सिंह और मेमना/The Lion and the Lamb.
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सिंह और मेमना
The Lion and the Lamb.
“देखो, मेरा सेवक जिसे मैंने चुना है, मेरा प्रिय जिस से मेरा मन अति प्रसन्न है। मैं उस पर अपना आत्मा डालूंगा और वह ग़ैरयहूदियों पर उचित न्याय की घोषणा करेगा। वह न तो विवाद करेगा और न चिल्लाएगा, और न कोई उसकी आवाज़ गलियों में सुनेगा। वह कुचले हुए सरकण्डे को न तोड़ेगा और टिमटिमाती हुई बत्ती को न बुझाएगा, जब तक कि वह न्याय को विजयी न बनाए। और उसी के नाम में ग़ैरयहूदी आशा रखेंगे।” (मत्ती 12:18-21, यशायाह 42 से उद्धरित)
पिता का मन अपने पुत्र के दास-जैसी नम्रता और करुणा पर हर्षित होता है।
जब एक सरकण्डा मुड़ा हुआ और टूटने वाला हो, तो दास उसे तब तक सीधा खड़ा रखेगा जब तक कि वह ठीक न हो जाए। जब बत्ती सुलग रही हो और थोड़ी सी ही उष्मा बची हो, तो दास उसे उँगलियों से नहीं बुझाएगा, परन्तु अपने हाथ से उसे ढकेगा और तब तक धीरे से फूँकेगा जब तक वह पुनः न जल उठे।
इस प्रकार पिता घोषणा करता है, “देखो, मेरा दास, जिससे मेरा मन मग्न होता है!” पुत्र का मूल्य और सुन्दरता केवल उसके महाप्रताप से ही नहीं आती है, न ही केवल उसकी नम्रता से, वरन् उस बात से जिसमें यह दोनों सिद्ध अनुपात में आपस में मिलते हैं।
जब प्रकाशितवाक्य 5:2 में स्वर्गदूत पुकारता है, “इस पुस्तक के खोलने और उसकी मुहरों को तोड़ने के योग्य कौन है?” तो उत्तर आता है कि, “मत रो; देख, यहूदा के कुल का वह सिंह जो दाऊद का मूल है, विजयी हुआ है, कि इस पुस्तक को और उसकी सात मुहरों को खोले” (प्रकाशितवाक्य 5:5)।
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