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BHARATVANI... Kavita Sings INDIA

Kavita Sings India भारतवाणी

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BHARATVAANI...KAVITA SINGS INDIA I Sing.. I Write.. I Chant.. I Recite.. I'm here to Tell Tales of my glorious motherland INDIA, Tales of our rich cultural, spiritual heritage, ancient Vedic history, literature and epic poetry. My podcasts will include Bharat Bharti by Maithilisharan Gupta, Rashmirathi and Parashuram ki Prateeksha by Ramdhari Singh Dinkar, Kamayani by Jaishankar Prasad, Madhushala by Harivanshrai Bachchan, Ramcharitmanas by Tulsidas, Radheshyam Ramayan, Valmiki Ramayan, Soun ...
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कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
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Kavita (Poem)

Ishaan Singh

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इतिहासकारों रचनाकारों के विचारों से ओतप्रोत होने के लिए मुझसे जुड़े रहिए।
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Khule Aasmaan Mein Kavita

Nayi Dhara Radio

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यहाँ हम सुनेंगे कविताएं – पेड़ों, पक्षियों, तितलियों, बादलों, नदियों, पहाड़ों और जंगलों पर – इस उम्मीद में कि हम ‘प्रकृति’ और ‘कविता’ दोनों से दोबारा दोस्ती कर सकें। एक हिन्दी कविता और कुछ विचार, हर दूसरे शनिवार... Listening to birds, butterflies, clouds, rivers, mountains, trees, and jungles - through poetry that helps us connect back to nature, both outside and within. A Hindi poem and some reflections, every alternate Saturday...
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Ramayan Aaj ke Liye with Kavita Paudwal

HT Smartcast Originals

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Are you fascinated by the stories and mythology of ancient India? Do you want to learn more about the epic tale of Ramayana and its relevance to modern-day life? Then you should check out Ramayan Aaj Ke Liye, the ultimate podcast on Indian mythology and culture. Hosted by Kavita Paudwal, this podcast offers a deep dive into the world of Ramayana and its characters, themes, and teachings.
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This podcast presents Hindi poetry, Ghazals, songs, and Bhajans written by me. इस पॉडकास्ट के माध्यम से मैं स्वरचित कवितायेँ, ग़ज़ल, गीत, भजन इत्यादि प्रस्तुत कर रहा हूँ Awards StoryMirror - Narrator of the year 2022, Author of the month (seven times during 2021-22) Kalam Ke Jadugar - Three Times Poet of the Month. Sometimes I also collaborate with other musicians & singers to bring fresh content to my listeners. Always looking for fresh voices. Write to me at HindiPoemsByVivek@gmail.com #Hind ...
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Nayi Dhara Samvaad Podcast

Nayi Dhara Radio

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ये है नई धारा संवाद पॉडकास्ट। ये श्रृंखला नई धारा की वीडियो साक्षात्कार श्रृंखला का ऑडियो वर्जन है। इस पॉडकास्ट में हम मिलेंगे हिंदी साहित्य जगत के सुप्रसिद्ध रचनाकारों से। सीजन 1 में हमारे सूत्रधार होंगे वरुण ग्रोवर, हिमांशु बाजपेयी और मनमीत नारंग और हमारे अतिथि होंगे डॉ प्रेम जनमेजय, राजेश जोशी, डॉ देवशंकर नवीन, डॉ श्यौराज सिंह 'बेचैन', मृणाल पाण्डे, उषा किरण खान, मधुसूदन आनन्द, चित्रा मुद्गल, डॉ अशोक चक्रधर तथा शिवमूर्ति। सुनिए संवाद पॉडकास्ट, हर दूसरे बुधवार। Welcome to Nayi Dhara Samvaa ...
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आप सब को नमस्कार, मेरा नाम कविता खत्री है । मैं पहाड़ों की रहने वाली हूं तो मैंने सोचा क्यों न पहाड़ों के बारे में कहानियों की श्रृंखला शुरू की जाए । इसलिए मैं आप सब के बीच में लेके आ रही हू एक पहाड़ी लड़की । एक पहाड़ी लड़की पॉडकास्ट में आपको पहाड़ों से जुड़े किस्से, कहानी और कविताएं सुनने को मिलेंगी । कैसी कहानी और कविताएं आप सुनने वाले है उसके लिए आपको एक पहाड़ी लड़की का ट्रेलर सुनना होगा । इस पॉडकास्ट में आपको हर हफ्ते एक कविता और कहानी सुनने को मिलेगी । चलिए मिलते है "एक पहाड़ी लड़की" पर ...
