Artwork

Sameer Goswami द्वारा प्रदान की गई सामग्री. एपिसोड, ग्राफिक्स और पॉडकास्ट विवरण सहित सभी पॉडकास्ट सामग्री Sameer Goswami या उनके पॉडकास्ट प्लेटफ़ॉर्म पार्टनर द्वारा सीधे अपलोड और प्रदान की जाती है। यदि आपको लगता है कि कोई आपकी अनुमति के बिना आपके कॉपीराइट किए गए कार्य का उपयोग कर रहा है, तो आप यहां बताई गई प्रक्रिया का पालन कर सकते हैं https://hi.player.fm/legal
Player FM - पॉडकास्ट ऐप
Player FM ऐप के साथ ऑफ़लाइन जाएं!

जयशंकर प्रसाद की लिखी कहानी ब्रह्मर्षि, Brahmrishi - Story Written By Jaishankar Prasad

10:56
 
साझा करें
 

Manage episode 232220938 series 1399468
Sameer Goswami द्वारा प्रदान की गई सामग्री. एपिसोड, ग्राफिक्स और पॉडकास्ट विवरण सहित सभी पॉडकास्ट सामग्री Sameer Goswami या उनके पॉडकास्ट प्लेटफ़ॉर्म पार्टनर द्वारा सीधे अपलोड और प्रदान की जाती है। यदि आपको लगता है कि कोई आपकी अनुमति के बिना आपके कॉपीराइट किए गए कार्य का उपयोग कर रहा है, तो आप यहां बताई गई प्रक्रिया का पालन कर सकते हैं https://hi.player.fm/legal
नवीन कोमल किसलयों से लदे वृक्षों से हरा-भरा तपोवन वास्तव में शान्ति-निकेतन का मनोहर आकार धारण किये हुए है, चञ्चल पवन कुसुमसौरभ से दिगन्त को परिपूर्ण कर रहा है; किन्तु, आनन्दमय वशिष्ठ भगवान् अपने गम्भीर मुखमण्डल की गम्भीरमयी प्रभा से अग्निहोत्र-शाला को आलोकमय किये तथा ध्यान में नेत्र बन्द किये हुए बैठे हैं। प्रशान्त महासागर में सोते हुए मत्स्यराज के समान ही दोनों नेत्र अलौकिक आलोक से आलोकित हो रहे हैं। रघुकुल-श्रेष्ठ महाराज त्रिशंकु सामने हाथ जोड़कर खड़े हैं, किन्तु सामथ्र्य किसकी जो उस आनन्द में बाधा डाले। ध्यान भग्न हुआ, वशिष्ठजी को त्रिशंकु ने साष्टांग दण्डवत् किया, उन्होंने आशीर्वाद दिया। सबको बैठने की आज्ञा हुई, सविनय सब बैठे। महाराज को कुछ कहते देखकर ब्रह्मर्षि ने ध्यान से सुनना आरम्भ किया। त्रिशंकु ने पूछा-‘‘भगवन्! यज्ञ का क्या फल है?’’ फिर प्रश्न किया गया-‘‘मनुष्य शरीर से स्वर्ग-प्राप्ति हो सकती है?’’ उत्तर मिला-‘‘नहीं।’’ फिर प्रश्न किया गया-‘‘आपकी कृपा से सब हो सकता है?’’ उत्तर मिला-‘‘राजन्, उसको तुम न तो पा सकते हो और न हम दिला सकते हैं।’’ त्रिशंकु वहाँ से उठकर, प्रणामोपरान्त दूसरी ओर चले। थोड़ी ही दूर पर भगवान वशिष्ठ के पुत्रगण आपस में शास्त्रवाद कर रहे थे। त्रिशंकु ने उन्हें प्रणाम किया, और कहा-‘‘आप मानव-शरीर से स्वर्ग जाने का फल देनेवाला यज्ञ करा सकते हैं?’’ पुत्र शिष्य ने कहा-‘‘भगवान वशिष्ठ ने क्या कहा?’’ त्रिशंकु ने उत्तर दिया-‘‘भगवान वशिष्ठ ने तो असम्भव कहा है।’’ यह सुनकर वशिष्ठ-पुत्रों को बड़ा क्रोध हुआ, और बड़ी उग्रता से वे बोल उठे-‘‘मतिमन्द त्रिशंकु, तुझे क्या हो गया, गुरु पर अविश्वास! तुझे तो इस पाप के फल से चाण्डालत्व को प्राप्त होना चाहिए।’’ इस श्राप से त्रिशंकु श्री-भ्रष्ट होकर चाण्डालत्व को प्राप्त हुआ; स्वर्ग के बदले चाण्डालत्व मिला-पुण्य करते पाप हुआ!
  continue reading

