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Atma-Bodha Lesson # 39 :

36:51
 
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आत्म-बोध के 39th श्लोक में आचार्यश्री हमें निदिध्यासन रुपी ध्यान का स्वरुप बता रहे हैं। वे कहते हैं की जिस एकांत वास में रह कर हमने पिछले श्लोक में ध्यान करने की बात कही थी, उसी ध्यान में क्या करना होता है। वे कहते हैं की जो हमें ये समस्त द्रश्य जगत दिख रहा है, जिसमे ही हम सब अपनी खुशियां ढूंढते रहते हैं, अर्थात हो हमारे लिए अभी तब सत्य था, उसके ऊपर ध्यान करें और उसके तत्त्व पर विचार करें - और यह देखें की दृश्य जगत का अस्तित्व और महत्त्व सब दृष्टा के कारण ही होता है। अतः दृश्य को आत्मा में विलीन करें - इसको प्रविलापन कहते हैं। फिर अपने आप को सर्वात्मा, अखण्ड और अनंत देखें - इसकी तीव्र भावना उत्पन्न करें।

इस पाठ के प्रश्न :

१. दृश्य जगत का कारण क्या और कौन होता है?

२. दृश्य जगत दृष्टा के ऊपर कैसे आश्रित होता है?

३. जब दृश्य जगत दृष्टा में विलीन हो जाता है तो आत्मा का कैसा स्वरुप दिखता है?

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इस पाठ के प्रश्न :

१. दृश्य जगत का कारण क्या और कौन होता है?

२. दृश्य जगत दृष्टा के ऊपर कैसे आश्रित होता है?

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