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Kisse Kahani Meri Zubaani Listen to some of my creations in my voice, straight from the heart. Loads of poems & stories and kisse kahani too. Mere shabdo ka Khayal se awaaz tak ka safar... Shabdo aur samvaad se sabse judne ka naata...
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Heart2Heart TALK

kumar ABHISHEK upadhyay (Podcast)

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Hi ! I am Kumar Abhishek, your host and friend on Anchor FM Podcast, who brings you "Heart to Heart Talk" which has some interesting tidbits for you to listen to, I share some poems, songs, interviews and inspiring stories. I keep doing You. नमस्ते ! मैं कुमार अभिषेक, आपका मेजबान और एंकर एफएम पॉडकास्ट पर दोस्त हूं, जो आपके लिए "हार्ट टू हार्ट टॉक" लेकर आया है, जिसमें कुछ दिलचस्प बातें हैं, कि आप इसे सुनें, मैं कुछ कविताओं, गीतों, साक्षात्कारों और प्रेरक कहानियों को साझा करता रहता हूं। Suppor ...
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केवल मैं नहीं हूँ | रामदरश मिश्र तुम्हारे लिए लाता रहा रंग-बिरंगे उपहार लैंडस्केप रेडियो टी.वी. वीडियो-गेम्स फ्रीज तरह-तरह के फर्नीचर और न जाने कितने-कितने उपकरण साज-सज्जा के जब देखा कि मेरा कमरा एकदम भर गया है इनसे तो मैं कितना ख़ुश हुआ था ओ मेरे सुख! अब सोचता हूँ- सभी कुछ तो है इस कमरे में केवल मैं नहीं हूँ।…
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विश्वास, विनय और विश्राम - Bharat Bharati 65 (भविष्यत खण्ड ) - मैथिलीशरण गुप्त
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चम्बा की धूप | कुमार विकल ठहरो भाई, धूप अभी आयेगी इतने आतुर क्यों हो आख़िर यह चम्बा की धूप है एक पहाड़ी गाय आराम से आयेगी यहीं कहीं चौग़ान में घास चरेगी गद्दी महिलाओं के संग सुस्तायेगी किलकारी भरते बच्चों के संग खेलेगी रावी के पानी में तिर जायेगी और खेल कूद के बाद यह सूरज की भूखी बिटिया आटे के पेड़े लेने को हर घर का चूल्हा -चौखट चूमेगी और अचानक थकक…
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भीगना | प्रशांत पुरोहित जब सड़क इतनी भीगी है तो मिट्टी कितनी गीली होगी, जब बाप की आँखें नम हैं, तो ममता कितनी सीली होगी। जेब-जेब ढूँढ़ रहा हूँ माचिस की ख़ाली डिब्बी लेकर, किसी के पास तो एक अदद बिल्कुल सूखी तीली होगी। कोई चाहे ऊपर से बाँटे या फिर नीचे से शुरू करे, बीच वाला फ़क़त हूँ मैं, जेब मेरी ही ढीली होगी। ना रहने को ना कहने को, मैं कभी सड़क पर …
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जीवन | अज्ञेय चाबुक खाए भागा जाता सागर-तीरे मुँह लटकाए मानो धरे लकीर जमे खारे झागों की— रिरियाता कुत्ता यह पूँछ लड़खड़ाती टांगों के बीच दबाए। कटा हुआ जाने-पहचाने सब कुछ से इस सूखी तपती रेती के विस्तार से, और अजाने-अनपहचाने सब से दुर्गम, निर्मम, अन्तहीन उस ठण्डे पारावार से!द्वारा Nayi Dhara Radio
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वापसी | अशोक वाजपेयी जब हम वापस आएँगे तो पहचाने न जाएँगे- हो सकता है हम लौटें पक्षी की तरह और तुम्हारी बगिया के किसी नीम पर बसेरा करें फिर जब तुम्हारे बरामदे के पंखे के ऊपर घोसला बनाएँ तो तुम्हीं हमें बार-बार बरजो ! या फिर थोड़ी-सी बारिश के बाद तुम्हारे घर के सामने छा गई हरियाली की तरह वापस आएँ हम जिससे राहत और सुख मिलेगा तुम्हें पर तुम जान नहीं पा…
