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Atma-Bodha Lesson # 48 :

32:42
 
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आत्म-बोध के 48th श्लोक में आचार्यश्री हमें आत्मा के विज्ञानं एक और लक्षण देते हैं - और वो है अद्वैत सिद्धि। विज्ञान से अद्वैत सिद्धि होती है, यह ही मुक्ति है। प्रारम्भ होता है ज्ञान से - जब हम अपने शास्त्र और गुरु से जीवन का सत्य जानते हैं। ज्ञान परोक्ष होता है - अर्थात यह सुनी हुई बात है, न की देखी हुई। विज्ञान देखी हुई बात हो जाती है। इसमें अद्वैत सिद्धि हो जाती है। द्वैत तब तक होता है जब तक हम लोग जगत को अलग देखते हैं। यहाँ पर गुरूजी अत्यंत सरल ढंग से जगत का रहस्य बताते हैं जिसके फल स्वरुप हम लोग अद्वैत का साक्षात्कार कर सकते हैं।

इस पाठ के प्रश्न :

१. अद्वैत सिद्धि का क्या अर्थ होता है ?

२. जगत किसको कहते हैं ?

३. ज्ञान और विज्ञानं का क्या अर्थ होता है ?

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१. अद्वैत सिद्धि का क्या अर्थ होता है ?

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