1786 एपिसोडस

Artwork
iconसाझा करें
 
Manage episode 232220938 series 1399468
Sameer Goswami द्वारा प्रदान की गई सामग्री. एपिसोड, ग्राफिक्स और पॉडकास्ट विवरण सहित सभी पॉडकास्ट सामग्री Sameer Goswami या उनके पॉडकास्ट प्लेटफ़ॉर्म पार्टनर द्वारा सीधे अपलोड और प्रदान की जाती है। यदि आपको लगता है कि कोई आपकी अनुमति के बिना आपके कॉपीराइट किए गए कार्य का उपयोग कर रहा है, तो आप यहां बताई गई प्रक्रिया का पालन कर सकते हैं https://hi.player.fm/legal
नवीन कोमल किसलयों से लदे वृक्षों से हरा-भरा तपोवन वास्तव में शान्ति-निकेतन का मनोहर आकार धारण किये हुए है, चञ्चल पवन कुसुमसौरभ से दिगन्त को परिपूर्ण कर रहा है; किन्तु, आनन्दमय वशिष्ठ भगवान् अपने गम्भीर मुखमण्डल की गम्भीरमयी प्रभा से अग्निहोत्र-शाला को आलोकमय किये तथा ध्यान में नेत्र बन्द किये हुए बैठे हैं। प्रशान्त महासागर में सोते हुए मत्स्यराज के समान ही दोनों नेत्र अलौकिक आलोक से आलोकित हो रहे हैं। रघुकुल-श्रेष्ठ महाराज त्रिशंकु सामने हाथ जोड़कर खड़े हैं, किन्तु सामथ्र्य किसकी जो उस आनन्द में बाधा डाले। ध्यान भग्न हुआ, वशिष्ठजी को त्रिशंकु ने साष्टांग दण्डवत् किया, उन्होंने आशीर्वाद दिया। सबको बैठने की आज्ञा हुई, सविनय सब बैठे। महाराज को कुछ कहते देखकर ब्रह्मर्षि ने ध्यान से सुनना आरम्भ किया। त्रिशंकु ने पूछा-‘‘भगवन्! यज्ञ का क्या फल है?’’ फिर प्रश्न किया गया-‘‘मनुष्य शरीर से स्वर्ग-प्राप्ति हो सकती है?’’ उत्तर मिला-‘‘नहीं।’’ फिर प्रश्न किया गया-‘‘आपकी कृपा से सब हो सकता है?’’ उत्तर मिला-‘‘राजन्, उसको तुम न तो पा सकते हो और न हम दिला सकते हैं।’’ त्रिशंकु वहाँ से उठकर, प्रणामोपरान्त दूसरी ओर चले। थोड़ी ही दूर पर भगवान वशिष्ठ के पुत्रगण आपस में शास्त्रवाद कर रहे थे। त्रिशंकु ने उन्हें प्रणाम किया, और कहा-‘‘आप मानव-शरीर से स्वर्ग जाने का फल देनेवाला यज्ञ करा सकते हैं?’’ पुत्र शिष्य ने कहा-‘‘भगवान वशिष्ठ ने क्या कहा?’’ त्रिशंकु ने उत्तर दिया-‘‘भगवान वशिष्ठ ने तो असम्भव कहा है।’’ यह सुनकर वशिष्ठ-पुत्रों को बड़ा क्रोध हुआ, और बड़ी उग्रता से वे बोल उठे-‘‘मतिमन्द त्रिशंकु, तुझे क्या हो गया, गुरु पर अविश्वास! तुझे तो इस पाप के फल से चाण्डालत्व को प्राप्त होना चाहिए।’’ इस श्राप से त्रिशंकु श्री-भ्रष्ट होकर चाण्डालत्व को प्राप्त हुआ; स्वर्ग के बदले चाण्डालत्व मिला-पुण्य करते पाप हुआ!
  continue reading

1786 एपिसोडस

सभी एपिसोड

×
 
Loading …

प्लेयर एफएम में आपका स्वागत है!

प्लेयर एफएम वेब को स्कैन कर रहा है उच्च गुणवत्ता वाले पॉडकास्ट आप के आनंद लेंने के लिए अभी। यह सबसे अच्छा पॉडकास्ट एप्प है और यह Android, iPhone और वेब पर काम करता है। उपकरणों में सदस्यता को सिंक करने के लिए साइनअप करें।

 

त्वरित संदर्भ मार्गदर्शिका