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Pratidin Ek Kavita

Nayi Dhara Radio

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रोज
 
कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
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BHARATVANI... Kavita Sings INDIA

Kavita Sings India भारतवाणी

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मासिक+
 
BHARATVAANI...KAVITA SINGS INDIA I Sing.. I Write.. I Chant.. I Recite.. I'm here to Tell Tales of my glorious motherland INDIA, Tales of our rich cultural, spiritual heritage, ancient Vedic history, literature and epic poetry. My podcasts will include Bharat Bharti by Maithilisharan Gupta, Rashmirathi and Parashuram ki Prateeksha by Ramdhari Singh Dinkar, Kamayani by Jaishankar Prasad, Madhushala by Harivanshrai Bachchan, Ramcharitmanas by Tulsidas, Radheshyam Ramayan, Valmiki Ramayan, Soun ...
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Kavita (Poem)

Ishaan Singh

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इतिहासकारों रचनाकारों के विचारों से ओतप्रोत होने के लिए मुझसे जुड़े रहिए।
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Khule Aasmaan Mein Kavita

Nayi Dhara Radio

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यहाँ हम सुनेंगे कविताएं – पेड़ों, पक्षियों, तितलियों, बादलों, नदियों, पहाड़ों और जंगलों पर – इस उम्मीद में कि हम ‘प्रकृति’ और ‘कविता’ दोनों से दोबारा दोस्ती कर सकें। एक हिन्दी कविता और कुछ विचार, हर दूसरे शनिवार... Listening to birds, butterflies, clouds, rivers, mountains, trees, and jungles - through poetry that helps us connect back to nature, both outside and within. A Hindi poem and some reflections, every alternate Saturday...
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Ramayan Aaj ke Liye with Kavita Paudwal

HT Smartcast Originals

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Are you fascinated by the stories and mythology of ancient India? Do you want to learn more about the epic tale of Ramayana and its relevance to modern-day life? Then you should check out Ramayan Aaj Ke Liye, the ultimate podcast on Indian mythology and culture. Hosted by Kavita Paudwal, this podcast offers a deep dive into the world of Ramayana and its characters, themes, and teachings.
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This podcast presents Hindi poetry, Ghazals, songs, and Bhajans written by me. इस पॉडकास्ट के माध्यम से मैं स्वरचित कवितायेँ, ग़ज़ल, गीत, भजन इत्यादि प्रस्तुत कर रहा हूँ Awards StoryMirror - Narrator of the year 2022, Author of the month (seven times during 2021-22) Kalam Ke Jadugar - Three Times Poet of the Month. Sometimes I also collaborate with other musicians & singers to bring fresh content to my listeners. Always looking for fresh voices. Write to me at [email protected] #Hind ...
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Nayi Dhara Samvaad Podcast

Nayi Dhara Radio

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ये है नई धारा संवाद पॉडकास्ट। ये श्रृंखला नई धारा की वीडियो साक्षात्कार श्रृंखला का ऑडियो वर्जन है। इस पॉडकास्ट में हम मिलेंगे हिंदी साहित्य जगत के सुप्रसिद्ध रचनाकारों से। सीजन 1 में हमारे सूत्रधार होंगे वरुण ग्रोवर, हिमांशु बाजपेयी और मनमीत नारंग और हमारे अतिथि होंगे डॉ प्रेम जनमेजय, राजेश जोशी, डॉ देवशंकर नवीन, डॉ श्यौराज सिंह 'बेचैन', मृणाल पाण्डे, उषा किरण खान, मधुसूदन आनन्द, चित्रा मुद्गल, डॉ अशोक चक्रधर तथा शिवमूर्ति। सुनिए संवाद पॉडकास्ट, हर दूसरे बुधवार। Welcome to Nayi Dhara Samvaa ...
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आप सब को नमस्कार, मेरा नाम कविता खत्री है । मैं पहाड़ों की रहने वाली हूं तो मैंने सोचा क्यों न पहाड़ों के बारे में कहानियों की श्रृंखला शुरू की जाए । इसलिए मैं आप सब के बीच में लेके आ रही हू एक पहाड़ी लड़की । एक पहाड़ी लड़की पॉडकास्ट में आपको पहाड़ों से जुड़े किस्से, कहानी और कविताएं सुनने को मिलेंगी । कैसी कहानी और कविताएं आप सुनने वाले है उसके लिए आपको एक पहाड़ी लड़की का ट्रेलर सुनना होगा । इस पॉडकास्ट में आपको हर हफ्ते एक कविता और कहानी सुनने को मिलेगी । चलिए मिलते है "एक पहाड़ी लड़की" पर ...
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Kisse Kahani Meri zubaani