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गाँव गया था मैं | विश्वनाथ प्रसाद तिवारी गाँव गया था मैं मेरे सामने कल्हारे हुए चने-सा आया गाँव अफसर नहीं था मैं न राजधानी का जबड़ा मुझे स्वाद नहीं मिला युवतियों के खुले उरोजों और विवश होंठों में अँधेरे में ढिबरी- सा टिंमटिमा रहा था गाँव उड़े हुए रंग-सा पुँछे हुए सिंदूर-सा सूखे कुएँ-सा जली हुई रोटी - सा हँड़िया में खदबदाते कोदौ के दाने-सा गाँव बतिय…
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ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे | फ़राज़ ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे तू बहुत देर से मिला है मुझे हमसफ़र चाहिये हुजूम नहीं इक मुसाफ़िर भी काफ़िला है मुझे तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल हार जाने का हौसला है मुझे लब कुशां हूं तो इस यकीन के साथ कत्ल होने का हौसला है मुझे दिल धड़कता नहीं सुलगता है वो जो ख़्वाहिश थी, आबला है मुझे कौन जाने कि चाहतों में फ़राज़ …
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पुकार | केदारनाथ अग्रवाल ऐ इन्सानों! आँधी के झूले पर झूलो आग बबूला बन कर फूलो कुरबानी करने को झूमो लाल सवेरे का मूँह चूमो ऐ इन्सानों ओस न चाटो अपने हाथों पर्वत काटो पथ की नदियाँ खींच निकालो जीवन पीकर प्यास बुझालो रोटी तुमको राम न देगा वेद तुम्हारा काम न देगा जो रोटी का युद्ध करेगा वह रोटी को आप वरेगा!…
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वो पेड़ | शशिप्रभा तिवारी तुमने घर के आंगन में आम के गाछ को रोपा था तुम उसी के नीचे बैठ कर समय गुज़ारते थे उसकी छांव में लोगों के सुख दुख सुनते थे उस पेड़ के डाल के पत्ते उसके मंजर उसके टिकोरे उसके कच्चे पक्के फल सभी तुमसे बतियाते थे जब तुम्हारा मन होता अपने हाथ से उठाकर किसी के हाथ में आम रखते कहते इसका स्वाद अनूठा है वह पेड़ किसी को भाता था किसी क…
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दुआ सब करते आए हैं | फ़िराक़ गोरखपुरी दुआ सब करते आए हैं दुआ से कुछ हुआ भी हो दुखी दुनिया में बन्दे अनगिनत कोई ख़ुदा भी हो कहाँ वो ख़ल्वतें दिन रात की और अब ये आलम है। कि जब मिलते हैं दिल कहता है कोई तीसरा भी हो ये कहते हैं कि रहते हो तुम्हीं हर दिल में दुख बन कर ये सुनते हैं तुम्हीं दुनिया में हर दुख की दवा भी हो तो फिर क्या इश्क़ दुनिया में कहीं का…
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प्यार में चिड़िया | कुलदीप कुमार एक चिड़िया अपने नन्हे पंखों में भरना चाहती है आसमान वह प्यार करती है आसमान से नहीं अपने पंखों से एक दिन उसके पंख झड़ जायेंगे और वह प्यार करना भूल जायेगी भूल जायेगी वह अन्धड़ में घोंसले को बचाने के जतन बच्चों को उड़ना सिखाने की कोशिशें याद रहेगा सिर्फ़ पंखों के साथ झड़ा आसमान…
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कोई हँस रहा है कोई रो रहा है | अकबर इलाहाबादी कोई हँस रहा है कोई रो रहा है कोई पा रहा है कोई खो रहा है कोई ताक में है किसी को है गफ़लत कोई जागता है कोई सो रहा है कहीँ नाउम्मीदी ने बिजली गिराई कोई बीज उम्मीद के बो रहा है इसी सोच में मैं तो रहता हूँ 'अकबर' यह क्या हो रहा है यह क्यों हो रहा हैद्वारा Nayi Dhara Radio
