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Atma-Bodha Lesson # 30 :

33:38
 
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आत्म-बोध के 30th श्लोक में आचार्यश्री हमें बता रहे हैं की आत्मा को स्वप्रकाश जानने के बाद एवं उसको अन्य किसी प्रकाशक से प्रकाशित करने की अनावश्यकता देखने के बाद - हमें अपनी उपाधियों के साथ तादात्म्य को शनैः-शनैः बाधित करना चाहिए। इसको ही उपनिषदों में नेति-नेति की प्रक्रिया कहते हैं। रस्सी को रस्सी जानने के लिए पहले सर्प-बुद्धि समाप्त होनी चाहिए, उसी तरह से आत्मा को आत्मा जानने के लिए अनात्म के साथ अभिमान समाप्त होना परम आवश्यक होता है। उसके बाद अपने परमात्मा के साथ ऐक्य देखना चाहिए।

इस पाठ के प्रश्न :

१. नेति-नेति की प्रक्रिया क्या होती है?

२. निषेध में क्या होता है?

३. निषेध के बाद क्या करना चाहिए?

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79 एपिसोडस

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