एनएल चर्चा 68: क्षेत्रवाद की राजनीति के आरोप पर तिलमिलाए मनीष सिसोदिया
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इस बार हमने चर्चा का स्वरूप थोड़ा बदल दिया है. आमतौर पर स्टूडियोमें पत्रकारों के बीच कई विषयों पर होने वाली चर्चा इस बार नहीं हुई.चुनाव का मौसम है. दिल्ली का लोकसभा चुनाव छठवें चरण में 12 मईको हो रहा है. लिहाजा हमने इस बार चर्चा को चुनाव के मैदान से करनेका तय किया. और हम पहुंचे दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया केपास. ‘आप’ के चुनावी घोषणापत्र के दावे, दिल्ली सरकार की नीतियों औरचुनावी अभियान के संबंध में मनीष सिसोदिया के साथ हमारी लंबी चर्चाहुई.देखा जाय तो दिल्ली के इस लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी काबहुत कुछ दांव पर लगा है. पार्टी सिर्फ दिल्ली, हरियाणा और पंजाब कीकुछ सीटों पर चुनाव लड़ रही है. ऐसे में चुनाव के नतीजे उसकी भविष्यकी योजनाओं पर दूरगामी असर पैदा करने वाले होंगे.आम आदमी पार्टी का मुख्य चुनावी अभियान इस बार दिल्ली को पूर्णराज्य का दर्जा दिलवाना है. दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा एक ऐसी गेंदहै जिसे समय-समय पर अलग-अलग पार्टियां अपनी सुविधा के हिसाब सेउछालती और लपकती रही हैं. दिल्ली देश की राजधानी है लिहाजा इसकेपूर्ण राज्य की राह में कई तरह की जटिलताएं हैं. आप की मौजूदा स्थितिको देखते हुए दिल्ली को पूर्ण राज्य की मांग निकट भविष्य में भी पूरीहोने की संभावना नगण्य है. 30 के आस-पास लोकसभा सीटों पर लड़ रहीआप का मुख्य चुनाव अभियान एक काल्पनिक परिस्थिति पर निर्भर है.पार्टी का मानना है कि आगामी सरकार गैर भाजपा गठबंधन की सरकारहोगी. और उसके पास अगर दिल्ली की सात सीटें होती हैं तो वह पूर्णराज्य के बदले में अगली बनने वाली सरकार को समर्थन देगी. देखनाहोगा कि यह काल्पनिक स्थिति चुनाव बाद कितना साकार रूप लेती है.पार्टी के भविष्य के सवाल को इस लिहाज से भी देखा जा सकता है किनामांकन की तारीख से एक दिन पहले तक वह कांग्रेस पार्टी के साथगठबंधन की प्रक्रिया में थी. इससे एक सहज अटकल को बल मिलता हैकि जिस पार्टी को दिल्ली की जनता ने विधानसभा में 67 सीटें दी, उसआम आदमी पार्टी में आज दिल्ली में अकेले चुनाव लड़ पाने काआत्मविश्वास क्यों नहीं है.पार्टी के घोषणापत्र में कहा गया है कि आगामी सरकार बनने के बाद वहदिल्ली विश्वविद्यालय और तमाम दूसरे शिक्षण संस्थानों में 85 फीसदीसीटें दिल्ली के लोगों के लिए आरक्षित करेगी. एक पार्टी जो राष्ट्रीय स्तरपर एक बड़ा भरोसा, बड़े आंदोलन से शुरू हुई थी वह चुनाव से ठीक पहलेकिसी क्षेत्रीय दल की भाषा में बात कर रही है, क्षेत्रीय अस्मिता कोउभारने की कोशिश कर रही है.मनीष सिसोदिया ने इन तमाम सवालों पर विस्तार से अपना और पार्टीका पक्ष रखा. पूरा पॉडकास्ट सुने.
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