Achanak Nahi Gayi Ma | Vishwanath Prasad Tiwari
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अचानक नहीं गई माँ | विश्वनाथ प्रसाद तिवारी
अचानक नहीं गई माँ
जैसे चला जाता है टोंटी का पानी
या तानाशाह का सिंहासन
थोड़ा-थोड़ा रोज गई वह
जैसे जाती है कलम से स्याही
जैसे घिसता है शब्द से अर्थ
सुकवा और षटमचिया से नापे थे उसने
समय के सत्तर वर्ष
जीवन को कुतरती धीरे-धीरे
गिलहरी-सी चढ़ती-उतरती
काल वृक्ष पर
गीली-सूखी लकड़ी-सी चूल्हे की
धुआँ देती सुलगती जलती
रात काटने के लिए
परियों के किस्से
सुनाती अँधेरे से लड़ने के लिए
संझा-पराती के गीत गाती
पृथ्वी और आकाश के पिंजरे में फड़फड़ाती
बीमार घड़ी-सी टिक्-टिक् चलती
अचानक नहीं गई माँ
थोड़ा-थोड़ा रोज गई
जैसे जाती है आँख की रोशनी
या अतीत की स्मृति ।
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