

प्रायोजित
मेरे पैर दो और तुम्हारे चार। कहने को तो फर्क सिर्फ दो पैरों का है। लेकिन कपाल के भीतर का तन्त्रिका- तन्त्र जिसे बुद्धि कहते हैं वो खास है।
मैंने अपनी विलक्षण बुद्धि का उपयोग ऐसा किया कि तुम चौपायों को जानवर बना दिया।
मै नहीं होता तो अपना लम्बा जीवन तुम्हें पूरा बिताना पड़ता। तुम्हें जीव-बन्धन से मुक्ति दिलाने के लिए ही मैं रात- दिन लगा रहता हूं।
49 एपिसोडस
मेरे पैर दो और तुम्हारे चार। कहने को तो फर्क सिर्फ दो पैरों का है। लेकिन कपाल के भीतर का तन्त्रिका- तन्त्र जिसे बुद्धि कहते हैं वो खास है।
मैंने अपनी विलक्षण बुद्धि का उपयोग ऐसा किया कि तुम चौपायों को जानवर बना दिया।
मै नहीं होता तो अपना लम्बा जीवन तुम्हें पूरा बिताना पड़ता। तुम्हें जीव-बन्धन से मुक्ति दिलाने के लिए ही मैं रात- दिन लगा रहता हूं।
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