यीशु अपनी भेड़ों को जानता है।
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“मेरी भेड़ें मेरी आवाज़ सुनती हैं। मैं उन्हें जानता हूँ।” (यूहन्ना 10:27)
यीशु उन लोगों को जानता है जो उसके हैं। यह किस प्रकार का जानना है?
यूहन्ना 10:27 के समान ही यूहन्ना 10:3 है। वहाँ लिखा है कि “भेड़ें उसकी आवाज़ पहचानती हैं और वह अपनी भेड़ों को नाम ले लेकर पुकारता है और उन्हें बाहर ले जा ता है।”
अतः जब यीशु कहता है, “मैं उन्हें जानता हूँ” तो कम से कम इसका अर्थ यह है कि वह उन्हें उनके नाम से जानता है; वह उन्हें व्यक्तिगत रीति से तथा घनिष्ठता से जानता है। वे अज्ञात भेड़ें नहीं हैं जो झुण्ड में खो गईं हैं।
यूहन्ना 10:14-15 हमें एक और बात सिखाता है: “अच्छा चरवाहा मैं हूँ। मैं अपनी भेड़ों को जानता हूँ और मेरी भेड़ें मुझे जानती हैं – वैसे ही जैसे पिता मुझे जानता है और मैं पिता को जानता हूँ।”
जिस रीति से यीशु स्वर्ग में अपने पिता को जानता है और जिस रीति से वह अपनी भेड़ों को जानता है, उन दोनों बातों में एक वास्तविक समानता है। यीशु स्वयं को अपने पिता में देखता है और इसी प्रकार वह स्वयं को अपने शिष्यों में भी देखता है।
कुछ सीमा तक यीशु अपने शिष्यों में अपने चरित्र को देखता है। वह अपनी भेड़ों पर अपनी छाप को देखता है। यह बात यीशु के लिए भेड़ों को और प्रिय बनाती है।
वह हवाई अड्डे पर अपनी पत्नी की प्रतीक्षा कर रहे एक पति के समान है जो जहाज से उतरने वाले प्रत्येक जन को देखता है।और जब उसकी पत्नी दिखाई पड़ती है तो वह उसको जानता है, वह उसके रूप को पहचानता है और उसकी आँखों में अपने प्रेम के आनन्दमय प्रतिबिम्ब को देखता है। वह उसमें हर्षित होता है। वह केवल उसी को गले लगाता है।
प्रेरित पौलुस इस प्रकार से इस बात को व्यक्त करता है: “फिर भी परमेश्वर की पक्की नींव अटल रहती है, जिस पर यह छाप लगी है, ‘परमेश्वर अपने लोगों को पहिचानता है’” (2 तीमुथियुस 2:19)।
इस बात पर और अधिक बल देना कठिन है कि परमेश्वर के पुत्र द्वारा व्यक्तिगत रीति से, घनिष्ठता के साथ तथा प्रेमपूर्वक रीति से पहचाना जाना कितनी बड़ूी और अद्भुत सौभाग्य की बात है। यह उसकी सभी भेड़ों के लिए एक बहुमूल्य उपहार है और इसमें बड़ी गहरी, व्यक्तिगत सहभागिता और अनन्त जीवन की प्रतिज्ञा पाई जाती है।
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