Artwork

Sameer Goswami द्वारा प्रदान की गई सामग्री. एपिसोड, ग्राफिक्स और पॉडकास्ट विवरण सहित सभी पॉडकास्ट सामग्री Sameer Goswami या उनके पॉडकास्ट प्लेटफ़ॉर्म पार्टनर द्वारा सीधे अपलोड और प्रदान की जाती है। यदि आपको लगता है कि कोई आपकी अनुमति के बिना आपके कॉपीराइट किए गए कार्य का उपयोग कर रहा है, तो आप यहां बताई गई प्रक्रिया का पालन कर सकते हैं https://hi.player.fm/legal
Player FM - पॉडकास्ट ऐप
Player FM ऐप के साथ ऑफ़लाइन जाएं!

जयशंकर प्रसाद की लिखी कहानी घीसू, Gheesu - Story Written By Jaishankar Prasad

10:34
 
साझा करें
 

Manage episode 230224780 series 1399468
Sameer Goswami द्वारा प्रदान की गई सामग्री. एपिसोड, ग्राफिक्स और पॉडकास्ट विवरण सहित सभी पॉडकास्ट सामग्री Sameer Goswami या उनके पॉडकास्ट प्लेटफ़ॉर्म पार्टनर द्वारा सीधे अपलोड और प्रदान की जाती है। यदि आपको लगता है कि कोई आपकी अनुमति के बिना आपके कॉपीराइट किए गए कार्य का उपयोग कर रहा है, तो आप यहां बताई गई प्रक्रिया का पालन कर सकते हैं https://hi.player.fm/legal
सन्ध्या की कालिमा और निर्जनता में किसी कुएँ पर नगर के बाहर बड़ी प्यारी स्वर-लहरी गूँजने लगती। घीसू को गाने का चसका था, परन्तु जब कोई न सुने। वह अपनी बूटी अपने लिए घोंटता और आप ही पीता! जब उसकी रसीली तान दो-चार को पास बुला लेती, वह चुप हो जाता। अपनी बटुई में सब सामान बटोरने लगता और चल देता। कोई नया कुआँ खोजता, कुछ दिन वहाँ अड्डा जमता। सब करने पर भी वह नौ बजे नन्दू बाबू के कमरे में पहुँच ही जाता। नन्दू बाबू का भी वही समय था, बीन लेकर बैठने का। घीसू को देखते ही वह कह देते-आ गये, घीसू! हाँ बाबू, गहरेबाजों ने बड़ी धूल उड़ाई-साफे का लोच आते-आते बिगड़ गया! कहते-कहते वह प्राय: अपने जयपुरी गमछे को बड़ी मीठी आँखों से देखता और नन्दू बाबू उसके कन्धे तक बाल, छोटी-छोटी दाढ़ी, बड़ी-बड़ी गुलाबी आँखों को स्नेह से देखते। घीसू उनका नित्य दर्शन करने वाला, उनकी बीन सुननेवाला भक्त था। नन्दू बाबू उसे अपने डिब्बे से दो खिल्ली पान की देते हुए कहते-लो, इसे जमा लो! क्यों, तुम तो इसे जमा लेना ही कहते हो न? वह विनम्र भाव से पान लेते हुए हँस देता-उसके स्वच्छ मोती-से दाँत हँसने लगते। घीसू की अवस्था पचीस की होगी। उसकी बूढ़ी माता को मरे भी तीन वर्ष हो गये थे। नन्दू बाबू की बीन सुनकर वह बाज़ार से कचौड़ी और दूध लेता, घर जाता, अपनी कोठरी में गुनगुनाता हुआ सो रहता। उसकी पूँजी थी एक सौ रुपये। वह रेजगी और पैसे की थैली लेकर दशाश्वमेध पर बैठता, एक पैसा रुपया बट्टा लिया करता