PanchTatwa Girl

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Kisse Kahani Meri Zubaani Listen to some of my creations in my voice, straight from the heart. Loads of poems & stories and kisse kahani too. Mere shabdo ka Khayal se awaaz tak ka safar... Shabdo aur samvaad se sabse judne ka naata...
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Heart2Heart TALK

kumar ABHISHEK upadhyay (Podcast)

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मासिक
 
Hi ! I am Kumar Abhishek, your host and friend on Anchor FM Podcast, who brings you "Heart to Heart Talk" which has some interesting tidbits for you to listen to, I share some poems, songs, interviews and inspiring stories. I keep doing You. नमस्ते ! मैं कुमार अभिषेक, आपका मेजबान और एंकर एफएम पॉडकास्ट पर दोस्त हूं, जो आपके लिए "हार्ट टू हार्ट टॉक" लेकर आया है, जिसमें कुछ दिलचस्प बातें हैं, कि आप इसे सुनें, मैं कुछ कविताओं, गीतों, साक्षात्कारों और प्रेरक कहानियों को साझा करता रहता हूं।
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सौ बातों की एक बात - रमानाथ अवस्थी सौ बातों की एक बात है. रोज़ सवेरे रवि आता है दुनिया को दिन दे जाता है लेकिन जब तम इसे निगलता होती जग में किसे विकलता सुख के साथी तो अनगिन हैं लेकिन दुःख के बहुत कठिन हैं सौ बातो की एक बात है. अनगिन फूल नित्य खिलते हैं हम इनसे हँस-हँस मिलते हैं लेकिन जब ये मुरझाते हैं तब हम इन तक कब जाते हैं जब तक हममे साँस रहेगी त…
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आँच | वंदना मिश्रा गर्मियों में तेज़ आँच देखकर माँ कहती थी : 'आग अपने मायके आई है' और फिर चूल्हे की लकड़ियाँ कम कर दी जाती थीं मैं कहती थी : 'मायके में तो उसे अच्छे से रहने दो माँ कम क्यों कर रही हो?' माँ कहती थी : 'ये लड़की प्रश्न बहुत पूछती है।' बाद में समझ आया प्रश्न पूछने से मना करना आग कम करने की तरफ़ बढ़ा पहला क़दम होता है।…
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ज़ूमिंग |अशफ़ाक़ हुसैन देखूँ जो आसमाँ से तो इतनी बड़ी ज़मीं इतनी बड़ी ज़मीन पे छोटा सा एक शहर छोटे से एक शहर में सड़कों का एक जाल सड़कों के जाल में छुपी वीरान सी गली वीराँ गली के मोड़ पे तन्हा सा इक शजर तन्हा शजर के साए में छोटा सा इक मकान छोटे से इक मकान में कच्ची ज़मीं का सहन कच्ची ज़मीं के सहन में खिलता हुआ गुलाब खिलते हुए गुलाब में महका हुआ बदन मह…
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पगली आरज़ू | नासिरा शर्मा कहा था मैंने तुमसे उस गुलाबी जाड़े की शुरुआत में उड़ना चाहती हूँ मैं तुम्हारे साथ खुले आसमान में चिड़ियाँ उड़ती हैं जैसे अपने जोड़ों के संग नापतीं हैं आसमान की लम्बाई और चौड़ाई नज़ारा करती हैं धरती का, झांकती हैं घरों में पार करती हैं पहाड़, जंगल और नदियाँ फिर उतरती हैं ज़मीन पर, चुगती हैं दाना सुस्ताती किसी पेड़ की शाख़ पर…
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हँसो एक बच्चे की तरह | अमिता प्रजापति तुम प्यार को पृथ्वी मान कर मत घूमो हर्क्यूलिस की तरह मत झुकाओ इसके वज़न से अपनी गर्दन धीरे से सरका के इसे गिरा लो अपने पैरों में उछालो गेंद की तरह हँसो एक बच्चे की तरह...द्वारा Nayi Dhara Radio
