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Pratyush Srivastava (सुख़नवर) द्वारा प्रदान की गई सामग्री. एपिसोड, ग्राफिक्स और पॉडकास्ट विवरण सहित सभी पॉडकास्ट सामग्री Pratyush Srivastava (सुख़नवर) या उनके पॉडकास्ट प्लेटफ़ॉर्म पार्टनर द्वारा सीधे अपलोड और प्रदान की जाती है। यदि आपको लगता है कि कोई आपकी अनुमति के बिना आपके कॉपीराइट किए गए कार्य का उपयोग कर रहा है, तो आप यहां बताई गई प्रक्रिया का पालन कर सकते हैं https://hi.player.fm/legal
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Akhiri Khat (आखिरी खत)

1:20
 
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अश्कों की स्याही से लिखे कुछ ख़त ,
और मोड़ कर सिरहाने रख लिए|
कुछ नज्में थीं , कुछ बातें थीं ,
कुछ आँखों में बीती रातें थी|
दिल के चंद टुकड़े भी थे,
जो अब सीने में चुभने लगे थे|
कुछ साँसे थी बची हुई,
मद्धम और बेवजह सी|
कुछ लम्हे थे बरसों पुराने,
जो अब तक गुज़र न सके थे
वक़्त से टूट कर आये थे वो,
मेरे ख़त में पनाह मांग रहे थे|
एक लम्हा और भी था,
छोटा सा , बहुत ही प्यारा
उसमे एक हँसी थी, दबी सी, बंधी सी
एक झोंका था ठंडी बयार का ,
रंग था उस लम्हे में, “सुख़नवर” ,
यही तो रंग था मेरी आँखों का भी |
कुछ रोज़ हुए वो ख़त लिखे हुए,
अब तो शायद हर्फ़ भी मिट चले होंगे,
हर आरज़ू की तरह, चुप चाप |
उन पन्नों को तकिये में दफ़न कर आया हूँ,
बचे हुए अश्कों के साथ,
पहलू में खुद को सोता हुआ छोड़ आया हूँ |

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और मोड़ कर सिरहाने रख लिए|
कुछ नज्में थीं , कुछ बातें थीं ,
कुछ आँखों में बीती रातें थी|
दिल के चंद टुकड़े भी थे,
जो अब सीने में चुभने लगे थे|
कुछ साँसे थी बची हुई,
मद्धम और बेवजह सी|
कुछ लम्हे थे बरसों पुराने,
जो अब तक गुज़र न सके थे
वक़्त से टूट कर आये थे वो,
मेरे ख़त में पनाह मांग रहे थे|
एक लम्हा और भी था,
छोटा सा , बहुत ही प्यारा
उसमे एक हँसी थी, दबी सी, बंधी सी
एक झोंका था ठंडी बयार का ,
रंग था उस लम्हे में, “सुख़नवर” ,
यही तो रंग था मेरी आँखों का भी |
कुछ रोज़ हुए वो ख़त लिखे हुए,
अब तो शायद हर्फ़ भी मिट चले होंगे,
हर आरज़ू की तरह, चुप चाप |
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