Do you want to know the new films hitting cinemas soon? What about hearing spoilers from movie fans, or reviews from respected film critics? Do you want to get behind-the-scenes deets or listen to interviews with your favorite movie stars and Hollywood insiders? Or are you interested in knowing the best movies of all time or the worst ones in the past year? If you're a certified film buff, you can surely get loads of "cinematic goodies" from podcasts.
With just your phone or your PC, you can listen to thousands of podcasts that are readily available online. Your podcast listening experience never stops there as you can also download them, which means you can enjoy podcasts even when you're not connected to wi-fi.
While you can binge on motion pictures, you can binge on movie podcasts too. And there are lots to choose from – may it be about horror movies, sci-fi, action, comedy, Bollywood, blockbuster films, your favorite Disney or Marvel films, even Netflix! There's always a podcast that suits your taste, giving you info and entertainment about the films you love (or hate 😊).
So what are the best film podcasts out there? No need to look for them elsewhere as we've already collected them for you here. Now, all you need to do is grab some popcorn and let these podcasts take you to the epic world of cinema.
अलंकृता श्रीवास्तव हिंदी फ़िल्म निर्देशिकाओं की नई पीढ़ी की नुमाइंदगी करती हैं. उनका कहना है कि प्रकाश झा के साथ काम करके उन्होने ना सिर्फ़ फ़िल्म बनाने की कला सीखी है बल्कि अड़ कर खड़े रहने का हुनर भी हासिल किया है. उनकी फ़िल्म 'लिपस्टिक अंडर माए बुर्खा' की रिलीज़ को लेकर सेंसर बोर्ड से हुई तनातनी ने अलंकृता के इरादों को दबाया नहीं है बल्कि हवा दे…
1984 में जब दिल्ली में सिख-विरोधी दंगे भड़के तब शोनाली बोस शहर में मौजूद थीं. उन्होने वो सारा मंज़र अपनी आंखों से देखा. बाद में दंगों पर आधारित एक नॉवेल लिखी जिस पर उनकी फ़िल्म 'अमू' बनी. शोनाली के लिए उनकी फ़िल्में सिर्फ़ एक आर्ट नहीं हैं बल्कि उनकी राजनीतिक सोच और सवाल उठाने का ज़रिया हैं. इस बातचीत में वो बता रही हैं उनकी फ़िल्मों के पीछे की कहा…
राजश्री ओझा ने अमेरिका में पढ़ाई करने के बाद मुंबई आने का फ़ैसला किया. दस साल के करियर में उनके नाम तीन फ़ीचर फ़िल्में हैं. एक फ़िल्मकार के करियर को नंबरों पर आंका जाए तो उनका पलड़ा भारी नहीं लगेगा लेकिन भारत के अलग अलग शहरों समेत न्यूयॉर्क में लंबा वक्त बिताने के बाद मुंबई में काम करना राजश्री के लिए कैसा तजुर्बा रहा? क्या उनकी समझ और पढ़ाई काम आई…
सिने-माया की इस कड़ी में आप मिलेंगे वीडियो एडिटर से निर्देशन तक का सफ़र तय करने वाली लीना यादव से. अपनी शुरूआती फ़िल्मों में ही लीना यादव को ऐश्वर्या राय और अमिताभ बच्चन जैसे बड़े सितारों को निर्देशित करने का मौक़ा तो मिला लेकिन उनके करियर को वो ऊंचाई नहीं मिली जिसकी संभावना थी. लीना इसके लिए किसे ज़िम्मेदार ठहराती हैं और क्या उन्हें लगता है कि इंड…
कुछ लोगों से मिलने के बाद ये समझ में आता है कि भले ही उनके काम की चर्चा सारा ज़माना ना कर रहा हो लेकिन उनका काम अपने आप में कितना अहम है और कितने लोगों को छू रहा है. पारोमिता वोहरा से मिलकर शायद आपको भी ऐसा ही लगेगा. बॉलीवुड कहे जाने वाले सिनेमा ने उन्हें मजबूर किया कि वो अपनी एक नई भाषा गढ़ें और उसी के साथ आगे बढ़ें. पारोमिता की डाक्यूमेंट्री फ़िल…
सिने-माया की तीसरी कड़ी में अरुणा राजे पाटिल से हुई बातचीत सिर्फ़ एक निर्देशिका के फ़िल्मी करियर की कहानी नहीं है. ये कहानी है एक औरत के हौसले की, ठोकर खाकर फिर संभलने और ख़ुद को पा लेने की. अरुणा राजे ने अपने पति और निर्देशक विकास देसाई से तलाक़ के बाद ख़ुद को इतना अकेला पाया कि अपनी क़ाबिलियत पर भरोसा करने की हिम्मत भी जवाब देने लगी. लेकिन जिंदगी…
फ़िल्मकारों की नज़र और नज़रिए पर किन चीज़ों की छाप होती है? बचपन में बिताए पलों का उनकी कला से कितना गहरा रिश्ता हो सकता है, इसका अहसास तनूजा चंद्रा से हुई बातचीत से लगाया जा सकता है. सिने-माया की दूसरी कड़ी में तनूजा बताएंगी कि उत्तर भारत में बीते उनके शुरूआती सालों ने उन्हें क्या दिया है और वो एक निर्देशिका के तौर पर कैसा सिनेमा रचने में यक़ीन रख…
सिने-माया की पहली मेहमान हैं अभिनेत्री और निर्देशिका नंदिता दास जिनकी हालिया रिलीज़ फ़िल्म 'मंटो' ख़ासी चर्चा में रही. इस पॉडकास्ट पर हुई पूरी बातचीत, एक निर्देशिका के तौर पर उनके अनुभव को केंद्र में रखती है. नंदिता दास बताएंगी कि क्यों उन्होने 'फ़िराक़' के बाद फ़िल्म ना बनाने के बारे में सोचा और फ़ेमिनिस्ट कही जाने वाली कुछ फ़िल्मों से उन्हें क्या…
भारतीय सिनेमा के इतिहास को अगर भारतीय सिनेमा का पुरुष इतिहास कहा जाए तो कुछ ग़लत नहीं होगा. सिनेमा और ओरतें...ये ज़िक्र छेड़ा जाए तो आमतौर पर दिमाग़ में उभरते हैं पर्दे पर नज़र आने वाले चंद किरदार, कुछ चकाचौंध करने वाले चेहरे और ग्लैमर का बाज़ार. फ़िल्म निर्देशकों का ज़िक्र हो तो क्या आपको कोई महिला निर्देशिका एकदम से याद आती है? चलिए एक कोशिश करते…