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धार | अरुण कमल कौन बचा है जिसके आगे इन हाथों को नहीं पसारा यह अनाज जो बदल रक्त में टहल रहा है तन के कोने-कोने यह क़मीज़ जो ढाल बनी है बारिश सर्दी लू में सब उधार का, माँगा-चाहा नमक-तेल, हींग-हल्दी तक सब क़र्ज़े का यह शरीर भी उनका बंधक अपना क्या है इस जीवन में सब तो लिया उधार सारा लोहा उन लोगों का अपनी केवल धार…
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उस प्लम्बर का नाम क्या है | राजेश जोशी मैं दुनिया के कई तानाशाहों की जीवनियाँ पढ़ चुका हूँ कई खूँखार हत्यारों के बारे में भी जानता हूँ बहुत कुछ घोटालों और यौन प्रकरणों में चर्चित हुए कई उच्च अधिकारियों के बारे में तो बता सकता हूँ ढेर सारी अंतरंग बातें और निहायत ही नाकारा क़िस्म के राजनीतिज्ञों के बारे में घंटे भर तक बोल सकता हूँ धारा प्रवाह लेकिन घं…
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रंग इस मौसम में भरना चाहिए | अंजुम रहबर रंग इस मौसम में भरना चाहिए सोचती हूँ प्यार करना चाहिए ज़िंदगी को ज़िंदगी के वास्ते रोज़ जीना रोज़ मरना चाहिए दोस्ती से तज्रबा ये हो गया दुश्मनों से प्यार करना चाहिए प्यार का इक़रार दिल में हो मगर कोई पूछे तो मुकरना चाहिएद्वारा Nayi Dhara Radio
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कवि का घर | रामदरश मिश्र गेन्दे के बड़े-बड़े जीवन्त फूल बेरहमी से होड़ लिए गए और बाज़ार में आकर बिकने लगे बाज़ार से ख़रीदे जाकर वे पत्थर के चरणों पर चढ़ा दिए गए फिर फेंक दिए गए कूड़े की तरह मैं दर्द से भर आया और उनकी पंखुड़ियाँ रोप दीं अपनी आँगन-वाटिका की मिट्टी में अब वे लाल-लाल, पीले-पीले, बड़े-बड़े फूल बनकर दहक रहे हैं मैं उनके बीच बैठकर उनसे सम…
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तुमने मुझे | शमशेर बहादुर सिंह तुमने मुझे और गूँगा बना दिया एक ही सुनहरी आभा-सी सब चीज़ों पर छा गई मै और भी अकेला हो गया तुम्हारे साथ गहरे उतरने के बाद मैं एक ग़ार से निकला अकेला, खोया हुआ और गूँगा अपनी भाषा तो भूल ही गया जैसे चारों तरफ़ की भाषा ऐसी हो गई जैसे पेड़-पौधों की होती है नदियों में लहरों की होती है हज़रत आदम के यौवन का बचपना हज़रत हौवा क…
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आदत | गुलज़ार साँस लेना भी कैसी आदत है जिए जाना भी क्या रिवायत है कोई आहट नहीं बदन में कहीं कोई साया नहीं है आँखों में पाँव बेहिस हैं चलते जाते हैं इक सफ़र है जो बहता रहता है कितने बरसों से कितनी सदियों से जिए जाते हैं जिए जाते हैं आदतें भी अजीब होती हैंद्वारा Nayi Dhara Radio
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औरतें | शुभा औरतें मिट्टी के खिलौने बनाती हैं मिट्टी के चूल्हे और झाँपी बनाती हैं औरतें मिट्टी से घर लीपती हैं मिट्टी के रंग के कपड़े पहनती हैं और मिट्टी की तरह गहन होती हैं औरतें इच्छाएँ पैदा करती हैं और ज़मीन में गाड़ देती हैं औरतों की इच्छाएँ बहुत दिनों में फलती हैंद्वारा Nayi Dhara Radio