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लड़की ने डरना छोड़ दिया | डॉ श्यौराज सिंह बेचैन लड़की ने डरना छोड़ दिया अक्षर के जादू ने उस पर असर बड़ा बेजोड़ किया, चुप्पा रहना छोड़ दिया, लड़की ने डरना छोड़ दिया। हंसकर पाना सीख लिया, रोना-पछताना छोड़ दिया। बाप को बोझ नहीं होगी वह, नहीं पराया धन होगी लड़के से क्यों- कम होगी, वो उपयोगी जीवन होगी। निर्भरता को छोड़ेगी, जेहनी जड़ता को तोड़ेगी समता मूल्…
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दूसरे लोग | मंगलेश डबराल दूसरे लोग भी पेड़ों और बादलों से प्यार करते हैं वे भी चाहते हैं कि रात में फूल न तोड़े जाएँ उन्हें भी नहाना पसन्द है एक नदी उन्हें सुन्दर लगती है दूसरे लोग भी मानवीय साँचों में ढले हैं थके-मांदे वे शाम को घर लौटना चाहते हैं। जो तुम्हारी तरह नहीं रहते वे भी रहते हैं यहाँ अपनी तरह से यह प्राचीन नगर जिसकी महिमा का तुम बखान करत…
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वह चेहरा | कुलदीप कुमार आज फिर दिखीं वे आँखें किसी और माथे के नीचे वैसी ही गहरी काली उदास फिर कहीं दिखे वे सांवले होंठ अपनी ख़ामोशी में अकेले किन्हीं और आँखों के तले झलकी पार्श्व से वही ठोड़ी दौड़कर बस पकड़ते हुए देखे वे केश लाल बत्ती पर रुके-रुके अब कभी नहीं दिखेगा वह पूरा चेहरा?द्वारा Nayi Dhara Radio
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तुम्हारी कविता | प्रशांत पुरोहित तुम्हारी कविता में उसकी काली आँखें थीं- कालिमा किसकी- पुतली की, भँवों की, कोर की, या काजल-घुले आँसुओं की झिलमिलाती झील की? तुम्हारी ग़ज़ल में उसकी घनी ज़ुल्फ़ें थीं— ज़ुल्फ़ें कैसीं- ललाट लहरातीं, कांधे किल्लोलतीं, कमर डोलतीं, या पसीने-पगी पेशानी पे पसरतीं, बट खोलतीं? तुम्हारी नज़्म में उसकी आवाज़ थी - आवाज़ कैसी- ग…
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नदियाँ | आलोक धन्वा इछामती और मेघना महानंदा रावी और झेलम गंगा गोदावरी नर्मदा और घाघरा नाम लेते हुए भी तकलीफ़ होती है उनसे उतनी ही मुलाक़ात होती है जितनी वे रास्ते में आ जाती हैं और उस समय भी दिमाग कितना कम पास जा पाता है दिमाग तो भरा रहता है लुटेरों के बाज़ार के शोर से।द्वारा Nayi Dhara Radio
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पानी एक रोशनी है। केदारनाथ सिंह इन्तज़ार मत करो जो कहना हो कह डालो क्योंकि हो सकता है फिर कहने का कोई अर्थ न रह जाए सोचो जहाँ खड़े हो, वहीं से सोचो चाहे राख से ही शुरू करो मगर सोचो उस जगह की तलाश व्यर्थ है। जहाँ पहुँचकर यह दुनिया एक पोस्ते के फूल में बदल जाती है नदी सो रही है उसे सोने दो उसके सोने से दुनिया के होने का अन्दाज़ मिलता है। पूछो चाहे जि…
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माँ | उत्तिमा केशरी माँ आसनी पर बैठकर जब एकाकी होकर बाँचती है रामायण तब उनके स्निग्ध ज्योतिर्मय नयन भीग उठते हैं बार-बार । माँ जब ज्योत्सना भरी रात्रि में सुनाती है अपने पुरखों के बारे में तो उनकी विकंपित दृष्टि ठहर जाती है कुछ पल के लिए मानो सुनाई पड़ रही हो एक आर्तनाद ! माँ जब सोती है धरती पर सुजनी बिछाकर तब वह ढूँढ़ रही होती है अपनी ही परछाई जिस…
