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Mahishasuramardini-18-19

 
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पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं स शिवे
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत् ।
तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥ १८ ॥

कनकलसत्कल-सिन्धुजलैरनुसिञ्चिनुते गुण-रङ्गभुवम्
भजति स किं न शचीकुच-कुम्भ-तटी-परिरम्भ-सुखानुभवम् ।
तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवम्
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥ १९ ॥

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अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत् ।
तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥ १८ ॥

कनकलसत्कल-सिन्धुजलैरनुसिञ्चिनुते गुण-रङ्गभुवम्
भजति स किं न शचीकुच-कुम्भ-तटी-परिरम्भ-सुखानुभवम् ।
तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवम्
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥ १९ ॥

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