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स्वप्न में पिता | ग़ुलाम मोहम्मद शेख़ बापू, कल तुम फिर से दिखे घर से हज़ारों योजन दूर यहाँ बाल्टिक के किनारे मैं लेटा हूँ यहीं, खाट के पास आकर खड़े आप इस अंजान भूमि पर भाइयों में जब सुलह करवाई तब पहना था वही थिगलीदार, मुसा हुआ कोट, दादा गए तब भी शायद आप इसी तरह खड़े होंगे अकेले दादा का झुर्रीदार हाथ पकड़। आप काठियावाड़ छोड़कर कब से यहाँ क्रीमिया के…
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उस दिन | रूपम मिश्र उस दिन कितने लोगों से मिली कितनी बातें , कितनी बहसें कीं कितना कहा ,कितना सुना सब ज़रूरी भी लगा था पर याद आते रहे थे बस वो पल जितनी देर के लिए तुमसे मिली विदा की बेला में हथेली पे धरे गये ओठ देह में लहर की तरह उठते रहे कदम बस तुम्हारी तरफ उठना चाहते थे और मैं उन्हें धकेलती उस दिन जाने कहाँ -कहाँ भटकती रही वे सारी जगहें मेरी नहीं …
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मनुष्य - विमल चंद्र पाण्डेय मुझे किसी की मृत्यु की कामना से बचना है चाहे वो कोई भी हो चाहे मैं कितने भी क्रोध में होऊँ और समय कितना भी बुरा हो सामने वाला मेरा कॉलर पकड़ कर गालियाँ देता हुआ क्यों न कर रहा हो मेरी मृत्यु का एलान मुझे उसकी मृत्यु की कामना से बचना है यह समय मौतों के लिए मुफ़ीद है मनुष्यों की अकाल मौत का कोलाज़ रचता हुआ फिर भी मैं मरते हु…
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अपने प्रेम के उद्वेग में | अज्ञेय अपने प्रेम के उद्वेग में मैं जो कुछ भी तुमसे कहता हूँ, वह सब पहले कहा जा चुका है। तुम्हारे प्रति मैं जो कुछ भी प्रणय-व्यवहार करता हूँ, वह सब भी पहले हो चुका है। तुम्हारे और मेरे बीच में जो कुछ भी घटित होता है उससे एक तीक्ष्ण वेदना-भरी अनुभूति मात्र होती है—कि यह सब पुराना है, बीत चुका है, कि यह अभिनय तुम्हारे ही जी…
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तुम | अदनान कफ़ील दरवेश जब जुगनुओं से भर जाती थी दुआरे रखी खाट और अम्मा की सबसे लंबी कहानी भी ख़त्म हो जाती थी उस वक़्त मैं आकाश की तरफ़ देखता और मुझे वह ठीक जुगनुओं से भरी खाट लगता कितना सुंदर था बचपन जो झाड़ियों में चू कर खो गया मैं धीरे-धीरे बड़ा हुआ और जवान भी और तुम मुझे ऐसे मिले जैसे बचपन की खोई गेंद मैंने तुम्हें ध्यान से देखा मुझे अम्मा की याद आ…
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प्रेम के प्रस्थान | अनुपम सिंह सुनो, एक दिन बन्द कमरे से निकलकर हम दोनों पहाड़ों की ओर चलेंगे या फिर नदियों की ओर नदी के किनारे, जहाँ सरपतों के सफ़ेद फूल खिले हैं। या पहाड़ पर जहाँ सफ़ेद बर्फ़ उज्ज्वल हँसी-सी जमी है दरारों में और शिखरों पर काढेंगे एक दुसरे की पीठ पर रात का गाढ़ा फूल इस बार मैं नहीं तुम मेरे बाजुओं पर रखना अपना सिर मैं तुम्हें दूँगी…
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धूप भी तो बारिश है | शहंशाह आलम धूप भी तो बारिश है बारिश बहती है देह पर धूप उतरती है नेह पर मेरे संगीतज्ञ ने मुझे बताया धूप है तो बारिश है बारिश है तो धूप है मैंने जिससे प्रेम किया उसको बताया तुम हो तो ताप और जल दोनों है मेरे अंदर।द्वारा Nayi Dhara Radio
