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एनएल चर्चा 166: बंगाल हिंसा, सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट और महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण

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एनएल चर्चा के 166वें अंक में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम, बंगाल में चुनाव के बाद राजनीतिक हिंसा, कोरोना के बढ़ते मामले, राहुल गांधी का प्रधानमंत्री को लिखा पत्र, कोविड महामारी के बीच जारी सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट, मराठा आरक्षण आदि विषयों का जिक्र हुआ.

इस बार चर्चा में ऑल्ट न्यूज़ के सह संस्थापक प्रतीक सिन्हा, न्यूज़लॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाद एस और न्यूज़लॉन्ड्री के स्तंभकार आनंद वर्धन शामिल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.

चुनाव नतीजों के बाद बंगाल में हुई हिंसा को लेकर अतुल ने चर्चा की शुरुआत प्रतीक से करते हुए पूछा, “नतीजे आने के बाद अचानक से ही अगले दिन बड़े पैमाने पर हिंसा हुई और सोशल मीडिया पर फेक न्यूज़ फैलाई गयी. इसमें बड़े नेताओं ने भी फेक न्यूज़ फैलाई और इसे सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की. आप हमें बताइए की जब ऐसे बड़े लोग ये सब करते है तब इन सब से निपटना कितना मुश्किल होता ह


प्रतीक कहते हैं, “पश्चिम बंगाल में हिंसा का बहुत पुराना इतिहास रहा है और जब भी हिंसा हुई है उसके साथ झूठी ख़बरों को भी काफी फैलाया गया है. मेरा मानना है की जो कुछ भी आज के समय में वहां हो रहा है, वो बहुत सोच समझ कर किया जा रहा है. बंगाल में जो हिंसा हो रही है वह लेफ्ट सरकार में भी होता था. वहीं अब भी हो रहा है, इसमें कोई सुधार नहीं आया है. आप इस समय कंटेंट देखिये जो सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है, उसमें ऐसे दिखाया जा रहा है की बंगाल में हिन्दू नरसंहार हो रहा है. हिंदुओं को मारा जा रहा है. इन खबरों के जरिए लोगों को प्रभावित किया जा रहा है. लेकिन जमीनी हकीकत इससे बहुत अलग है. मैं एक बात और कहूंगा की यह सांप्रदायिक हिंसा नहीं है बल्कि राजनीतिक हिंसा है. इस हिंसा को भड़काने के लिए पुरानी वीडियो और तस्वीरें वायरल की जा रही हैं.”

अतुल ने आनंद से सवाल किया, “आपको क्या लगता है की बंगाल में हो रही हिंसा को सांप्रदायिक रूप देना पहली बार हो रहा है या जानबूझकर इसे सांप्रदायिक रंग दिया जा रहा है?”


इस पर आनंद कहते हैं, 'मैं इसके पीछे की मंशा पर नहीं जाऊंगा लेकिन एक बात सच है की बंगाल में स्ट्रीट पावर बहुत मायने रखता है. ये दो लेवल पर है. एक कैडर और पार्टी का फ्यूज़न और दूसरा पार्टी और स्टेट का फ्यूज़न. इस तरह की एक राजनीतिक संस्कृति बन गई है बंगाल में जहां दोनों एक दूसरे को अपना पूरक मानते हैं.” उन्होंने आगे कहा, “मेरे ख्याल से जो हिंसा हो रही है वह नहीं होना चाहिए और राजनीतिक संस्कृति का ये जो चेहरा है इसे बंद होना चाहिए.”