और उसे बारह-चौदह आने की बचत हो जाती थी। गोविन्दराम जब बूटी बनाकर उसे बुलाते, वह अस्वीकार करता। गोविन्दराम कहते-बड़ा कंजूस है। सोचता है, पिलाना पड़ेगा, इसी डर से नहीं पीता। घीसू कहता-नहीं भाई, मैं सन्ध्या को केवल एक ही बार पीता हूँ। गोविन्दराम के घाट पर बिन्दो नहाने आती, दस बजे। उसकी उजली धोती में गोराई फूटी पड़ती। कभी रेजगी पैसे लेने के लिए वह घीसू के सामने आकर खड़ी हो जाती, उस दिन घीसू को असीम आनन्द होता। वह कहती-देखो, घिसे पैसे न देना। वाह बिन्दो! घिसे पैसे तुम्हारे ही लिए हैं? क्यों? तुम तो घीसू ही हो, फिर तुम्हारे पैसे क्यों न घिसे होंगे?-कहकर जब वह मुस्करा देती; तो घीसू कहता-बिन्दो! इस दुनिया में मुझसे अधिक कोई न घिसा; इसीलिए तो मेरे माता-पिता ने घीसू नाम रक्खा था। बिन्दो की हँसी आँखों में लौट जाती। वह एक दबी हुई साँस लेकर दशाश्वमेध के तरकारी-बाज़ार में चली जाती। बिन्दो नित्य रुपया नहीं तुड़ाती; इसीलिए घीसू को उसकी बातों के सुनने का आनन्द भी किसी-किसी दिन न मिलता। तो भी वह एक नशा था, जिससे कई दिनों के लिए भरपूर तृप्ति हो जाती, वह मूक मानसिक विनोद था। घीसू नगर के बाहर गोधूलि की हरी-भरी क्षितिज-रेखा में उसके सौन्दर्य से रंग भरता, गाता, गुनगुनाता और आनन्द लेता। घीसू की जीवन-यात्रा का वही सम्बल था, वही पाथेय था। सन्ध्या की शून्यता, बूटी की गमक, तानों की रसीली गुन्नाहट और नन्दू बाबू की बीन, सब बिन्दो की आराधना की सामग्री थी। घीसू कल्पना के सुख से सुखी होकर सो रहता। उसने कभी विचार भी न किया था कि बिन्दो कौन है? किसी तरह से उसे इतना तो विश्वास हो गया था कि वह एक विधवा है; परन्तु इससे अधिक जानने की उसे जैसे आवश्यकता नहीं। रात के आठ बजे थे, घीसू बाहरी ओर से लौट रहा था। सावन के मेघ घिरे थे, फूही पड़ रही थी। घीसू गा रहा था-‘‘निसि दिन बरसत नैन हमारे’’ सड़क पर कीचड़ की कमी न थी। वह धीरे-धीरे चल रहा था, गाता जाता था। सहसा वह रुका। एक जगह सड़क में पानी इकट्ठा था। छींटों से बचने के लिए वह ठिठक कर-किधर से चलें-सोचने लगा। पास के बगीचे के कमरे से उसे सुनाई पड़ा-यही तुम्हारा दर्शन है-यहाँ इस मुँहजली को लेकर पड़े हो। मुझसे...। दूसरी ओर से कहा गया-तो इसमें क्या हुआ! क्या तुम मेरी ब्याही हुई हो, जो मैं तुम्हे इसका जवाब देता फिरूँ?-इस शब्द में भर्राहट थी, शराबी की बोली थी। घीसू ने सुना, बिन्दो कह रही थी-मैं कुछ नहीं हूँ लेकिन तुम्हारे साथ मैंने धरम बिगाड़ा है सो इसीलिए नहीं कि तुम मुझे फटकारते फिरो। मैं इसका गला घोंट दूंगी और-तुम्हारा भी....बदमाश...।
  continue reading