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जो उलझकर रह गई है फ़ाइलों के जाल में | अदम गोंडवी जो उलझकर रह गई है फ़ाइलों के जाल में गाँव तक वह रौशनी आएगी कितने साल में बूढ़ा बरगद साक्षी है किस तरह से खो गई रमसुधी की झोंपड़ी सरपंच की चौपाल में खेत जो सीलिंग के थे सब चक में शामिल हो गए हमको पट्टे की सनद मिलती भी है तो ताल में जिसकी क़ीमत कुछ न हो इस भीड़ के माहौल में ऐसा सिक्का ढालिए मत जिस्म की टकसा…
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लड़ाई के समाचार | नवीन सागर लड़ाई के समाचार दूसरे सारे समाचारों को दबा देते हैं छा जाते हैं शांति के प्रयासों की प्रशंसा करते हुए हम अपनी उत्तेजना में मानो चाहते हैं युद्ध जारी रहे। फिर अटकलों और सरगर्मियों का दौर जिसमें फिर युद्ध छिड़ने की गुंजाइश दिखती है। युद्ध रोमांचित करता है! ध्वस्त आबादियों के चित्र देखने का ढंग बाद में शर्मिंदा करता है अकेल…
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खाना बनाती स्त्रियाँ | कुमार अम्बुज जब वे बुलबुल थीं उन्होंने खाना बनाया फिर हिरणी होकर फिर फूलों की डाली होकर जब नन्ही दूब भी झूम रही थी हवाओं के साथ जब सब तरफ़ फैली हुई थी कुनकुनी धूप उन्होंने अपने सपनों को गूँधा हृदयाकाश के तारे तोड़कर डाले भीतर की कलियों का रस मिलाया लेकिन आख़िर में उन्हें सुनाई दी थाली फेंकने की आवाज़ आपने उन्हें सुंदर कहा तो …
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एक बहुत ही तन्मय चुप्पी | भवानीप्रसाद मिश्र एक बहुत ही तन्मय चुप्पी ऐसी जो माँ की छाती में लगाकर मुँह चूसती रहती है दूध मुझसे चिपककर पड़ी है और लगता है मुझे यह मेरे जीवन की लगभग सबसे निविड़ ऐसी घड़ी है जब मैं दे पा रहा हूँ स्वाभाविक और सुख के साथ अपने को किसी अनोखे ऐसे सपने को जो अभी-अभी पैदा हुआ है और जो पी रहा है मुझे अपने साथ-साथ जो जी रहा है मुझ…
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देना | नवीन सागर जिसने मेरा घर जलाया उसे इतना बड़ा घर देना कि बाहर निकलने को चले पर निकल न पाए जिसने मुझे मारा उसे सब देना मृत्यु न देना जिसने मेरी रोटी छीनी उसे रोटियों के समुद्र में फेंकना और तूफ़ान उठाना जिनसे मैं नहीं मिला उनसे मिलवाना मुझे इतनी दूर छोड़ आना कि बराबर संसार में आता रहूँ अगली बार इतना प्रेम देना कि कह सकूँ प्रेम करता हूँ और वह मे…
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इक बार कहो तुम मेरी हो | इब्न-ए-इंशा हम घूम चुके बस्ती बन में इक आस की फाँस लिए मन में कोई साजन हो कोई प्यारा हो कोई दीपक हो, कोई तारा हो जब जीवन रात अँधेरी हो इक बार कहो तुम मेरी हो जब सावन बादल छाए हों जब फागुन फूल खिलाए हों जब चंदा रूप लुटाता हो जब सूरज धूप नहाता हो या शाम ने बस्ती घेरी हो इक बार कहो तुम मेरी हो हाँ दिल का दामन फैला है क्यूँ गोर…
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मेरे एकांत का प्रवेश-द्वार | निर्मला पुतुल यह कविता नहीं मेरे एकांत का प्रवेश-द्वार है यहीं आकर सुस्ताती हूँ मैं टिकाती हूँ यहीं अपना सिर ज़िंदगी की भाग-दौड़ से थक-हारकर जब लौटती हूँ यहाँ आहिस्ता से खुलता है इसके भीतर एक द्वार जिसमें धीरे से प्रवेश करती मैं तलाशती हूँ अपना निजी एकांत यहीं मैं वह होती हूँ जिसे होने के लिए मुझे कोई प्रयास नहीं करना प…
