स्वकथा--"रसीदी टिकट" भाग-9 ( Rasidi ticket, Amrita pritam's biography epi-9)
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किसी बहुत ऊंची ईमारत के शिखर पर मैं अकेले खड़े हो कर अपने हाथ में लिए हुए कलम से बातें कर रही थी --- 'तुम मेरा साथ दोगे ? --कितने समय मेरा साथ दोगे ?' अचानक किसी ने कसकर मेरा हाथ पकड़ लिया। 'तुम छलावा हो ,मेरा हाथ छोड़ दो।' मैंने कहा , और ज़ोर से अपना हाथ छुड़ाकर उस ईमारत की सीढ़ियां उतरने लगी। मैं बड़ी तेज़ी से उतर रही थी , पर सीढ़ियां ख़त्म होने में नहीं आती थीं। मेरी सांस तेज़ होती जा रही थी ,डर रही थी कि अभी पीछे से आकर वह छलावा मुझे पकड़ लेगा। मैं एक उजाड़ जगह से गुज़र रही थी। मुझे किसी की शक्ल नज़र नहीं आयी ,लेकिन एक आवाज़ सुनाई दी। कोई गा रहा था -- बुरा कित्तोई साहिबां मेरा तरकश टंगयोई जंड। ' तुम कौन हो ? मैंने उस उजाड़ में खड़े हो कर चारों ओर देख कर कहा। "मैं बहादुर मिर्ज़ा हूँ। साहिबां ने मेरे तीर छिपा दिए, और मुझे लोगों के हाथों बे -आयी मौत मरवा दिया। ' मैंने फिर चारों ओर देखा ,पर मुझे किसी की सूरत दिखाई नहीं दी।
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