Artwork

Vivek Agarwal द्वारा प्रदान की गई सामग्री. एपिसोड, ग्राफिक्स और पॉडकास्ट विवरण सहित सभी पॉडकास्ट सामग्री Vivek Agarwal या उनके पॉडकास्ट प्लेटफ़ॉर्म पार्टनर द्वारा सीधे अपलोड और प्रदान की जाती है। यदि आपको लगता है कि कोई आपकी अनुमति के बिना आपके कॉपीराइट किए गए कार्य का उपयोग कर रहा है, तो आप यहां बताई गई प्रक्रिया का पालन कर सकते हैं https://hi.player.fm/legal
Player FM - पॉडकास्ट ऐप
Player FM ऐप के साथ ऑफ़लाइन जाएं!

Shiv Vandana - मैं बस शिवा हूँ (Mein Bas Shiva Hoon)

5:37
 
साझा करें
 

Manage episode 327741797 series 3337254
Vivek Agarwal द्वारा प्रदान की गई सामग्री. एपिसोड, ग्राफिक्स और पॉडकास्ट विवरण सहित सभी पॉडकास्ट सामग्री Vivek Agarwal या उनके पॉडकास्ट प्लेटफ़ॉर्म पार्टनर द्वारा सीधे अपलोड और प्रदान की जाती है। यदि आपको लगता है कि कोई आपकी अनुमति के बिना आपके कॉपीराइट किए गए कार्य का उपयोग कर रहा है, तो आप यहां बताई गई प्रक्रिया का पालन कर सकते हैं https://hi.player.fm/legal
न हूँ मैं मेधा, न बुद्धि ही मैं हूँ। अहंकार न हूँ न चित्त ही मैं हूँ। न नासिका में न नेत्रों में ही समाया। न जिव्हा में स्थित न कर्ण में सुनाया। न मैं गगन हूँ न ही धरा हूँ। न ही हूँ अग्नि न ही हवा हूँ। जो सर्वत्र सर्वस्व आनंद व्यापक। मैं बस शिवा हूँ उसी का संस्थापक। नहीं प्राण मैं हूँ न ही पंचवायु। नहीं पंचकोश और न ही सप्तधातु। वाणी कहाँ बांच मुझको सकी है। मेरी चाल कहाँ कभी भी रुकी है। किसी के हाथों में नहीं आच्छादित। न ही किसी और अंग से बाधित। जो सर्वत्र सर्वस्व आनंद व्यापक। मैं बस शिवा हूँ उसी का संस्थापक। नहीं गुण कोई ना ही कोई दोष मुझमें। न करूँ प्रेम किसी को न रोष मुझमें। लोभ मद ईर्ष्या मुझे कभी न छूते। धर्म अर्थ काम भी मुझसे अछूते। मैं स्वयं तो मोक्ष के भी परे हूँ। जो सब जहाँ है वो मैं ही धरे हूँ। जो सर्वत्र सर्वस्व आनंद व्यापक। मैं बस शिवा हूँ उसी का संस्थापक। न पुण्य की इच्छा न पाप का संशय। सुख हो या दुःख हो न मेरा ये विषय। मन्त्र तीर्थ वेद और यज्ञ इत्यादि। न मुझको बाँधे मैं अनंत अनादि। न भोग न भोगी मैं सभी से भिन्न। न ही हूँ पुलकित और न ही खिन्न। जो सर्वत्र सर्वस्व आनंद व्यापक। मैं बस शिवा हूँ उसी का संस्थापक। अजन्मा हूँ मेरा अस्तित्व है अक्षय। मुझे न होता कभी मृत्यु का भय। न मन में है शंका मैं हूँ अचर। जाति न मेरी न भेद का डर। न माता पिता न कोई भाई बंधु। न गुरु न शिष्य मैं अनंत सिंधु। जो सर्वत्र सर्वस्व आनंद व्यापक। मैं बस शिवा हूँ उसी का संस्थापक। न आकार मेरा विकल्प न तथापि। चेतना के रूप में मैं हूँ सर्वव्यापी। यूँ तो समस्त इन्द्रियों से हूँ हटके। पर सभी में मेरा प्रतिबिम्ब ही झलके। किसी वस्तु से मैं कहाँ बँध पाया। पर प्रत्येक वस्तु में मैं ही समाया। जो सर्वत्र सर्वस्व आनंद व्यापक। मैं बस शिवा हूँ उसी का संस्थापक। (आदिगुरु श्री शंकराचार्य जी की बाल्यावस्था में लिखी निर्वाण षट्कम का अपने अल्प ज्ञान और सीमित काव्य कला में सरल हिंदी में रूपांतर करने की एक तुच्छ चेष्टा।) गुरुदेव को नमन के साथ विवेक ________________________ You can write to me at [email protected]
  continue reading

