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शिव स्तुति (Shiv Stuti)

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शिव स्तुति

स्वभाव से हैं जो सरल, त्रिनेत्र में रखें अनल।

जटाओं में भागीरथी, कण्ठ में धरें गरल॥

सोम सज्ज भाल है, वज्र वक्ष विशाल है।

जिनका नाम मात्र ही, काल का भी काल है॥

दिव्य जिनका रूप है, सौभाग्य का स्वरूप है।

कपूर कान्ति वर्ण पर, भस्म और भभूत है॥

आसन व्याघ्र चर्म है, धर्म का जो मर्म है।

जिनकी इच्छा मात्र से, घटित प्रत्येक कर्म है॥

औघड़ आदिनाथ हैँ, भूत प्रेत साथ हैँ।

क्या मनुज क्या पशु, वो तो विश्वनाथ हैँ॥

ज्ञान की जो ज्योत हैँ, कला का भी स्त्रोत हैँ।

जिनकी कृपा से देव, शक्ति से ओत प्रोत हैँ॥

सूर्य में आलोक हैँ, वेदों में जो श्लोक हैँ।

व्याप्त जो हर जीव में, जिनसे तीनों लोक हैँ॥

ज्योति का स्तम्भ हैं, सृष्टि का प्रारम्भ हैं।

अन्त का भी अन्त जो, आरम्भ का आरम्भ हैं॥

अचल अटल अमर अखंड, रौद्र रूप है प्रचंड।

भेद भाव छुआ नहीं, देवों को भी दें जो दंड॥

जो देवों में विशेष हैं, करे नमन सुरेश हैं।

स्वर्ग धरा पाताल में, एक वही अशेष हैं॥

गूँजता है ये गगन, भक्त हैं सभी मगन।

जो देवों के भी देव हैं, उन्हीं को है मेरा नमन॥

श्रद्धा सहित

विवेक अग्रवाल

(मौलिक और स्वलिखित)

--- Send in a voice message: https://podcasters.spotify.com/pod/show/vivek-agarwal70/message
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जटाओं में भागीरथी, कण्ठ में धरें गरल॥

सोम सज्ज भाल है, वज्र वक्ष विशाल है।

जिनका नाम मात्र ही, काल का भी काल है॥

दिव्य जिनका रूप है, सौभाग्य का स्वरूप है।

कपूर कान्ति वर्ण पर, भस्म और भभूत है॥

आसन व्याघ्र चर्म है, धर्म का जो मर्म है।

जिनकी इच्छा मात्र से, घटित प्रत्येक कर्म है॥

औघड़ आदिनाथ हैँ, भूत प्रेत साथ हैँ।

क्या मनुज क्या पशु, वो तो विश्वनाथ हैँ॥

ज्ञान की जो ज्योत हैँ, कला का भी स्त्रोत हैँ।

जिनकी कृपा से देव, शक्ति से ओत प्रोत हैँ॥

सूर्य में आलोक हैँ, वेदों में जो श्लोक हैँ।

व्याप्त जो हर जीव में, जिनसे तीनों लोक हैँ॥

ज्योति का स्तम्भ हैं, सृष्टि का प्रारम्भ हैं।

अन्त का भी अन्त जो, आरम्भ का आरम्भ हैं॥

अचल अटल अमर अखंड, रौद्र रूप है प्रचंड।

भेद भाव छुआ नहीं, देवों को भी दें जो दंड॥

जो देवों में विशेष हैं, करे नमन सुरेश हैं।

स्वर्ग धरा पाताल में, एक वही अशेष हैं॥

गूँजता है ये गगन, भक्त हैं सभी मगन।

जो देवों के भी देव हैं, उन्हीं को है मेरा नमन॥

श्रद्धा सहित

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