अतुल ने मेघनाद से पूछा की, “आप खुद बंगाल में चुनाव के दौरान मौजूद थे. इस चीज़ का कहीं अंदाज़ा लग पाया की लोग इतने हिंसक है? क्योंकि और कहीं देश में ऐसा नहीं देखने को मिलता. चुनाव ख़त्म होते ही लोग अपने-अपने रास्ते चले जाते हैं.मेघनाद कहते हैं, “मैं और मेरे साथी परीक्षित, दोनों को लग रहा था की यहां हिंसा होने वाली है. हम जब बैरकपुर गए थे, वहां भाटपाड़ा नाम की एक जगह पर चुनाव के दौरान हिंसक झड़प हुई थी. जब हमने लोगों से बात की तो लोगों ने कहा कि, ये हिंसा दो पार्टियों में आपस में शुरू हुई और फिर इसे हिन्दू मुस्लिम बना दिया गया.”उन्होंने आगे कहा, “काफी दुकानदारों ने उन्हें बताया कि चुनाव के नतीजे 2 मई को आने हैं, तो हम सारा सामान एक हफ्ते पहले गोडाउन में शिफ्ट कर रहे हैं. दुकानदार कहते है हमारी दुकान जलने वाली है. वो इतने विश्वास से यह बात कह रहे थे की कुछ भी हो, कोई भी जीते, हमारी दुकान तो फिर भी जलने वाली है. ये सुनकर कर ही हमें अंदेशा हमें होने लगा था कि बंगाल की राजनीति में हिंसा का एक पैटर्न है.”


इस विषय के अलावा अन्य विषयों पर भी विस्तार से चर्चा हुई. पूरी बातचीत सुनने के लिए यह पॉडकास्ट सुनें और न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करना न भूलें.


पत्रकारों की राय, क्या देखा, पढ़ा और सुना जाए.

प्रतीक सिन्हा


उत्तर प्रदेश के अस्पताल को लेकर सीएनएन की रिपोर्ट


मेघनाथ एस


ऑर्सन स्कॉट की किताब - एंडर्स गेम


उत्तर प्रदेश के मेरठ से आयुष और बसंत का ग्राउंड रिपोर्ट


आनंद वर्धन


चिन्मय तुम्बे की किताब - ऐज ऑफ़ पैनडेमिक


अतुल चौरसिया

गोरखपुर के गांव से शिवांगी और आकांक्षा की रिपोर्ट


पश्चिमी उत्तर प्रदेश से बसंत और आयुष की रिपोर्ट


कोरोना के मोर्चे पर सरकार की असफलता पर द इकोनॉमिस्ट का लेख.



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इस बार चर्चा में ऑल्ट न्यूज़ के सह संस्थापक प्रतीक सिन्हा, न्यूज़लॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाद एस और न्यूज़लॉन्ड्री के स्तंभकार आनंद वर्धन शामिल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.

चुनाव नतीजों के बाद बंगाल में हुई हिंसा को लेकर अतुल ने चर्चा की शुरुआत प्रतीक से करते हुए पूछा, “नतीजे आने के बाद अचानक से ही अगले दिन बड़े पैमाने पर हिंसा हुई और सोशल मीडिया पर फेक न्यूज़ फैलाई गयी. इसमें बड़े नेताओं ने भी फेक न्यूज़ फैलाई और इसे सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की. आप हमें बताइए की जब ऐसे बड़े लोग ये सब करते है तब इन सब से निपटना कितना मुश्किल होता ह


प्रतीक कहते हैं, “पश्चिम बंगाल में हिंसा का बहुत पुराना इतिहास रहा है और जब भी हिंसा हुई है उसके साथ झूठी ख़बरों को भी काफी फैलाया गया है. मेरा मानना है की जो कुछ भी आज के समय में वहां हो रहा है, वो बहुत सोच समझ कर किया जा रहा है. बंगाल में जो हिंसा हो रही है वह लेफ्ट सरकार में भी होता था. वहीं अब भी हो रहा है, इसमें कोई सुधार नहीं आया है. आप इस समय कंटेंट देखिये जो सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है, उसमें ऐसे दिखाया जा रहा है की बंगाल में हिन्दू नरसंहार हो रहा है. हिंदुओं को मारा जा रहा है. इन खबरों के जरिए लोगों को प्रभावित किया जा रहा है. लेकिन जमीनी हकीकत इससे बहुत अलग है. मैं एक बात और कहूंगा की यह सांप्रदायिक हिंसा नहीं है बल्कि राजनीतिक हिंसा है. इस हिंसा को भड़काने के लिए पुरानी वीडियो और तस्वीरें वायरल की जा रही हैं.”