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अँधेरे की भी होती है एक व्यवस्था | अनुपम सिंह अँधेरे की भी होती है एक व्यवस्था चीज़ें गतिमान रहती हैं अपनी जगहों पर बादल गरजते हैं कहीं टूट पड़ती हैं बिजलियाँ बारिश अँधेरे में भी भिगो देती है पेड़ पत्तियों से टपकता पानी सुनाई देता है अँधेरे के आईने में देखती हूँ अपना चेहरा तुम आते तो दिखाई देते हो बस! ख़त्म नहीं होतीं दूरियाँ आँसू ढुलक जाते हैं गालो…
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अच्छा था अगर ज़ख्म न भरते कोई दिन और | फ़राज़ अच्छा था अगर ज़ख्म न भरते कोई दिन और उस कू-ए-मलामत में गुज़रते कोई दिन और रातों के तेरी यादों के खुर्शीद उभरते आँखों में सितारे से उभरते कोई दिन और हमने तुझे देखा तो किसी और को ना देखा ए काश तेरे बाद गुज़रते कोई दिन और राहत थी बहुत रंज में हम गमतलबों को तुम और बिगड़ते तो संवरते कोई दिन और गो तर्के-तअल्लुक…
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वह जन मारे नहीं मरेगा | केदारनाथ अग्रवाल जो जीवन की धूल चाटकर बड़ा हुआ है, तूफानों से लड़ा और फिर खड़ा हुआ है, जिसने सोने को खोदा, लोहा मोड़ा है, जो रवि के रथ का घोड़ा है, वह जन मारे नहीं मरेगा, नहीं मरेगा!! जो जीवन की आग जलाकर आग बना है, फौलादी पंजे फैलाये नाग बना है, जिसने शोषण को तोड़ा, शासन मोड़ा है, जो युग के रथ का घोड़ा है, वह जन मारे नहीं मर…
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माँ की ज़िन्दगी | सुमन केशरी चाँद को निहारती कहा करती थी माँ वे भी क्या दिन थे जब चाँदनी के उजास में जाने तो कितनी बार सीए थे मैंने तुम्हारे पिताजी का कुर्ते काढ़े थे रूमाल अपनी सास-जिठानी की नज़रें बचा के अपने गालों की लाली छिपाती वे झट हाज़िर कर देती सूई-धागा और धागा पिरोने की बाज़ी लगाती हरदम हमारी जीत की कामना करती माँ ऐसे पलों में खुद बच्ची बन …
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मुझे प्रेम चाहिए | नीलेश रघुवंशी मुझे प्रेम चाहिए घनघोर बारिश-सा । कड़कती धूप में घनी छाँव-सा ठिठुरती ठंड में अलाव-सा प्रेम चाहिए मुझे। उग आये पौधों और लबालब नदियों-सा दूर तक पैली दूब उस पर छाई ओस की बुँदों सा । काले बादलों में छिपा चाँद सूरज की पहली किरण-सा प्रेम चाहिए । खिला-खिला लाल गुलाब-सा कुनमुनाती हँसी-सा अँधेरे में टिमटिमाती रोशनी-सा प्रेम …
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स्त्री | सुशीला टाकभौरे एक स्त्री जब भी कोई कोशिश करती है लिखने की बोलने की समझने की सदा भयभीत-सी रहती है मानो पहरेदारी करता हुआ कोई सिर पर सवार हो पहरेदार जैसे एक मज़दूर औरत के लिए ठेेकेदार या खरीदी संपत्ति के लिए चौकीदार वह सोचती है लिखते समय कलम को झुकाकर बोलते समय बात को संभाल ले और समझने के लिए सबके दृष्टिकोण से देखे क्योंकि वह एक स्त्री है!…
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मरने की फ़ुरसत | अनामिका ईसा मसीह औरत नहीं थे वरना मासिक धर्म ग्यारह बरस की उमर से उनको ठिठकाए ही रखता देवालय के बाहर! बेथलेहम और यरूशलम के बीच कठिन सफ़र में उनके हो जाते कई तो बलात्कार और उनके दुधमुँहे बच्चे चालीस दिन और चालीस रातें जब काटते सड़क पर, भूख से बिलबिलाकर मरते एक-एक कर— ईसा को फ़ुरसत नहीं मिलती सूली पर चढ़ जाने की भी!…