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लफ़्ज़ों का पुल | निदा फ़ाज़ली मस्जिद का गुम्बद सूना है मंदिर की घंटी ख़ामोश जुज़दानों में लिपटे आदर्शों को दीमक कब की चाट चुकी है रंग गुलाबी नीले पीले कहीं नहीं हैं तुम उस जानिब मैं इस जानिब बीच में मीलों गहरा ग़ार लफ़्ज़ों का पुल टूट चुका है तुम भी तन्हा मैं भी तन्हाद्वारा Nayi Dhara Radio
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रामायण में महाभारत | अवतार एनगिल रविवार की सुबह उस औरत ने बड़ी मुश्किल से पति और बच्चों को जगाया किसी को ब्रश किसी को बनियान किसी को तौलिया थमाया चूल्हे के सामने खड़ी जैसे चौखटे में जड़ी बड़े के लिए लिए परांठे छोटों को ऑमलेट ’उनके’ लिए कम नमक वाला सासु के लिए नरम ससुर के लिए गरम अलग अलग अलग नाश्ते बना रही है और उसकी सासु माँ चौपाईयाँ गा रही है टी-व…
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तुम्हारे बग़ैर लड़ना | विभाग वैभव तुम्हारे जाने के बाद मैं राह के पत्थर जितना अकेला रहा फिर एक दिन सिसकियों को एक खाली कैसेट में डालकर किताबों के बीच छिपा दिया बहुत से लोग थे जिन्हें फूलों की ज़रुरत थी मैंने माली का काम किया किसी कमज़ोर के खेत का पानी किसी ने लाठी के दम पर काट लिया दोस्तों को जुटाया हड्डियों को चूम लेने वाली सर्दियों की रातों में घुटने…
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सितारों से उलझता जा रहा हूँ | फ़िराक़ गोरखपुरी सितारों से उलझता जा रहा हूँ शब-ए-फ़ुरक़त बहुत घबरा रहा हूँ यक़ीं ये है हक़ीक़त खुल रही है गुमाँ ये है कि धोखे खा रहा हूँ इन्ही में राज़ हैं गुल-बारियों के मै जो चिंगारियाँ बरसा रहा हूँ तेरे पहलू में क्यों होता है महसूस कि तुझसे दूर होता जा रहा हूँ जो उलझी थी कभी आदम के हाथों वो गुत्थी आज तक सुलझा रहा हू…
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आपके लिए | अजय दुर्ज्ञेय आप यहां से जाइये! आप जब मेरी कविताएँ सुनेंगे तो ऐसा लगेगा कि जैसे कोई दशरथ-मांझी पहाड़ पर बजा रहा हो हथौडे मैं जब बोलूंगा तो आपको लगेगा कि मैं आपके कपड़े उतार रहा हूँ और न केवल उतार रहा हूँ बल्कि उन्हीं कपड़ों से अपनी विजय पताका बना रहा हूँ मैं जब अपने हक़ की कविता पढ़ंगा तो आपको लगेगा कि छीन रहा हूँ आपकी गद्दी, छीन रहा हूँ…
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सीता की विदाई Sita ki Vidai | राधेश्याम रामायण Radheshyam Ramayan recited by Kavita Singh | भारतवाणी Bharatvani KavitaSingsIndia भक्ति साहित्य संगीत विवाह के उपरांत सीता विदा होकर चलीं ससुराल, जनकपुरी से अयोध्या
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जब तेरी समुंदर आँखों में | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ये धूप किनारा शाम ढले मिलते हैं दोनों वक़्त जहाँ जो रात न दिन जो आज न कल पल-भर को अमर पल भर में धुआँ इस धूप किनारे पल-दो-पल होंटों की लपक बाँहों की छनक ये मेल हमारा झूठ न सच क्यूँ रार करो क्यूँ दोश धरो किस कारण झूठी बात करो जब तेरी समुंदर आँखों में इस शाम का सूरज डूबेगा सुख सोएँगे घर दर वाले और राही अपनी …
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कभी कभी जीवन में ऐसे भी क्षण आये | लक्ष्मीशंकर वाजपेयी कभी कभी जीवन में ऐसे भी कुछ क्षण आये कहना चाहा पर होठों से बोल नहीं फूटे। महज़ औपचारिकता अक्सर होठों तक आयी रहा अनकहा जो उसको, बस नज़र समझ पायी कभी कभी तो मौन ढल गया जैसे शब्दों में और शब्द कोशों वाले सब शब्द लगे झूठे कहना चाहा पर होठों से शब्द नही फूटे। जिनसे न था खून का नाता, रिश्तों का बंधन …
