पृथ्वी का मंगल हो | Prithvi Ka Mangal Ho
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करोना लॉकडाउन के दिनों में लिखी गई अशोक वाजपेयी की यह कविता, पृथ्वी और उसके बाशिंदों के लिए एक प्रार्थना तो है ही, पर साथ ही प्रकृति पर मनुष्य की गहरी निर्भरता का एक अनुस्मारक भी है। Ashok Vajpeyi's poem, written during the Covid lockdown, is not only a prayer for the Earth and all its inhabitants but is also a reminder of the extent to which humanity depends on nature. कविता / Poem – पृथ्वी का मंगल हो | Prithvi Ka Mangal Ho कवि / Poet – अशोक वाजपेयी | Ashok Vajpeyi पूरी कविता यहाँ पढ़ें / Read the full poem here - https://www.hindwi.org/kavita/ashok-vajpeyi-kavita-6 A Nayi Dhara Radio Production
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