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कब लौट के आओगे बता क्यों नहीं देते | सलमान अख़्तर कब लौट के आओगे बता क्यों नहीं देते दीवार बहानों की गिरा क्यों नहीं देते तुम पास हो मेरे तो पता क्यों नहीं चलता तुम दूर हो मुझसे तो सदा क्यों नहीं देते बाहर की हवाओं का अगर ख़ौफ़ है इतना जो रौशनी अंदर है, बुझा क्यों नहीं देतेद्वारा Nayi Dhara Radio
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अनुपस्थित-उपस्थित | राजेश जोशी मैं अक्सर अपनी चाबियाँ खो देता हूँ छाता मैं कहीं छोड़ आता हूँ और तर-ब-तर होकर घर लौटता हूँ अपना चश्मा तो मैं कई बार खो चुका हूँ पता नहीं किसके हाथ लगी होंगी वे चीजें किसी न किसी को कभी न कभी तो मिलती ही होंगी वे तमाम चीज़ें जिन्हें हम कहीं न कहीं भूल आए छूटी हुई हर एक चीज़ तो किसी के काम नहीं आती कभी भी लेकिन कोई न को…
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दादा की तस्वीर | मंगलेश डबराल दादा को तस्वीरें खिंचवाने का शौक़ नहीं था या उन्हें समय नहीं मिला उनकी सिर्फ़ एक तस्वीर गन्दी पुरानी दीवार पर टँगी है वे शान्त और गम्भीर बैठे हैं। पानी से भरे हुए बादल की तरह दादा के बारे में इतना ही मालूम है कि वे माँगनेवालों को भीख देते थे नींद में बेचैनी से करवट बदलते थे और सुबह उठकर बिस्तर की सिलवटें ठीक करते थे मै…
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अँधेरे का सफ़र मेरे लिए है | रमानाथ अवस्थी तुम्हारी चाँंदनी का क्या करूँ मैं अँधेरे का सफ़र मेरे लिए है। किसी गुमनाम के दुख-सा अनजाना है सफ़र मेरा पहाड़ी शाम-सा तुमने मुझे वीरान में घेरा तुम्हारी सेज को ही क्यों सजाऊँ समूचा ही शहर मेरे लिए है थका बादल किसी सौदामिनी के साथ सोता है। मगर इनसान थकने पर बड़ा लाचार होता है। गगन की दामिनी का क्या करूँ मैं…
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भविष्य की आशा और हमारे आदर्श - Bharat Bharati 64 (भविष्यत खण्ड ) - मैथिलीशरण गुप्त
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नया सच रचने | नंदकिशोर आचार्य पत्तों का झर जाना शिशिर नहीं जड़ों में यह सपनों की कसमसाहट है- अपने लिए नया सच रचने की ख़ातिर- झूठ हो जाता है जो खुद झर जाता है।द्वारा Nayi Dhara Radio
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आत्मा | अंजू शर्मा मैं सिर्फ एक देह नहीं हूँ, देह के पिंजरे में कैद एक मुक्ति की कामना में लीन आत्मा हूँ, नृत्यरत हूँ निरंतर, बांधे हुए सलीके के घुँघरू, लौटा सकती हूँ मैं अब देवदूत को भी मेरे स्वर्ग की रचना मैं खुद करुँगी, मैं बेअसर हूँ किसी भी परिवर्तन से, उम्र के साथ कल पिंजरा तब्दील हो जायेगा झुर्रियों से भरे एक जर्जर खंडहर में, पर मैं उतार कर, …
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नवयुवाओं से उद्बोधन - Bharat Bharati 63 (भविष्यत खंड) - मैथिलीशरण गुप्त
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लड़की | अंजू शर्मा एक दिन समटते हुए अपने खालीपन को मैंने ढूँढा था उस लड़की को, जो भागती थी तितलियों के पीछे सँभालते हुए अपने दुपट्टे को फिर खो जाया करती थी किताबों के पीछे, गुनगुनाते हुए ग़ालिब की कोई ग़ज़ल अक्सर मिल जाती थी वो लाईब्रेरी में, कभी पाई जाती थी घर के बरामदे में बतियाते हुए प्रेमचंद और शेक्सपियर से, कभी बारिश में तलते पकौड़ों को छोड़कर…