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Sita Ram Vivah Vachan विवाह वचन | राधेश्याम रामायण | Bharatvani KavitaSingsIndia भक्ति साहित्य संगीत
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जगह | विश्वनाथ प्रसाद तिवारी खड़े-खड़े मेरे पाँव दुखने लगे थे थोड़ी-सी जगह चाहता था बैठने के लिए कलि को मिल गया था राजा परीक्षेत का मुकुट मैं बिलबिलाता रहा कोने-अँतरे जगह, हाय जगह सभी बेदखल थे अपनी अपनी जगह से रेल में मुसाफिरों के लिए गुरुकुलों में वटुकों के लिए शहर में पशुओं आकाश में पक्षियों सागर में जलचरों पृथ्वी पर वनस्पतियों के लिए नहीं थी जगह…
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गर हम ने दिल सनम को दिया | नज़ीर अकबराबादी गर हम ने दिल सनम को दिया फिर किसी को क्या इस्लाम छोड़ कुफ़्र लिया फिर किसी को क्या क्या जाने किस के ग़म में हैं आँखें हमारी लाल ऐ हम ने गो नशा भी पिया फिर किसी को क्या आफी किया है अपने गिरेबाँ को हम ने चाक आफी सिया सिया न सिया फिर किसी को क्या उस बेवफ़ा ने हम को अगर अपने इश्क़ में रुस्वा किया ख़राब किया फिर…
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जिस का कोई इंतिज़ार न कर रहा हो/ अफ़ज़ाल अहमद सय्यद जिस का कोई इंतिज़ार न कर रहा हो उसे नहीं जाना चाहिए वापस आख़िरी दरवाज़ा बंद होने से पहले जिस का कोई इंतिज़ार न कर रहा हो उसे नहीं फिरना चाहिए बे-क़रार एक ख़ूबसूरत राहदारी में जब तक वो वीरान न हो जाए जिस का कोई इंतिज़ार न कर रहा हो उसे नहीं जुदा करना चाहिए ख़ून-आलूद पाँव से एक पूरा सफ़र जिस का कोई इं…
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एक लम्हे से दूसरे लम्हे तक | शहरयार एक आहट अभी दरवाज़े पे लहराई थी एक सरगोशी अभी कानों से टकराई थी एक ख़ुश्बू ने अभी जिस्म को सहलाया था एक साया अभी कमरे में मिरे आया था और फिर नींद की दीवार के गिरने की सदा और फिर चारों तरफ़ तेज़ हवा!!द्वारा Nayi Dhara Radio
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चिड़ीमार ने चिड़िया मारी | केदारनाथ अग्रवाल हे मेरी तुम! चिड़ीमार ने चिड़िया मारी; नन्नी-मुन्नी तड़प गई प्यारी बेचारी। हे मेरी तुम! सहम गई पौधों की सेना, पाहन-पाथर हुए उदास; हवा हाय कर ठिठकी ठहरी; पीली पड़ी धूप की देही। हे मेरी तुम! अब भी वह चिड़िया ज़िंदा है मेरे भीतर, नीड़ बनाये मेरे दिल में, सुबुक-सुबुक कर चूँ-चूँ करती चिड़ीमार से डरी-डरी-सी।…
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घरौंदे | अवतार एनगिल सागर किनारे खेलते दो बच्चों ने मिलकर घरौंदे बनाए देखते-देखते लहरों के थपेड़े आए उनके घर गिराए और भागकर सागर में जा छिपे माना, कि सदैव ऎसा हुआ तो भी किसी भी सागर के किसी भी तट पर कहीं भी कभी भी बच्चों ने घरौंदे बनाने बन्द नहीं किएद्वारा Nayi Dhara Radio
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गवेषणा | आकाश इस नुमाइश मे ईश्वर खोज रहा हूँ, बच्चों की मानिंद बौराया हुआ, इस दुकान से उस दुकान, उथली रौशनी की परिधि के भीतर, चमकीली भीड़ में घिरे, जहाँ केवल नीरसता और बीरानगी विद्यमान है। इस नुमाइश में, मैं अस्पष्ट अज्ञात लय में चलता हूँ, और घूमकर पाता हूँ स्वयं को निहत्था, निराश और पराजित। छान आया हूँ आस्था की चार दीवारी, लाँघ लिए हैं प्रकाश के प…
