Poetry by Pratyush Srivastava
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अक्सर मानुष्य अपने जीवन से नहीं बल्की अपनी कल्पना और अपनी सोच से परशान रहता है
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या वो होते किसी और जहां में, या ये दिल बेबाक़ न होता
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हर छोटी बात आज कल रुला देती है,कोई परेशान रहे, ये सह नहीं पता, जाने क्योंपर खैर कौन किसी के ग़म में रोया है कभीबेशक अपना ही कोई दर्द याद आता होगाअश्क अब बहते नहीं है, धीरे धीरे सरकते हैंडर है इन्हें, कि ये जो हजारों यादें क़ैद हैं हर कतरे में,कहीं तकिए की सलवटों में डूब कर वजूद ना खो देंसिसकियां अब शोर नहीं करती, दबे पैर आती हैंशायद इसलिए कि कोई सुन…
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तेरे इंतज़ार में कलियों ने जाने कितने मौसम देख लिए इन्हें इनकी तकदीर बता दो, चाहे ख़िज़ा दो या बहार दो अब तो यह भी याद नहीं रहा कि इंतज़ार किस वक़्त का है ज़ुबाँ पर अटकी है जो बात, उसे कह दो या हलक से उतार दो यूँ न छोड़ जाओ , जान बाकी है मेरे टुकड़ों में अभी कोई तो जीने की वजह बताओ, या फिर पूरा ही मार दो । ठुकरा कर मुझे किसी ग़ैर पर तो ज़ुल्म नहीं करते मैं त…
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हर दौर में रहते हैं, नए दौर की तलाश में सफ़र को दस्तूर बना रखा है अपने ही ख़्वाबों को अधर में , भंवर में , डूबने को छोड़ निकल पड़ते हैं, रोज, नये सौर की तलाश में यूँ ही गुरूर था हमें , अह्ल-ऐ -सफ़र पर “सुख़नवर”, वो साथ तो चलते गए, पर किसी और की तलाश में ।
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अश्कों की स्याही से लिखे कुछ ख़त , और मोड़ कर सिरहाने रख लिए| कुछ नज्में थीं , कुछ बातें थीं , कुछ आँखों में बीती रातें थी| दिल के चंद टुकड़े भी थे, जो अब सीने में चुभने लगे थे| कुछ साँसे थी बची हुई, मद्धम और बेवजह सी| कुछ लम्हे थे बरसों पुराने, जो अब तक गुज़र न सके थे वक़्त से टूट कर आये थे वो, मेरे ख़त में पनाह मांग रहे थे| एक लम्हा और भी था, छोटा सा ,…
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