1786 एपिसोडस

Artwork
iconसाझा करें
 
Manage episode 230224780 series 1399468
Sameer Goswami द्वारा प्रदान की गई सामग्री. एपिसोड, ग्राफिक्स और पॉडकास्ट विवरण सहित सभी पॉडकास्ट सामग्री Sameer Goswami या उनके पॉडकास्ट प्लेटफ़ॉर्म पार्टनर द्वारा सीधे अपलोड और प्रदान की जाती है। यदि आपको लगता है कि कोई आपकी अनुमति के बिना आपके कॉपीराइट किए गए कार्य का उपयोग कर रहा है, तो आप यहां बताई गई प्रक्रिया का पालन कर सकते हैं https://hi.player.fm/legal
सन्ध्या की कालिमा और निर्जनता में किसी कुएँ पर नगर के बाहर बड़ी प्यारी स्वर-लहरी गूँजने लगती। घीसू को गाने का चसका था, परन्तु जब कोई न सुने। वह अपनी बूटी अपने लिए घोंटता और आप ही पीता! जब उसकी रसीली तान दो-चार को पास बुला लेती, वह चुप हो जाता। अपनी बटुई में सब सामान बटोरने लगता और चल देता। कोई नया कुआँ खोजता, कुछ दिन वहाँ अड्डा जमता। सब करने पर भी वह नौ बजे नन्दू बाबू के कमरे में पहुँच ही जाता। नन्दू बाबू का भी वही समय था, बीन लेकर बैठने का। घीसू को देखते ही वह कह देते-आ गये, घीसू! हाँ बाबू, गहरेबाजों ने बड़ी धूल उड़ाई-साफे का लोच आते-आते बिगड़ गया! कहते-कहते वह प्राय: अपने जयपुरी गमछे को बड़ी मीठी आँखों से देखता और नन्दू बाबू उसके कन्धे तक बाल, छोटी-छोटी दाढ़ी, बड़ी-बड़ी गुलाबी आँखों को स्नेह से देखते। घीसू उनका नित्य दर्शन करने वाला, उनकी बीन सुननेवाला भक्त था। नन्दू बाबू उसे अपने डिब्बे से दो खिल्ली पान की देते हुए कहते-लो, इसे जमा लो! क्यों, तुम तो इसे जमा लेना ही कहते हो न? वह विनम्र भाव से पान लेते हुए हँस देता-उसके स्वच्छ मोती-से दाँत हँसने लगते। घीसू की अवस्था पचीस की होगी। उसकी बूढ़ी माता को मरे भी तीन वर्ष हो गये थे। नन्दू बाबू की बीन सुनकर वह बाज़ार से कचौड़ी और दूध लेता, घर जाता, अपनी कोठरी में गुनगुनाता हुआ सो रहता। उसकी पूँजी थी एक सौ रुपये। वह रेजगी और पैसे की थैली लेकर दशाश्वमेध पर बैठता, एक पैसा रुपया बट्टा लिया करता और उसे बारह-चौदह आने की बचत हो जाती थी। गोविन्दराम जब बूटी बनाकर उसे बुलाते, वह अस्वीकार करता। गोविन्दराम कहते-बड़ा कंजूस है। सोचता है, पिलाना पड़ेगा, इसी डर से नहीं पीता। घीसू कहता-नहीं भाई, मैं सन्ध्या को केवल एक ही बार पीता हूँ। गोविन्दराम के घाट पर बिन्दो नहाने आती, दस बजे। उसकी उजली धोती में गोराई फूटी पड़ती। कभी रेजगी पैसे लेने के लिए वह घीसू के सामने आकर खड़ी हो जाती, उस दिन घीसू को असीम आनन्द होता। वह कहती-देखो, घिसे पैसे न देना। वाह बिन्दो! घिसे पैसे तुम्हारे ही लिए हैं? क्यों? तुम तो घीसू ही हो, फिर तुम्हारे पैसे क्यों न घिसे होंगे?-कहकर जब वह मुस्करा देती; तो घीसू कहता-बिन्दो! इस दुनिया में मुझसे अधिक कोई न घिसा; इसीलिए तो मेरे माता-पिता ने घीसू नाम रक्खा था। बिन्दो की हँसी आँखों में लौट जाती। वह एक दबी हुई साँस लेकर दशाश्वमेध के तरकारी-बाज़ार में चली जाती। बिन्दो नित्य रुपया नहीं तुड़ाती; इसीलिए घीसू को उसकी बातों के सुनने का आनन्द भी किसी-किसी दिन न मिलता। तो भी वह एक नशा था, जिससे कई दिनों के लिए भरपूर तृप्ति हो जाती, वह मूक मानसिक विनोद था। घीसू नगर के बाहर गोधूलि की हरी-भरी क्षितिज-रेखा में उसके सौन्दर्य से रंग भरता, गाता, गुनगुनाता और आनन्द लेता। घीसू की जीवन-यात्रा का वही सम्बल था, वही पाथेय था। सन्ध्या की शून्यता, बूटी की गमक, तानों की रसीली गुन्नाहट और नन्दू बाबू की बीन, सब बिन्दो की आराधना की सामग्री थी। घीसू कल्पना के सुख से सुखी होकर सो रहता। उसने कभी विचार भी न किया था कि बिन्दो कौन है? किसी तरह से उसे इतना तो विश्वास हो गया था कि वह एक विधवा है; परन्तु इससे अधिक जानने की उसे जैसे आवश्यकता नहीं। रात के आठ बजे थे, घीसू बाहरी ओर से लौट रहा था। सावन के मेघ घिरे थे, फूही पड़ रही थी। घीसू गा रहा था-‘‘निसि दिन बरसत नैन हमारे’’ सड़क पर कीचड़ की कमी न थी। वह धीरे-धीरे चल रहा था, गाता जाता था। सहसा वह रुका। एक जगह सड़क में पानी इकट्ठा था। छींटों से बचने के लिए वह ठिठक कर-किधर से चलें-सोचने लगा। पास के बगीचे के कमरे से उसे सुनाई पड़ा-यही तुम्हारा दर्शन है-यहाँ इस मुँहजली को लेकर पड़े हो। मुझसे...। दूसरी ओर से कहा गया-तो इसमें क्या हुआ! क्या तुम मेरी ब्याही हुई हो, जो मैं तुम्हे इसका जवाब देता फिरूँ?-इस शब्द में भर्राहट थी, शराबी की बोली थी। घीसू ने सुना, बिन्दो कह रही थी-मैं कुछ नहीं हूँ लेकिन तुम्हारे साथ मैंने धरम बिगाड़ा है सो इसीलिए नहीं कि तुम मुझे फटकारते फिरो। मैं इसका गला घोंट दूंगी और-तुम्हारा भी....बदमाश...।
  continue reading

1786 एपिसोडस

Tous les épisodes

×
 
Loading …

प्लेयर एफएम में आपका स्वागत है!

प्लेयर एफएम वेब को स्कैन कर रहा है उच्च गुणवत्ता वाले पॉडकास्ट आप के आनंद लेंने के लिए अभी। यह सबसे अच्छा पॉडकास्ट एप्प है और यह Android, iPhone और वेब पर काम करता है। उपकरणों में सदस्यता को सिंक करने के लिए साइनअप करें।

 

त्वरित संदर्भ मार्गदर्शिका