एपिसोड 44: हाशिमपुरा, डीडी न्यूज़ पत्रकार की मौत, पाकिस्तान में ईशनिंदा और अन्य
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दंतेवाड़ा में हुआ नक्सली हमला, पाकिस्तान में आसिया बीबी के ईशनिंदा मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला और पाकिस्तानी अवाम का विरोध, राम मंदिर की सुनवाई की तारीख बढ़ने और हाशिमपुरा नरसंहार पर आया दिल्ली उच्च न्यायालय का फैसला आदि इस बार की एनएल चर्चा का विषय रहे.इस बार की चर्चा में दो खास मेहमानों ने टेलीफोन के जरिए हिस्सा लिया. इनमें हैदराबाद से पत्रकार मालिनी सुब्रमण्यम, जिन्होंने नक्सली इलाकों में काफी पत्रकारिता की है और साथ ही पाकिस्तान से बीबीसी के पूर्व पत्रकार हफीज चाचड़ शामिल हुए. इसके अलावा न्यूज़लॉन्ड्री के असिस्टेंट एडिटर राहुल कोटियाल, विशष संवाददाता अमित भारद्वाज भी शामिल रहे. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.चर्चा की शुरुआत करते हुए अतुल चौरसिया ने दंतेवाड़ा में हुए नक्सली हमले और दूरदर्शन के कैमरामैन अच्युतानंद साहू की मौत पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसे किसी भी हिंसाग्रस्त इलाके में काम करने वाले पत्रकारों की क्या चुनौतियां हैं, जो पत्रकार वहां जा रहे है उनको किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? यह बड़ा प्रश्न है. इसके जवाब में मालिनी सुब्रमण्यम ने कहा, “यह बहुत ही बड़ा घटना है. और इस बात पर दोनों पक्षों को, सरकार और माओवादी, सफाई देने की जरूरत है. हालांकि माओवादियों ने एक पर्चा जारी कर कहा है कि- “पत्रकारों पर हमला करने का उनका कोई उद्देश्य नहीं था. उन्होंने पुलिस के ऊपर हमला किया था. जैसे ही उन्होंने पुलिस को देखा तो हमला कर दिया. इस हमले को लेकर प्रपोगेंडा चलाया जा रहा है कि माओवादियों ने पत्रकारों को निशाना बनाया. उन्हें बिलकुल भी पत्रकारों के बारे में नहीं था पता था.”अतुल ने पुलिस और पत्रकारों के साथ होने की ओर ध्यान खींचते हुए सवाल किया कि क्या पत्रकारों को ऐसे युद्धरत इलाकों में किसी भी एक पार्टी (सुरक्षा बल या माओवादी) के साथ रिपोर्टिंग के लिए जाना चाहिए? क्योंकि वहां किसी एक पार्टी के साथ होने की सूरत में रिपोर्टर खुद ब खुद दूसरी पार्टी के निशाने पर आ जाते हैं. मालिनी ने डीडी के पत्रकारों द्वारा की गई एक चूक बताया. उनके मुताबिक पत्रकार को स्वतंत्र रूप से ऐऐसे इलाकों में जाना चाहिए. पुलिस चाहे कितनी भी संख्या में हो, पत्रकार के साथ होना खतरे का सबब है.इसी चर्चा को आगे बढ़ते हुए राहुल कोटियाल का एक सवाल आया कि यह जो घटना घटी है, क्या इसको एक छोटी-मोटी घटना मान लिया जाये या फिर इसमें कोई बड़ा संदेश छिपा है? मालिनी ने जवाब में कहा, “इसमें से एक संदेश पत्रकारों को लिए है. एंबुश आए दिन होते रहते हैं. तो ऐसे इलाकों में पत्रकारों की अपनी पहचान के साथ जाना होगा. जैसा कि माओवादियों ने भी कहा है कि कोई पत्रकार चुनाव कवर करने आ रहा है, वह स्वतंत्र होकर आए. किसी भी तरह की सुरक्षा न ले.”न्यूज़लांड्री के रिपोर्टर अमित भारद्वाज ने एक नए पहलू की पर रोशनी डालते हुए सवाल किया कि दरगा कमेटी द्वारा जारी चिट्ठी, जिसमें माओवादियों ने पत्रकारों और चुनाव कर्मियों से कहा कि वो आयें चुनाव कवर करें, चुनाव प्रक्रिया में शामिल हों लेकिन बिना सुरक्षाबलों के। हम उन्हें क्षति नहीं पहुंचाएंगे, लेकिन वहीं दूसरी तरफ अटैक करते हैं। तो क्या इसमें विरोधाभाष नजर नहीं आता? जिसके जवाब में मालिनी ने कहा कि हर पक्ष स्वयम को बचाने की कोशिश कर रहा है।इस विषय के आखिर में अतुल ने कहा कि डीडी न्यूज़ के पत्रकारों की तरफ से यह बड़ी चूक हुई है. दुनिया भर के संघर्षरत इलाकों में, युद्धग्रस्त इलाकों में रिपोर्टिंग के लिए जाने वाले पत्रकारों को एक स्पष्ट गाइडलाइंस फॉलो करने की जरूरत है. उन्हें क्या करना है, क्या नहीं करना है, इसकी स्पष्ट समझ होनी चाहिए. यह ज़िम्मेदारी पत्रकारिता संस्थानों की भी है कि वे ऐसे पत्रकारों को व्यापक प्रशिक्षण देकर ही युद्धरत इलाकों में रिपोर्टिंग के लिए भेजें.पैनल की विस्तृत राय जानने और अन्य मुद्दों के लिए सुनें पूरी चर्चा.
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