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Kavi | Viren Dangwal

2:26
 
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कवि - वीरेन डंगवाल

मैं ग्रीष्म की तेजस्विता हूँ

और गुठली जैसा

छिपा शहद का ऊष्म ताप

मैं हूँ वसंत में सुखद अकेलापन

जेब में गहरी पड़ी मूँगफली को छाँटकर

चबाता फ़ुरसत से

मैं चेकदार कपड़े की क़मीज़ हूँ

उमड़ते हुए बादल जब रगड़ खाते हैं

तब मैं उनका मुखर ग़ुस्सा हूँ

इच्छाएँ आती हैं तरह-तरह के बाने धरे

उनके पास मेरी हर ज़रूरत दर्ज है

एक फ़ेहरिस्त में मेरी हर कमज़ोरी

उन्हें यह तक मालूम है

कि कब मैं चुप होकर गर्दन लटका लूँगा

मगर फिर भी मैं जाता रहूँगा ही

हर बार भाषा को रस्से की तरह थामे

साथियों के रास्ते पर

एक कवि और कर ही क्या सकता है

सही बने रहने की कोशिश के सिवा

  continue reading

381 एपिसोडस

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मैं ग्रीष्म की तेजस्विता हूँ

और गुठली जैसा

छिपा शहद का ऊष्म ताप

मैं हूँ वसंत में सुखद अकेलापन

जेब में गहरी पड़ी मूँगफली को छाँटकर

चबाता फ़ुरसत से

मैं चेकदार कपड़े की क़मीज़ हूँ

उमड़ते हुए बादल जब रगड़ खाते हैं

तब मैं उनका मुखर ग़ुस्सा हूँ

इच्छाएँ आती हैं तरह-तरह के बाने धरे

उनके पास मेरी हर ज़रूरत दर्ज है

एक फ़ेहरिस्त में मेरी हर कमज़ोरी

उन्हें यह तक मालूम है

कि कब मैं चुप होकर गर्दन लटका लूँगा

मगर फिर भी मैं जाता रहूँगा ही

हर बार भाषा को रस्से की तरह थामे

साथियों के रास्ते पर

एक कवि और कर ही क्या सकता है

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