Vayam Rakshamah - Part 104 - Harsh Vishaad | वयं रक्षाम: - भाग 104 - हर्ष -विषाद | A Novel by Acharya Chatursen Shastri | आचार्य चतुरसेन शास्त्री का लिखा उपन्यास
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वयं रक्षाम: में प्राग्वेदकालीन जातियों के सम्बन्ध में सर्वथा अकल्पित अतर्कित नई स्थापनाएं हैं , मुक्त सहवास है, विवसन विचरण है, हरण और पलायन है। शिश्नदेव की उपासना है, वैदिक - अवैदिक अश्रुत मिश्रण है। नर - मांस की खुले बाजार में बिक्री है, नृत्य है, मद है, उन्मुख अनावृत यौवन है ।
इस उपन्यास में प्राग्वेदकालीन नर, नाग, देव, दैत्य-दानव, आर्य-अनार्य आदि विविध नृवंशों के जीवन के वे विस्तृत-पुरातन रेखाचित्र हैं, जिन्हें धर्म के रंगीन शीशे में देख कर सारे संसार ने अंतरिक्ष का देवता मान लिया था। मैं इस उपन्यास में उन्हें नर रूप में आपके समक्ष उपस्थित करने का साहस कर रहा हूँ। आज तक कभी मनुष्य की वाणी से न सुनी गई बातें, मैं आपको सुनाने पर आमादा हूँ।....उपन्यास में मेरे अपने जीवन-भर के अध्ययन का सार है।...
आचार्य चतुरसेन
उपन्यास - वयं रक्षाम: Novel - Vayam Rakshamah
लेखक - आचार्य चतुरसेन शास्त्री Writer - Acharya Chatursen Shastri
स्वर - समीर गोस्वामी Narration - Sameer Goswami
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