एपिसोड 49: पांच राज्यों के चुनाव, उर्जित पटेल का इस्तीफा और अन्य
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इस बार की चर्चा का केंद्र पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में आए नतीजे रहे. इसके आलावा आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल का समय से पहले अपने पद से इस्तीफा देना, नए गवर्नर के रूप में शक्तिकांता दास का पद संभालना, रफेल विमान सौदे पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आदि विषय इस बार की चर्चा के मुख्य बिंदु रहे.इस बार की चर्चा में बतौर मेहमान न्यूज़ 24 चैनल की पत्रकार साक्षी जोशी और वरिष्ठ पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी शामिल हुए. इसके अलावा न्यूज़लॉन्ड्री के असिस्टेंट एडिटर राहुल कोटियाल भी चर्चा का हिस्सा रहे. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.चर्चा की शुरुआत अतुल चौरसिया ने पांच राज्यों के विधानसभा के चुनावी नतीजों से की. उन्होंने पैनल के सामने एक सवाल रखा, “जिस रूप में भाजपा पिछले 4-5 सालों में बदली है, हमने देखा कि हर विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद नरेंद्र मोदी दिल्ली की सड़कों पर विजय परेड निकालते थे. उस दौरान मोदी जो भाषण देते थे उसमें एक विचित्र सी साम्यता दिखाई देती थी. वो अमित शाह को जीत का पूरा श्रेय देते थे बजाय पूरी पार्टी और उसके संगठन के. ये एक अलग तरीके की रणनीति दोनों नेताओं के बीच में विकसित हुई थी. अब इस हार से क्या उस जुगलजोड़ी के ऊपर किसी तरह का दबाव बढ़ा है?”इसके जवाब में हर्षवर्धन त्रिपाठी ने कहा, “जब हम माध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान के चुनावी नतीजों की बात करते हैं तो इससे पहले के भारतीय जनता पार्टी के जितने भी चुनाव हैं उसकी स्थिति में और इसमें एक बड़ा बेसिक सा अंतर है. फर्क ये हैं की ये वो 3 राज्य हैं जहां की मुख्यमंत्रियों को समय-समय पर नरेंद्र मोदी के कद का नेता समझा जाता रहा. यहां तक की अगर आप लोगों ने ध्यान दिया हो तो 2013 -14 के दौरान कई बार चर्चा चली कि शिवराज सिंह चौहान भी प्रधानमंत्री पद के एक ताकतवर दावेदार हैं.”हर्षवर्धन आगे कहते हैं, “पर शायद ऐसा नहीं हो सका. मैं ये नहीं मानता कि अमित शाह और नरेंद्र मोदी ने इन चुनावों में उस तरह से अपनी भूमिका नहीं निभाई जैसे बाकी राज्यों में करते थे. उसके बावजूद वे चुनाव हारे. मेरा मानना है कि मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ से बहुत अच्छा सन्देश है कि एक अरसे के बाद मतलब मुझे नहीं याद है की कब इस तरह से कोई चुनाव पूरी तरह स्थानीय मुद्दों पर लड़ा गया. राजस्थान एक बहुत बुरा चुनावी कैंपेन रहा. वहां कोई जमीनी मुद्दा नहीं था. विपक्ष के अभियान का एकमात्र मुद्दा था वसुंधरा अहंकारी हैं. यानी सब हवा हवाई मुद्दे थे.”नतीजों पर हो रही बहस का दूसरा पहलू था राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी को मिली चमत्कारिक सफलता. क्या इससे राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता स्थापित हो गई है या फिर इसे सिर्फ तुक्के में मिली जीत और एंटी इंकंबेंसी का नतीजा मानकर खारिज किया जा सकता है? साक्षी जोशी इस पर हस्तक्षेप करती हैं, “राहुल गांधी एक परिपक्व नेता के तौर पर साल भर पहले ही स्थापित हो गए थे. गुजरात चुनावों के दौरान उन्होंने जिस तरह से चुनाव अभियान की कमान संभाली वह ध्यान देने लायक है. उन्होंने. उन्होंने बार-बार एक बात कही कि आप (भाजपा के लोग) मुझे पप्पू कहते हैं. आप मुझे चाहे जो भी कहें लेकिन मेरे सवालों का जवाब जरूर दें. वो सवाल बहुत जरूरी हैं. तो जिस तरह से उन्होंने मुद्दों को पकड़े रखा और विपक्ष के उकसावे में बिना फंसे अपना अभियान चलाया वह उनकी क्षमता को साबित करता है.”राहुल कोटियाल ने इसके एक और पहलू पर रोशनी डाली, “राहुल गांधी की जो छवि साल भर पहले थी, ऐसा नहीं है कि उन्होंने उसमें कोई बड़ा बदलाव किया है. इन 3-4 सालों में मोदी की अपनी असफलताओं का इन नतीजों में भूमिका ज्यादा है. जिस तरह से उन्होंने अपनी छवि बनाई थी कि वो सबकुछ हल कर देंगे और बाद में जिस तरह से विधवा के संबंध में उनके अटपटे बयान आए, जिस तरह से प्रधानमंत्री की बातों को संसद की कार्यवाही से हटाना पड़ा, उन सबने मिलकर मोदी के लिए एक नकारात्मक माहौल बनाना शुरू कर दिया है.”राफेल डील और उर्जित पटेल के इस्तीफे पर भी दिलचस्प सवाल और निष्कर्ष के साथ साक्षी जोशी और राहुल कोटियाल ने इस चर्चा में हस्तक्षेप किया. हर्षवर्धन जी ने भी कुछ जरूरी, ज़मीनी जानकारियां साझा की. उनका पूरा जवाब और अन्य विषयों पर पैनल की विस्तृत राय जानने के लिए पूरी चर्चा सुने.
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