Chunaav | Anamika
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चुनाव - अनामिका
अपनी चपलता मुद्राओं में भी नर्तक
सम तो नहीं भूलता
पहीया नहीं भूलता अपना धूरा
तू काहे भूल गई अनामिका
तू कौन है याद रख
शास्त्रों ने कहा
तू-तू मैं-मैं करती दुनिया ने उंगली उठाई
आखिर तू है कौन किस खेत की मूली
मैं तो घबरा ही गई
घबराकर सोचा
इस विषम जीवन में मेरा सम कौन भला
नाम तक कि कोई चौहत दी
तो मुझको मिली नहीं
यों ही पुकारा कि कर किये लोग अनामिका
एक अकेला शब्द अनामिका
आगे नाथ न पीछे पगह
पापा ने तो नाम रखते हुए की होगी यह कल्पना
कि नाम रूप के झमेले बांधे नहीं मुझको
और मैं अगाध ही रहूँ
आध्या जैसी
घूमूँ-फिरूँ जग में
बन कर जगतधात्रि जगत माता
चाहती हूँ कि साकार करूं
बेचारे पापा की कल्पना
और भूल जाऊँ घेरे बंदियाँ
लेकिन हर पग पर हैं बाड़े
अजकजा जाती हूँ जब पानी पूछते हुए
लोग पूछ लेते हैं आज तलक
आप लोग होते हैं कौन
रह जाती हूँ मौन
अपनी जड़ें टटोलती
पर मज़े की बात यह है
कि एक ख़ुफ़िया कार्रवाई
एकदम से शुरू हो जाती है तब से ही
मेरे उद्गम स्रोतों की
और ताड़ से गिरकर सीधा खजूर पर अटकती हूँ
जब मेरी जाती के लोग
झाड़ देते हैं रहस्यवाद मेरा
और मिलाकर हाथ कहते हैं
ऐन चुनाव की घड़ी
हम एक ही तो हैं मैडम
एक कुल गोत्र है हमारा
अब की चुनाव में खड़ा हूँ
आपके भरोसे
मत याद रख
भूल जा
गाता है जोगी
सारंगी पर
मुस्का कर बढ़ जाती हूँ आगे
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