एक भयानक गन्तव्य
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जॉन पाइपर द्वारा भक्तिमय अध्ययन
. . . यीशु जो हमें आने वाले प्रकोप से बचाता है। (1 थिस्सलुनीकियों 1:10)
क्या आपको वह समय स्मरण है जब आप बचपन में खो गए थे, या एक खड़ी चट्टान पर फिसल रहे थे, या डूबने वाले थे? फिर अचानक आपको बचा लिया गया। आप किसी प्रकार से जीवित बच गए। आप उसके विषय में सोचते हुए काँप रहे थे जिसे आपने लगभग खो ही दिया था। आप प्रसन्न थे। ओह, अत्यधिक प्रसन्न और धन्यवादी भी। और आप आनन्द के साथ काँप उठे।
मैं वर्ष के अन्त में परमेश्वर के प्रकोप से अपने बचाए जाने के विषय में ऐसा ही अनुभव करता हूँ। हमारे घर में दिनभर क्रिसमस के दिन अलाव में आग जलती रही। कभी-कभी कोयले इतने गर्म थे कि जब मैं और आग बढ़ाने के लिए लकड़ी डालता था तो मेरे हाथ में पीड़ा होती थी। मैं नरक में पाप के विरुद्ध परमेश्वर के प्रकोप के भयानक विचार के विषय में सोचकर पीछे हटा और काँप उठा। ओह, वह वर्णन से बाहर कितना भयानक होगा!
बड़े दिन की दोपहर मैं एक ऐसी बहन से मिला जिसके शरीर का 87 प्रतिशत से अधिक भाग जल चुका था। वह अगस्त से अस्पताल में ही है। मेरा हृदय उसके लिए बहुत दुःखी हुआ। किन्तु यह कितनी ही अद्भुत बात थी कि मैं उसको परमेश्वर के वचन से आने वाले युग में उसके लिए एक नए शरीर की सुदृढ़ आशा को देने पाया! परन्तु जब मैं वहाँ से वापस आता तो न केवल इस जीवन में उसकी पीड़ा के विषय में सोच रहा था, किन्तु उस चिरस्थायी पीड़ा के विषय में भी सोच रहा था जिससे मैं यीशु के द्वारा बचाया गया हूँ।
मेरे साथ मेरे अनुभव को समझने का प्रयास करें। क्या ऐसे काँपते हुए आनन्द के साथ वर्ष को समाप्त करना उचित होगा? पौलुस आनन्दित था कि “यीशु …हमें आने वाले प्रकोप से बचाता है” (1 थिस्सलुनीकियों 1:10)। उसने चेतावनी दी “परन्तु जो…सत्य को नहीं मानते…उन पर प्रकोप और क्रोध पड़ेगा” (रोमियों 2:8)। और “क्योंकि इन्हीं [यौन अनैतिकता, अशुद्धता और लोभ] के कारण आज्ञा न मानने वालों पर परमेश्वर का प्रकोप पड़ता है” (इफिसियों 5:6)।
यहाँ वर्ष के अन्त में, मैं पूरी बाइबल को पढ़कर समाप्त करने की अपनी यात्रा को पूरी कर रहा हूँ और अन्तिम पुस्तक प्रकाशितवाक्य पढ़ रहा हूँ। यह परमेश्वर के विजय की, और उन सभी के लिए अनन्त आनन्द की महिमामय नबूवत है “जो जीवन का जल बिना मूल्य” लेते हैं (प्रकाशितवाक्य 22:17)। कोई भी आँसू नहीं होंगे, कोई भी पीड़ा नहीं होगी, कोई भी निराशा नहीं होगी, किसी भी प्रकार का शोक नहीं होगा, मृत्यु नहीं होगी, किसी भी प्रकार का पाप नहीं होगा (प्रकाशितवाक्य 21:4)।
परन्तु ओह, पश्चात्ताप न करना और यीशु की साक्षी को दृढ़ता से न थामना कितनी भयानक बात है! “वह प्रेरित जिससे यीशु प्रेम करता था” (अर्थात् यूहन्ना) के द्वारा किया गया परमेश्वर के प्रकोप का वर्णन भयानक है। जो परमेश्वर के प्रेम का तिरस्कार करते हैं “परमेश्वर के प्रकोप की वह मदिरा जो उसके क्रोध के कटोरे में भरपूर उड़ेली गई है पीएगा, और पवित्र स्वर्गदूत और मेमने की उपस्थिति में उसे आग और गन्धक की घोर यातना सहनी पड़ेगी। उनकी यातना का धुआँ युगानुयुग उठता रहेगा; और उन्हें जो पशु की और उसकी मूर्ति की पूजा करते हैं और उसके नाम की छाप लेते हैं, दिन और रात कभी चैन न मिलेगा” (प्रकाशितवाक्य 14:10-11)।
“जिस किसी का नाम जीवन की पुस्तक में लिखा हुआ न मिला, वह आग की झील में फेंक दिया गया” (प्रकाशितवाक्य 20:15)। यीशु “सर्वशक्तिमान परमेश्वर के भयानक प्रकोप की मदिरा का रसकुण्ड रौंदेगा” (प्रकाशितवाक्य 19:15)। “रसकुण्ड से इतना लहू बहा कि उसकी उँचाई घोड़ों की लगामों तक और उसकी दूरी तीन सौ किलोमीटर तक थी” (प्रकाशितवाक्य 14:20)। उस दर्शन का भले ही जो भी महत्व हो, वह यह बताने के लिए ही है कि कुछ अवर्णनीय रीति से भयनाक घटेगा।
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