96 एपिसोडस

Artwork
iconसाझा करें
 
Manage episode 327741797 series 3337254
Vivek Agarwal द्वारा प्रदान की गई सामग्री. एपिसोड, ग्राफिक्स और पॉडकास्ट विवरण सहित सभी पॉडकास्ट सामग्री Vivek Agarwal या उनके पॉडकास्ट प्लेटफ़ॉर्म पार्टनर द्वारा सीधे अपलोड और प्रदान की जाती है। यदि आपको लगता है कि कोई आपकी अनुमति के बिना आपके कॉपीराइट किए गए कार्य का उपयोग कर रहा है, तो आप यहां बताई गई प्रक्रिया का पालन कर सकते हैं https://hi.player.fm/legal
न हूँ मैं मेधा, न बुद्धि ही मैं हूँ। अहंकार न हूँ न चित्त ही मैं हूँ। न नासिका में न नेत्रों में ही समाया। न जिव्हा में स्थित न कर्ण में सुनाया। न मैं गगन हूँ न ही धरा हूँ। न ही हूँ अग्नि न ही हवा हूँ। जो सर्वत्र सर्वस्व आनंद व्यापक। मैं बस शिवा हूँ उसी का संस्थापक। नहीं प्राण मैं हूँ न ही पंचवायु। नहीं पंचकोश और न ही सप्तधातु। वाणी कहाँ बांच मुझको सकी है। मेरी चाल कहाँ कभी भी रुकी है। किसी के हाथों में नहीं आच्छादित। न ही किसी और अंग से बाधित। जो सर्वत्र सर्वस्व आनंद व्यापक। मैं बस शिवा हूँ उसी का संस्थापक। नहीं गुण कोई ना ही कोई दोष मुझमें। न करूँ प्रेम किसी को न रोष मुझमें। लोभ मद ईर्ष्या मुझे कभी न छूते। धर्म अर्थ काम भी मुझसे अछूते। मैं स्वयं तो मोक्ष के भी परे हूँ। जो सब जहाँ है वो मैं ही धरे हूँ। जो सर्वत्र सर्वस्व आनंद व्यापक। मैं बस शिवा हूँ उसी का संस्थापक। न पुण्य की इच्छा न पाप का संशय। सुख हो या दुःख हो न मेरा ये विषय। मन्त्र तीर्थ वेद और यज्ञ इत्यादि। न मुझको बाँधे मैं अनंत अनादि। न भोग न भोगी मैं सभी से भिन्न। न ही हूँ पुलकित और न ही खिन्न। जो सर्वत्र सर्वस्व आनंद व्यापक। मैं बस शिवा हूँ उसी का संस्थापक। अजन्मा हूँ मेरा अस्तित्व है अक्षय। मुझे न होता कभी मृत्यु का भय। न मन में है शंका मैं हूँ अचर। जाति न मेरी न भेद का डर। न माता पिता न कोई भाई बंधु। न गुरु न शिष्य मैं अनंत सिंधु। जो सर्वत्र सर्वस्व आनंद व्यापक। मैं बस शिवा हूँ उसी का संस्थापक। न आकार मेरा विकल्प न तथापि। चेतना के रूप में मैं हूँ सर्वव्यापी। यूँ तो समस्त इन्द्रियों से हूँ हटके। पर सभी में मेरा प्रतिबिम्ब ही झलके। किसी वस्तु से मैं कहाँ बँध पाया। पर प्रत्येक वस्तु में मैं ही समाया। जो सर्वत्र सर्वस्व आनंद व्यापक। मैं बस शिवा हूँ उसी का संस्थापक। (आदिगुरु श्री शंकराचार्य जी की बाल्यावस्था में लिखी निर्वाण षट्कम का अपने अल्प ज्ञान और सीमित काव्य कला में सरल हिंदी में रूपांतर करने की एक तुच्छ चेष्टा।) गुरुदेव को नमन के साथ विवेक ________________________ You can write to me at [email protected]
  continue reading

96 एपिसोडस

सभी एपिसोड

×
 
Loading …

प्लेयर एफएम में आपका स्वागत है!

प्लेयर एफएम वेब को स्कैन कर रहा है उच्च गुणवत्ता वाले पॉडकास्ट आप के आनंद लेंने के लिए अभी। यह सबसे अच्छा पॉडकास्ट एप्प है और यह Android, iPhone और वेब पर काम करता है। उपकरणों में सदस्यता को सिंक करने के लिए साइनअप करें।

 

त्वरित संदर्भ मार्गदर्शिका

अन्वेषण करते समय इस शो को सुनें
प्ले