Kumhaar Akela Shaks Hota Hai | Shahanshah Alam
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कुम्हार अकेला शख़्स होता है | शहंशाह आलम
जब तक एक भी कुम्हार है
जीवन से भरे इस भूतल पर
और मिट्टी आकार ले रही है
समझो कि मंगलकामनाएं की जा रही हैं
नदियों के अविरत बहते रहने की
कितना अच्छा लगता है
मंगलकामनाएं की जा रही हैं अब भी
और इस बदमिजाज़ व खुर्राट सदी में
कुम्हार काम-भर मिट्टी ला रहा है
कुम्हार जब सुस्ताता बीड़ी पीता है
बीवी उसकी आग तैयार करती है
ऊर्जा से भरी हुई
इतिहासकार इतिहास के बारे में चिंतित होते हैं
श्रेष्ठजन अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने में भिड़े होते हैं
अंधकार को चीरने हेतु
ख़ुद को तैयार कर रहा होता है कवि
कुम्हार अकेला शख़्स होता है
जो पैदल पुलिस के साथ
शिकारी कुत्तों की भीड़ देखकर
न बौखलाता है
न उत्तेजित होता है
हालांकि उसको पता है
उसके बनाए बर्तन
खिलौने, कैमरामैन
अंतरिक्षयात्री, जहाज़ी
अबाबील व दूसरी चिड़ियाँ
सब के सब
मौक़े की तलाश में हैं
किसी दूसरे ग्रह पर चले जाने के लिए
कुम्हार अकेला शख़्स होता है
जो नेपथ्य में बैठी उद्घोषिका से कहता है
हम मिट्टी से और मिट्टी के रंगवाली
पृथ्वी से प्रेम करते रहेंगे
दुनिया के बचे रहने तक।
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