एपिसोड 43: शबरीमाला, गुजरात से पलायन, स्वामी सानंद की मृत्यु और अन्य
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गुजरात में उत्तर भारतीयों पर हुए हमले के बाद उनका पलायन, शबरीमाला मंदिर मुद्दे पर हो रही राजनीति और राजनीतिक पार्टियों का महिलाओं के मुद्दे पर दोहरा रवैया, इलाहाबाद को मिले नए नाम प्रयागराज और गंगा की सफाई के लिए अनशन पर बैठे स्वामी सानंद की मृत्यु इस हफ्ते की एनएल चर्चा का मुख्य विषय रहे.इस बार चर्चा में स्तंभ लेखक और ओपिनियन लेखक आनंद वर्धन, न्यूज़लॉन्ड्री के असिस्टेंट एडिटर राहुल कोटियाल, न्यूज़लॉन्ड्री के विशेष संवाददाता अमित भारद्वाज शामिल रहे. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.चर्चा की शुरुआत करते हुए अतुल चौरसिया ने शबरीमाला मंदिर में हर उम्र की महिला के प्रवेश संबंधी सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर राजनीतिक पार्टियों द्वारा की जा रही सियासत का मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा, “महिलाओं के जो मुद्दे हैं, राजनीतिक पार्टियां उन्हें भी धर्म के चश्मे से ही देख रही हैं. दुर्भाग्य यह है कि इसमें कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दोनों एक ही मंच पर आती दिख रही हैं.”अतुल आगे कहते हैं, “कुछ ही महीने पहले हमने देखा कि तीन तलाक के मुद्दे पर मौजूदा सरकार ने महिला सशक्तिकरण के बड़े बड़े दावे किए थे और मुस्लिम महिलाओं की बेहतरी की बातें कही थी. आज शबरीमाला के मुद्दे पर वही भाजपा सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के खिलाफ वहां आंदोलन चला रही है.”चर्चा को विस्तार देते हुए अमित भारद्वाज ने सबरीमाला के प्रसंग में बात करते हुए इसका ऐतिहासिक विवरण दिया और इसे वर्तमान संदर्भ से जोड़ा. आनंद वर्धन ने शबरीमाला प्रकरण को एक संस्थागत विषय मानते हुए इसे पूरे हिंदू समाज की समस्या के तौर पर देखने की प्रवृत्ति को गलत बताया. इस तरह की दिक्कतें किसी एक संस्था से जुड़ी हो सकती हैं. और इसके नकारात्मक पक्ष भी हो सकते हैं लेकिन इसे पूरे हिंदू धर्म से जोड़ा जा रहा है. ऐसे तमाम मंदिर हैं जहां महिलाओं के प्रवेश पर कोई प्रतिबंध नहीं हैं.गुजरात और उत्तर भारतीयों पर हुई हिंसा के मामले में हो रही राजनीति पर राहुल कोटियाल ने कहा कि इस तरह का नस्ल भेद आपको लगभग हर जगह देखने को मिलेगा, जहां किसी दूसरे क्षेत्र के लोग आकर रहते हैं. आगे उन्होंने कहा कि इस राजनीति का कोई चेहरा नहीं है.अमित भारद्वाज ने गुजरात के पलायन के पीछे चल रही राजनीति की ओर इशारा किया. उनके मुताबिक इस घटना के समय और स्वरूप को देखकर कहा जा सकता है कि इसके पीछे राजनीतिक ताकतें काम कर रही हैं. साथ ही अमित ने इस मसले को संक्षिप्त में समझाते हुए इसे गुजरात के सामाजिक और आर्थिक मामलों से भी जोड़ा.उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इलाहाबाद का नाम बदल कर प्रयागराज किए जाने के कई पहलुओं पर चर्चा हुई. आनंद वर्धन ने इस पर बात रखते हुए कहा कि भारत में नाम बदलने की राजनीतिक संस्कृति हमेशा रही है, उत्तर प्रदेश में भी रही है. आगे उन्होने कहा कि नाम बदलना संघ के उन सांस्कृतिक प्रोजेक्ट्स का हिस्सा है जो सबसे कम प्रतिरोध उत्पन्न करते हैं. अतुल चौरसिया ने इलाहाबाद के नाम पर चर्चा करते हुए उसके इतिहास पर रोशनी डाली. आनंद ने आखिर में लालू प्रसाद द्वारा पटना का नाम बदलकर अज़ीमाबाद करने की योजना का किस्सा सुनाया.स्वामी सानंद की 112 दिन के अनशन के बाद हुई मृत्यु पर बात करते हुए राहुल कोटियाल ने उनके और उनके पहले स्वामी निगमानंद की मृत्यु की भी चर्चा की. राहुल ने यह भी बताया कि गंगा को लेकर संत समाज की मांगें क्या हैं? और गंगा को साफ और अविरल बनाए रखने के लिए जो कदम उठाए जाते रहे हैं, वह कितने अपर्याप्त हैं.
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