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एनएल चर्चा 78: डोनाल्ड ट्रंप का कश्मीर समस्या में दखल, सोनभद्र में कत्लेआम और अन्य

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देश और दुनिया में चल रही तमाम अस्थिरताओं के कारण बीता हफ्ता ख़बरों से भरा रहा. केरल हाईकोर्ट के जज जस्टिस चितम्बरेश ने विवादित बयान देते हुए कहा कि “आरक्षण जातिगत नहीं आर्थिक आधार पर होना चाहिए,” साथ ही उन्होंने कुछ गुणों का उल्लेख करते हुए कहा कि इन गुणों के कारण ब्राह्मणों को ही उच्च पदों में होना चाहिए. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान से बात करते हुए यह दावा किया की भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कश्मीर विवाद में अमेरिका को मध्यस्थता करने की अपील की है. हालांकि, भारतीय विदेश मंत्रालय ने अमेरिकी राष्ट्रपति के इस दावे को ख़ारिज किया है. इसके साथ ही बीते हफ्ते लोकसभा में आरटीआई अमेंडमेंट बिल पास किया गया. इस बिल पर काफी विवाद मचा हुआ है. एक अन्य खबर उत्तरप्रदेश के सोनभद्र जिले से आई, जहां जमीनी विवाद में 10 आदिवासियों की गोली मार कर हत्या कर दी गई. बीते दिनों दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का देहांत हो गया. इसके अलावा भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ‘इसरो’ ने चंद्रयान-2 का लौंच सफलतापूर्वक पूरा करके अपने खाते में एक और उपलब्धि बढ़ा ली है.इन सभी मुद्दों पर दो ख़ास मेहमानों के साथ न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने चर्चा की. न्यूज़लॉन्ड्री के ख़ास कार्यक्रम ‘एनएल चर्चा’ में उपरोक्त मुद्दों पर बात करने के लिए वरिष्ठ पत्रकार अनिल यादव और राज्यसभा टीवी के एंकर अनुराग पुनेठा मौजूद थे. चर्चा का संचालन अतुल चौरसिया द्वारा किया गया.चर्चा की शुरुआत में अतुल ने कहा कि “चर्चा की शुरुआत केरल हाईकोर्ट के जज जस्टिस चितम्बरेश के उस बयान से करते हैं जो उन्होंने कोच्चि में ग्लोबल ब्राह्मण सम्मेलन में दिया है. अपने बयान में उन्होंने कहा कि- “ब्राह्मण अपने कर्मों से इतना पुण्य कमाता है कि वह द्विज होता है, यानि उसका दो बार जन्म होता है.” दरअसल सारे सवर्ण ही द्विज कहलाते हैं यानि ऐसा कहा जाता है कि उनका दो बार जन्म होता है जबकी शूद्र को उसके कर्मों का फल एक ही जन्म में मिल जाता है. इस प्रकार यह जो पुनर्जन्म की धारणा को समर्थन करती हुई बात उन्होंने कही है वह आज़ादी के बाद जो एक बहस चली जिसमें कहा गया कि वैज्ञानिक सोच वाले लोग ऐसे पदों पर पहुंचने चाहिए, से टकराती हुई दिखती है. मेरा सवाल यह है कि क्या किसी जज का ऐसे किसी कार्यक्रम जो किसी धर्म,संप्रदाय या जाती विशेष के लिए हो, में शामिल होना जायज़ है.”इसी विषय से संबंधित अतुल के सवाल का जवाब देते हुए अनिल यादव कहते हैं कि “मुझे लगता है कि एक बेहतर मनुष्य होने, प्रोग्रेसिव होने और जज या वैज्ञानिक होने के बीच कोई रिश्ता है नहीं. यह सारे संस्थान लकीर के फ़कीर हैं. सभी किसी ख़ास विषय में पारंगत लोगों का चयन करते हैं, बिना इस बात की परवाह किये कि वह निजी जीवन में कैसा है. मसलन यदि कोई व्यक्ति भौतिकी के नियम जानता है तो वह निजी ज़िन्दगी में भले ही झाड़-फूंक में विश्वास करता हो, वह वैज्ञानिक कहलाएगा. तो मुझे यह मामला ज्यूडिसरी का मामला नहीं लगता. मुझे लगता है कि सिर्फ़ ब्राम्हणों में ही नहीं, बल्कि हर जाति में रिवाईवलिज्म का फेस चल रहा है. ये जो ग्लोबल तमिल सम्मलेन चल रहा था ऐसे ही कई सम्मेलन कुर्मियों के, यादवों के, ठाकुरों के चल रहे हैं. और देखने वाली बात यह है कि जो लोग इसका आयोजन करते हैं उनकी इतिहास दृष्टि बेहद घटिया है. जैसे वह कहेंगे कि सम्राट अशोक इसलिए महान थे, क्योंकि वह मौर्य थे. इसका कारण यह है कि हमारे यहां 70 साल सिर्फ और सिर्फ जाति की राजनीति हुई है.”इस विषय के साथ ही हफ्ते की अन्य ख़बरों पर ख़ास मेहमानों के साथ अतुल चौरसिया के संचालन में चर्चा की गई. कार्यक्रम के अंत में अनिल यादव द्वारा अज़गर वजाहत के आत्मकथात्मक उपन्यास ‘सात आसमान’ के अंश का पाठ किया गया.

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