलज़ार वो कमरे बंद हैं कब से जो चौबीस सीढ़ियां जो उन तक पहुँचती थी, अब ऊपर नहीं जाती मकान की ऊपरी मंज़िल पर अब कोई नहीं रहता वहाँ कमरों में, इतना याद है मुझको खिलौने एक पुरानी टोकरी में भर के रखे थे बहुत से तो उठाने, फेंकने, रखने में चूरा हो गए वहाँ एक बालकनी भी थी, जहां एक बेंत का झूला लटकता था मेरा एक दोस्त था, तोता, वो र…
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