स्वकथा -"रसीदी टिकट" भाग- 3 ("Rasidi Ticket", Amrita Pritam's biography epi-3)
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बाहर जब शारीरिक तौर पर मेरी बचकानी उम्र उनके पितृ -अधिकार से टक्कर न ले सकती ,तब मैं आलथी -पालथी मार के बैठ जाती ,आँखें मीच लेती ,पर अपनी हार को अपने मन का रोष बना लेती ---'आँख मीच कर अगर मैं ईश्वर का चिंतन न करूँ ,तो पिता जी मेरा क्या कर लेंगे ? जिस इश्वर ने मेरी वह बात नहीं सुनी,अब मैं उससे कोई बात नहीं करूंगी। उसके रूप का भी चिंतन नहीं करूंगी। अब मैं आँखें मीच कर अपने राजन का चिंतन करूंगी। वह सपने में मेरे साथ खेलता है ,मेरे गीत सुनता है,वह कागज़ लेकर मेरी तस्वीर बनाता है---बस ,उसी का ध्यान करूंगी ,उसी का।'
---अमृता प्रीतम ,रसीदी टिकट (पाठ - 4 )
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