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एनएल चर्चा 73: बिहार में बच्चों की मौतें, संसद में धार्मिक नारे और अन्य

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बीता हफ़्ता बहुत सारी बहसें लेकर आया. बीते दिनों बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर जिले में एक्यूट इंसेफ़ेलाइटिस सिंड्रोम का प्रकोप देखने को मिला है, जिसमें लगभग 150 बच्चों की मौत हो चुकी है और 500 बच्चे अभी भी पीड़ित बताये जा रहे हैं. इस मुद्दे के साथ-साथ, मीडिया की रिपोर्टिंग को लेकर भी काफी बातचीत चलती रही. इसके अलावा इस बार जो जो नये सांसद चुन कर संसद आये, उनका शपथग्रहण समारोह हुआ. समारोह के दौरान संसद के भीतर धार्मिक नारे भी लगाये गये. इसके अतिरिक्त, बंगाल से शुरू हुई डॉक्टरों की राष्ट्रव्यापी हड़ताल थी अब खत्म हो गयी है. मुखर्जी नगर, दिल्ली के पुलिस थाने के पुलिसकर्मियों और एक ऑटो ड्राइवर के बीच लड़ाई हुई, जिसका वीडियो भी खूब वायरल हुआ. इसी हफ़्ते एनडीटीवी के मालिक प्रणव रॉय और राधिका रॉय के प्रमोटर को सेबी ने बंद कर दिया था, अब एनडीटीवी ने लीगल नोटिस भेजा है और जिसके बाद कोर्ट ने भी सेबी के फैसले पर स्टे लगा दिया है. इसके अलावा, नयी लोकसभा में ओम बिरला नये स्पीकर चुने गये हैं, जो कोटा राजस्थान के नये एमपी है. वहीं, अधीर रंजन चौधरी कांग्रेस पार्टी के लोकसभा में नेता होंगे, अगले पांच सालों तक. एक और घटना है जिसको लेकर हम बात करेंगे और वो है जे पी नड्डा अब बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष होंगे. हालांकि अगले कुछ समय के लिए अमित शाह ही अध्यक्ष बने रहेंगे, लेकिन नड्डा उनके साथ में काम करेंगे. इसके अलावा देश-दुनिया के तमाम अन्य मुद्दों पर भी चर्चा हुई. चर्चा में इस बार शामिल हुए जनज्वार.कॉम के संपादक अजय प्रकाश. साथ में न्यूज़लॉन्ड्री के स्तंभकार आनंद वर्धन ने भी शिरकत की. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.अतुल ने बातचीत की शुरुआत करते हुए आनंद से कहा कि, "बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर की घटना है, इंसेफ़ेलाइटिस सिंड्रोम से बच्चों की मौत हो रही है. जिस तरह से नेशनल मीडिया ने वहां जा कर कवरेज किया है उसकी शैली को लेकर विवाद तो हो ही रहा है, इसमें सरकार की अक्षमता भी सामने आयी है. इंसेफ़ेलाइटिस को लेकर एक बात कहीं जाती है कि इसको लेकर अभी कोई संपूर्ण इलाज़ या दवाई उपलब्ध नहीं है. साफ़ सफाई आदि जैसी चीज़ें भी इस बीमारी के प्रभाव को रोकने में अहम भूमिका अदा करती है. और ये माना जा रहा है कि चुनाव की जो पूरी प्रक्रिया रही इस साल, लोकसभा के जो चुनाव हुए, उस चक्कर में वहां का प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग था इतना उलझा रहा कि जो तमाम जागरूकता अभियान चलाया जाता था, वो इस बार नहीं हो पाये. नतीज़न इस बार बड़ी संख्या में बच्चों की मौत देखने को मिल रही है. आनंद आप इसकी क्या वजहें देखते हैं?"जवाब में आनंद ने कहा कि, "देखिये, बहुत लोग इसे इंसेफ़ेलाइटिस का मामला मानते भी नहीं है. जो मेडिकल विशेषज्ञ है वो इसे एसेंसिनिया नामक परिवार का मानते हैं, इसे जमैकन बुखार से भी जोड़ा कर देखा गया है. एक तरह से ये मेडिकल मिस्ट्री का केस हो गया है और किसी की ये स्पष्ट राय नहीं है कि इसका कारण क्या है. जिनके शरीर में ब्लड शुगर निचला लेवल है, ख़ासकर कुपोषित बच्चों में जो बिना कुछ खाये-पिये सोये भी नहीं हैं, और सुबह-सुबह बागवानी से सुबह के चार बजे लीची को तोड़ते हैं, खाते हैं और फिर सो जाते हैं. जो बच्चा रात भर तक कुछ नहीं खाया है और सुबह-सुबह सिर्फ लीची खाता है. तो उसमें इसका प्रभाव ज्यादा होता है. तो ये खाली पेट रहने वालों और उसमें भी कुपोषित रहने वालों में अधिकतर पाया जा रहा. जिन बच्चों का पोषण अच्छा था उनमें इसका असर नहीं पाया गया है. तो इस तरह की कई चीज़ें हैं, जो जटिल हैं, जिन पर मेरा बोलना ठीक भी नहीं होगा क्योंकि मैं विशेषज्ञ नहीं हूं. जब पहली बार 2012 में इस संकट का भयावह रूप से सामने आया तो उस समय मौतें अभी से ज़्यादा हुई थी. उस समय मौत का आकड़ा 156 था. जब आधिकारिक स्वीकृति ये थी तो मौतें ज़्यादा हो सकती हैं. इस साल अभी ये मुज़फ़्फ़रपुर, समस्तीपुर, हाजीपुर और बेगूसराय तक सीमित है. 2012 में मगध, गया और राजधानी पटना के कुछ इलाकों तक और सीतामढ़ी तक भी आ गया था. तो उस समय ज़्यादा भयावह स्तिथि थी. लेकिन उस समय राष्ट्रीय मीडिया ने इस मुद्दे को काफी देरी से लिया. इस बार ये अच्छा बदलाव है. लेकिन अब हुआ ये है कि कुछ ज़्यादा ही हो रहा है कवरेज के नाम पर. पिछली बार क्यों मीडिया इतना चूक गया था. ये शायद मीडिया समाजशास्त्र या मीडिया के छात्रों के लिए अच्छा शोध का विषय है कि ऐसा क्यों हुआ."इस मसले के साथ-साथ बाक़ी विषयों पर भी चर्चा के दौरान विस्तार से बातचीत हुई. बाकी विषयों पर पैनल की राय जानने-सुनने के लिए पूरी चर्चा सुनें.

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