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"तुम मुझको कब तक रोकोगे"

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Happy Women's day🌸 A poem,Dedicated to all "Womens".🙂 All credit goes to poet, Vikas Bansal. Sorry for the little modifications.🙏 तुम मुझको कब तक रोकोगे ... मुट्ठी में कुछ सपने लेकर, भरकर जेबों में आशाएं, दिल में है अरमान यही कुछ कर जाएं, कुछ कर जाएं। सूरज सा तेज नही मुझमें दीपक सा जलता देखोगे, अपनी हद रोशन करने से तुम मुझको कब तक रोकोगे। मैं उस माटी का वृक्ष नही जिसको नदियों ने सींचा है, बंजर माटी में पलकर मैंने मृत्यु से जीवन खींचा है। मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूं, शीशे से कब तक तोड़ोगे? मिटने वाला मैं नाम नही, तुम मुझको कब तक रोकोगे। इस जग में जितने जुलम नही उतने सहने की ताकत है। तानो के शोर में भी रहकर, सच कहने की आदत है। मैं सागर से भी गहरी हूं...तुम कितने कंकर फेंकोगे? चुन चुन कर आगे बढूंगी मैं, तुम मुझको कब तक रोकोगे।। झुक झुक कर सीधी खड़ी हुई, अब फिर झुकने का शौक नही, अपने ही हाथों रची स्वयं, तुमसे मिटने का खौफ नहीं। तुम हालातों की भट्टी में जब जब भी मुझको झोंकोगे, तप तप कर सोना बनूंगी मैं, तुम मुझको कब तक रोकोगे, तुम मुझको कब तक रोकोगे। Special Thanks to Amitabh Bachchan, jinki awaz mein poem ko roz sunkr, maine ye audio banai.😃😊 And Thank you so much guys for listening.🤗🤗 Stay blessed and amazing.🦋
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