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Furniture | Anamika

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फ़र्नीचर | अनामिका

मैं उनको रोज़ झाड़ती हूँ

पर वे ही हैं इस पूरे घर में

जो मुझको कभी नहीं झाड़ते!

रात को जब सब सो जाते हैं—

अपने इन बरफाते पाँवों पर

आयोडिन मलती हुई सोचती हूँ मैं—

किसी जनम में मेरे प्रेमी रहे होंगे फ़र्नीचर,

कठुआ गए होंगे किसी शाप से ये!

मैं झाड़ने के बहाने जो छूती हूँ इनको,

आँसुओं से या पसीने से लथपथ-

इनकी गोदी में छुपाती हूँ सर-

एक दिन फिर से जी उठेंगे ये!

थोड़े-थोड़े-से तो जी भी उठे हैं।

गई रात चूँ-चूँ-चू करते हैं :

ये शायद इनका चिड़िया का जनम है,

कभी आदमी भी हो जाएँगे!

जब आदमी ये हो जाएँगे,

मेरा रिश्ता इनसे हो जाएगा क्या

वो ही वाला

जो धूल से झाड़न का?

  continue reading

455 एपिसोडस

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मैं उनको रोज़ झाड़ती हूँ

पर वे ही हैं इस पूरे घर में

जो मुझको कभी नहीं झाड़ते!

रात को जब सब सो जाते हैं—

अपने इन बरफाते पाँवों पर

आयोडिन मलती हुई सोचती हूँ मैं—

किसी जनम में मेरे प्रेमी रहे होंगे फ़र्नीचर,

कठुआ गए होंगे किसी शाप से ये!

मैं झाड़ने के बहाने जो छूती हूँ इनको,

आँसुओं से या पसीने से लथपथ-

इनकी गोदी में छुपाती हूँ सर-

एक दिन फिर से जी उठेंगे ये!

थोड़े-थोड़े-से तो जी भी उठे हैं।

गई रात चूँ-चूँ-चू करते हैं :

ये शायद इनका चिड़िया का जनम है,

कभी आदमी भी हो जाएँगे!

जब आदमी ये हो जाएँगे,

मेरा रिश्ता इनसे हो जाएगा क्या

वो ही वाला

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