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तुमने इस तालाब में | दुष्यंत कुमार तुमने इस तालाब में रोहू पकड़ने के लिए छोटी-छोटी मछलियाँ चारा बनाकर फेंक दीं। तुम ही खा लेते सुबह को भूख लगती है बहुत, तुमने बासी रोटियाँ नाहक उठाकर फेंक दीं। जाने कैसी उँगलियाँ हैं जाने क्या अंदाज़ हैं, तुमने पत्तों को छुआ था जड़ हिलाकर फेंक दीं। इस अहाते के अँधेरे में धुआँ-सा भर गया, तुमने जलती लकड़ियाँ शायद बुझाक…
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जंतर-मंतर | अरुणाभ सौरभ लाल - दीवारों और झरोखे पर सरसराते दिन में सीढ़ी-सीढ़ी नाप रहे हो जंतर-मतर पर बोल कबूतर मैंना बोली फुदक-फुदककर बड़ी जालिम है। जंतर-मंतर मॉँगन से कछू मिले ना हियाँ बताओ किधर चले मियाँ पूछ उठाकर भगी गिलहरी कौवा बोला काँव - काँव लोट चलो अब अपने गाँव टिट्ही बोलीं टीं.टीं. राजा मंत्री छी...छी घर - घर माँग रहे वोट और नए- पुराने नोट…
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पढ़िए गीता | रघुवीर सहाय पढ़िए गीता बनिए सीता फिर इन सब में लगा पलीता किसी मूर्ख की हो परिणीता निज घर-बार बसाइए होंय कैँटीली आँखें गीली लकड़ी सीली, तबियत ढीली घर की सबसे बड़ी पतीली भर कर भात पसाइएद्वारा Nayi Dhara Radio
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साथी | केदारनाथ अग्रवाल झूठ नहीं सच होगा साथी। गढ़ने को जो चाहे गढ़ ले मढ़ने को जो चाहे मढ़ ले शासन के सी रूप बदल ले राम बना रावण सा चल ले झूठ नहीं सच होगा साथी! करने को जो चाहे कर ले चलनी पर चढ़ सागर तर ले चिउँटी पर चढ़ चाँद पकड़ ले लड़ ले ऐटम बम से लड़ ले झूठ नहीं सच होगा साथी!द्वारा Nayi Dhara Radio
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मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था | अंजुम रहबर मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था वो उतनी दूर हो गया जितना क़रीब था मैं उस को देखने को तरसती ही रह गई जिस शख़्स की हथेली पे मेरा नसीब था बस्ती के सारे लोग ही आतिश-परस्त थे घर जल रहा था और समुंदर क़रीब था मरियम कहाँ तलाश करे अपने ख़ून को हर शख़्स के गले में निशान-ए-सलीब था दफ़ना दिया गया मुझे चाँदी …
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पूछ रहे हो क्या अभाव है | शैलेन्द्र पूछ रहे हो क्या अभाव है तन है केवल, प्राण कहाँ है ? डूबा-डूबा सा अन्तर है यह बिखरी-सी भाव लहर है, अस्फुट मेरे स्वर हैं लेकिन मेरे जीवन के गान कहाँ हैं? मेरी अभिलाषाएँ अनगिन पूरी होंगी ? यही है कठिन, जो ख़ुद ही पूरी हो जाएँ - ऐसे ये अरमान कहाँ हैं ? लाख परायों से परिचित है, मेल-मोहब्बत का अभिनय है, जिनके बिन जग सू…
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राख | अरुण कमल शायद यह रुक जाता सही साइत पर बोला गया शब्द सही वक्त पर कन्धे पर रखा हाथ सही समय किसी मोड़ पर इंतज़ार शायद रुक जाती मौत ओफ! बार बार लगता है मैंने जैसे उसे ठीक से पकड़ा नहीं गिरा वह छूट कर मेरी गोद से किधर था मेरा ध्यान मैं कहाँ था अचानक आता है अँधेरा अचानक घास में फतिंगों की हलचल अचानक कोई फूल झड़ता है और पकने लगता है फल मैंने वे सारे …