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चार और पंक्तियाँ | प्रभाकर माचवे जब दिल ने दिल को जान लिया जब अपना-सा सब मान लिया तब ग़ैर-बिराना कौन बचा यदि बचा सिर्फ़ तो मौन बचाद्वारा Nayi Dhara Radio
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नावें | नरेश सक्सेना नावों ने खिलाए हैं फूल मटमैले क्या उन्हें याद है कि वे कभी पेड़ बनकर उगी थीं नावें पार उतारती हैं ख़ुद नहीं उतरतीं पार नावें धार के बीचों-बीच रहना चाहती हैं तैरने न दे उस उथलेपन को समझती हैं ठीक-ठीक लेकिन तैरने लायक गहराई से ज़्यादा के बारे में कुछ भी नहीं जानतीं नावें बाढ़ उतरने के बाद वे अकसर मिलती हैं छतों या पेड़ों पर चढ़ी हुईं…
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सुंदरियों | नीलेश रघुवंशी मत आया करो तुम सम्मान समारोहों में तश्तरी, शाल और श्रीफल लेकर दीप प्रज्वलन के समय मत खड़ी रहा करो माचिस और दीया -बाती के संग मंच पर खड़े होकर मत बाँचा करो अभिनंदन पत्र उपस्थिति को अपनी सिर्फ मोहक और दर्शनीय मत बनने दिया करो सुंदरियो, तुम ऐसा करके तो देखो बदल जाएगी ये दुनिया सारी।…
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नहीं दूँगा नाम | नंदकिशोर आचार्य नहीं दूँगा तुम्हें कोई नाम। जूही की कली, कलगी बाजरे की छरहरी, या और कुछ। नाम देना पहचान को जड़ करना है मैं तो तुम्हें हर बार आविष्कृत करता हूँ। नाम देकर तुम्हे तीसरा नहीं करूँगा क्यों कि तुम सम्पूर्ण मेरी हो तुम्हें तुम ही कहूँगा कोई नाम नहीं दूँगा।द्वारा Nayi Dhara Radio
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रिश्तेदारी | लक्ष्मीशंकर वाजपेयी नहीं, यह भी संभव नहीं होता कि उनके शहर जाकर भी जाया ही न जाय रिश्तेदारों के घर अकसर कुछ एहसान लदे होते हैं उनके बुज़ुर्गों के अपने बुज़ुर्गों पर ऐसा कुछ न भी हो, तो ज़रूरी होता है लोकाचार निभाना किंतु अकसर खड़ी हो जाती है समस्या कि पत्नी की कुशलक्षेम, बच्चों की सुचारू पढ़ाई का विवरण दे देने तथा ’और क्या हाल-चाल हैं‘ का…
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अब्बास मियाँ | नीरव पंद्रह बीघे की खेती अकेले संभालने वाले अब्बास मियाँ हमारे हरवाहे थे हम काका कहते थे उन्हें हम सुनते बड़े हुए थे काका खानदानी शहनाई वादक थे अपने ज़माने में बहुत मशहूर दूर-दूर तक उनके सुरों की गूंज थी हमारे बाबा भी एक क़िस्सा बताते थे काशी में काका को एक दफे उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के सामने शहनाई बजाने का मौका मिला था और उस्ताद ने पी…
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क्या काम | मंगलेश डबराल आप दिखते हैं बहुत उदास आपको इस शहर में क्या काम आपके भीतर भरा है ग़ुस्सा आपको इस शहर में क्या काम आप सफलता नहीं चाहते नहीं चाहते ताक़त जो मिल जाए उसे छोड़ कुछ नहीं माँगते आपको इस शहर में क्या काम आप तुरंत लपकते नहीं और न खिलखिल करते हाथ जेब में डाले चलते रोज़ रात में पाते ख़ुद को लहूलुहान आपको इस शहर में क्या काम।…
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