अतुल ने आनंद से सवाल किया, “आपको क्या लगता है की बंगाल में हो रही हिंसा को सांप्रदायिक रूप देना पहली बार हो रहा है या जानबूझकर इसे सांप्रदायिक रंग दिया जा रहा है?”


इस पर आनंद कहते हैं, 'मैं इसके पीछे की मंशा पर नहीं जाऊंगा लेकिन एक बात सच है की बंगाल में स्ट्रीट पावर बहुत मायने रखता है. ये दो लेवल पर है. एक कैडर और पार्टी का फ्यूज़न और दूसरा पार्टी और स्टेट का फ्यूज़न. इस तरह की एक राजनीतिक संस्कृति बन गई है बंगाल में जहां दोनों एक दूसरे को अपना पूरक मानते हैं.” उन्होंने आगे कहा, “मेरे ख्याल से जो हिंसा हो रही है वह नहीं होना चाहिए और राजनीतिक संस्कृति का ये जो चेहरा है इसे बंद होना चाहिए.”


अतुल ने मेघनाद से पूछा की, “आप खुद बंगाल में चुनाव के दौरान मौजूद थे. इस चीज़ का कहीं अंदाज़ा लग पाया की लोग इतने हिंसक है? क्योंकि और कहीं देश में ऐसा नहीं देखने को मिलता. चुनाव ख़त्म होते ही लोग अपने-अपने रास्ते चले जाते हैं.मेघनाद कहते हैं, “मैं और मेरे साथी परीक्षित, दोनों को लग रहा था की यहां हिंसा होने वाली है. हम जब बैरकपुर गए थे, वहां भाटपाड़ा नाम की एक जगह पर चुनाव के दौरान हिंसक झड़प हुई थी. जब हमने लोगों से बात की तो लोगों ने कहा कि, ये हिंसा दो पार्टियों में आपस में शुरू हुई और फिर इसे हिन्दू मुस्लिम बना दिया गया.”उन्होंने आगे कहा, “काफी दुकानदारों ने उन्हें बताया कि चुनाव के नतीजे 2 मई को आने हैं, तो हम सारा सामान एक हफ्ते पहले गोडाउन में शिफ्ट कर रहे हैं. दुकानदार कहते है हमारी दुकान जलने वाली है. वो इतने विश्वास से यह बात कह रहे थे की कुछ भी हो, कोई भी जीते, हमारी दुकान तो फिर भी जलने वाली है. ये सुनकर कर ही हमें अंदेशा हमें होने लगा था कि बंगाल की राजनीति में हिंसा का एक पैटर्न है.”


इस विषय के अलावा अन्य विषयों पर भी विस्तार से चर्चा हुई. पूरी बातचीत सुनने के लिए यह पॉडकास्ट सुनें और न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करना न भूलें.


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उत्तर प्रदेश के अस्पताल को लेकर सीएनएन की रिपोर्ट


मेघनाथ एस


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उत्तर प्रदेश के मेरठ से आयुष और बसंत का ग्राउंड रिपोर्ट


आनंद वर्धन


चिन्मय तुम्बे की किताब - ऐज ऑफ़ पैनडेमिक


अतुल चौरसिया

गोरखपुर के गांव से शिवांगी और आकांक्षा की रिपोर्ट


पश्चिमी उत्तर प्रदेश से बसंत और आयुष की रिपोर्ट


कोरोना के मोर्चे पर सरकार की असफलता पर द इकोनॉमिस्ट का लेख.



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