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तुम को भुला रही थी कि तुम याद आ गए | अंजुम रहबर तुम को भुला रही थी कि तुम याद आ गए मैं ज़हर खा रही थी कि तुम याद आ गए कल मेरी एक प्यारी सहेली किताब में इक ख़त छुपा रही थी कि तुम याद आ गए उस वक़्त रात-रानी मिरे सूने सहन में ख़ुशबू लुटा रही थी कि तुम याद आ गए ईमान जानिए कि इसे कुफ़्र जानिए मैं सर झुका रही थी कि तुम याद आ गए कल शाम छत पे मीर-तक़ी-'मीर…
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तुम्हारी जाति क्या है? | कुमार अंबुज तुम्हारी जाति क्या है कुमार अंबुज? तुम किस-किस के हाथ का खाना खा सकते हो और पी सकते हो किसके हाथ का पानी चुनाव में देते हो किस समुदाय को वोट ऑफ़िस में किस जाति से पुकारते हैं लोग तुम्हें जन्मपत्री में लिखा है कौन सा गोत्र और कहां ब्याही जाती हैं तुम्हारे घर की बहन-बेटियां बताओ अपना धर्म और वंशावली के बारे में किस…
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अँकुर | इब्बार रब्बी अँकुर जब सिर उठाता है ज़मीन की छत फोड़ गिराता है वह जब अन्धेरे में अंगड़ाता है मिट्टी का कलेजा फट जाता है हरी छतरियों की तन जाती है कतार छापामारों के दस्ते सज जाते हैं पाँत के पाँत नई हो या पुरानी वह हर ज़मीन काटता है हरा सिर हिलाता है नन्हा धड़ तानता है अँकुर आशा का रँग जमाता है।…
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बच्चा | रामदरश मिश्रा हम बच्चे से खेलते हैं। हम बच्चे की आँखों में झाँकते हैं। वह हमारी आँखों में झाँकता है हमारी आँखों में उसकी आँखों की मासूम परछाइयाँ गिरती हैं और उसकी आँखों में हमारी आँखों के काँटेदार जंगल। उसकी आँखें धीरे-धीरे काँटों का जंगल बनती चली जाती हैं और हम गर्व से कहते हैं- बच्चा बड़ा हो रहा है।…
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पिता | विनय कुमार सिंह ख़ामोशी से सो रहे पिता की फैली खुरदुरी हथेली को छूकर देखा उन हथेलियों की रेखाएं लगभग अदृश्य हो चली थीं फिर उन हथेलियों को देखते समय नज़र अपनी हथेली पर पड़ी और एहसास हुआ न जाने कब उन्होंने अपनी क़िस्मत की लकीरों को चुपचाप मेरी हथेली में रोप दिया था अपनी ओर से कुछ और जोड़करद्वारा Nayi Dhara Radio
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मन के झील में | शशिप्रभा तिवारी आज फिर तुम्हारे मन के झील की परिक्रमा कर रही हूं धीरे-धीरे यादों की पगडंडी पर गुज़रते हुए वह पीपल का पुराना पेड़ याद आया उसके छांव में बैठ कर मुझसे बहुत सी बातें तुम करते थे मेरे कानों में बहुत कुछ कह जाते जो नज़रें मिला कर नहीं कह पाते थे क्या करूं गोविन्द! बहुत रोकती हूं मन कहा नहीं मानता तुम द्वारका वासी मैं बरसाने …
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लौटती सभ्यताएँ | अंजना टंडन विश्वास की गर्दन प्रायः लटकती है संदेह की कीलों पर, “कहीं कुछ तो है” का भाव दरअसल दिमाग की दबी आवाज़ है जो अक्सर छोड़ देती है प्रशंसा में भी कितनी खाली ध्वनियाँ, संदेह के कान आत्ममुग्धता की रूई से बंद है आँखें ऊगी हैं पूरी देह पर और खून में है दुनियावी अट्टाहास , कंठ भर तंज दिल के मर्म को कभी जान नहीं पाएगा, मृत्यु बाद ही…
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