Bas Ek Khwab | Pratibha Katiyar
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बस एक ख़्वाब
कविता- प्रतिभा कटियार
स्वर- शुबा सुभाष रावत
पूरे शहर में तितलियां उड़ती फिर रही हैं. रंग बिरंगी तितलियां, छोटी बड़ी तितलियां. खूबसूरत तितलियां. आज शहर को अचानक क्या हो गया है? पूरा शहर तितलियों से भरा है. हर कोई तितलियों के पीछे भाग रहा है. भागता ही जा रहा है. कोई छोटी तितली के पीछे भाग रहा है, कोई बड़ी तितली के पीछे. न कोई गाड़ी, न बस, न ऑटो. सारे ऑफिस बंद, दुकानें भी बंद. घर में कोई नहीं, बड़े-छोटे, स्त्री-पुरुष सब के सब सड़कों पर दौड़ते हुए. पता चला ये जो तितलियां हैं. दरअसल, ये तितलियां नहीं हैं, ख़्वाब हैं.
नये राजा ने यह मुनादी करवायी है कि हर कोई अपने जीवन का एक ख़्वाब पूरा कर सकता है. सरकार हर किसी का एक ख़्वाब जरूर पूरा करेगी. अब जो यह मुनादी हुई तो सबकी ख़्वाबों की पोटलियां निकलकर बाहर आ गईं. सदियों से पलकों के पीछे दबे पड़े ख़्वाब जरा सा मौका मिलते ही भाग निकले सारे ख़्वाब तितली हो गये. अब हर कोई अपने ख़्वाबों के पीछे भाग रहा है. कौन सा पकड़े, कौन सा छोड़ा जाए. वो वाला, नहीं वो वाला. नहीं, सबसे अज़ीज तो वो था, इसके बगैर तो काम चल सकता है. कोई किसी से बात नहीं कर रहा है. सब ख़्वाबों के पीछे भाग रहे हैं और जिन्होंने पकड़ लिया है अपने ख़्वाबों को, वे इस पसोपेश में हैं कि कौन सा पूरा कराया जाए. भई, ऐसा मौका रोज तो नहीं मिलता है ना?
इसी आपाधापी में दिन बीत गया. बच्चों के हंसने की आवाजें शहर में गूंजने लगीं. पूरे दिन जब सारे बड़े अपने-अपने ख़्वाबों के पीछे भाग रहे थे बच्चों ने मिलकर खूब मजे किए. न स्कूल का झंझट था, न घरवालों की रोक-टोक. जो जी चाहा वो किया, जितनी मर्जी आयी उतनी देर खेलने का लुत्फ उठाया. शाम को उनके खुलकर हंसने की आवाजें शहर में गूंजने लगीं. बड़ों ने डांटा, चुप रहो, डिस्टर्ब कर रहे हो तुम लोग?
किस बात में डिस्टर्ब कर रहे हैं हम ?
बच्चों ने पूछा।
आज नये राजा का फरमान है कि वो सबका एक ख़्वाब पूरा करेंगे. हम लोग अपना-अपना सबसे प्यारा ख़्वाब ढूंढ रहे हैं.
बच्चे हंसे,'लेकिन ख़्वाब तो पूरा हो गया.'
बड़े चौंके.
हां, दिन बीत चुका है,
और ख़्वाब पूरा हो चुका है. आप लोग सारा दिन ख़्वाब ढूंढते रहे और हमारा एक ही ख़्वाब था एक दिन अपनी मर्जी से जीने का, वो पूरा हो गया. अब बंद करिये ढूंढना-वूंढना. समय बीत चुका है.
तितलियां गायब हो गईं सब की सब. शहर में बस गाड़ियाँ ही दौड़ रही थीं फिर से.
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