साढ़े नौ किलोमीटर (Nine and a half Kilometers)
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साढ़े नौ किलोमीटर "साढ़े नौ किलोमीटर" कलाई पर बँधी स्मार्टवॉच ने दिखाया। जैसे ही घर का द्वार निकट आया। रोज ही की तरह मॉर्निंग वॉक से वापस आ रहा था। स्वयं से किया नये साल का वादा निभा रहा था। अपनी जानी पहचानी गलियों को मापते हुये। पास वाले गार्डन और बीचफ़्रंट की लम्बाई नापते हुये। तक़रीबन डेढ़ घंटा हो गया था चलते हुये। और अपनी प्रिय प्लेलिस्ट को सुनते हुये। ऑफिस के पेंडिंग काम याद आने लगे थे। और सिर्फ घंटा भर पहले सोचे, कविता के खूबसूरत आइडियाज दिमाग से जाने लगे थे। साढ़े नौ किलोमीटर, ये बात नहीं थी नयी या विशेष। अक्सर घर आ जाता था, जब दस किलोमीटर में होते थे कुछ मीटर शेष। ऐसे में मैं थोड़ा और आगे चला जाता था। और यू टर्न ले कर वापस घर आता था। अपने दस किलोमीटर पूरा करने का संतोष पाने। और फिर स्क्रीनशॉट को फेसबुक पर डाल सबको बताने। ऐसे विषम, अजीब आंकड़े पर भला कौन इतिश्री करेगा। और न ही कुछ मिनट और चल लेने से कुछ बिगड़ेगा। कई बार तो समय के अभाव में ऐसा भी था किया। कि कूल डाउन मोड छोड़ कर एक स्प्रिंट मार दिया। "साढ़े नौ किलोमीटर" एक बार फिर स्मार्टवॉच की रीडिंग को देखा। और एक गहरी साँस ले पार कर ली गृहरेखा। समय था, स्टैमिना भी था फिर भी आगे न कदम बढ़ाये। बिना दस किलोमीटर पूरे किये, वापस घर के अंदर आये। सोचा क्या फर्क पड़ता है यदि आधा किलोमीटर कम चला। ये राउंड नंबर की मृगतृष्णा एक मोह ही तो है जिसे छोड़ना भला। मुख्य बात है नित्य सुबह उठ, अपनी वॉक पे जाना। खुली हवा में साँसे ले गहरी, आगे कदम बढ़ाना। अभी कुछ ही दिन पहले “गीता इन 18 डेज” नाम की पुस्तक पढ़ी थी। और लेखकजी से प्रेरणा ले कर, निष्काम कर्म की थोड़ी धुन तो चढ़ी थी। साढ़े नौ किलोमीटर आज की इस वॉक ने सबसे जरुरी लाइफ लैसन पुनः याद दिला दिया। और मेरे अंदर का मैं जो कहीं खो सा गया था आज मुझसे फिर मिला दिया। अब निगाह घडी घडी स्मार्टवॉच पर टाइम, डिस्टेंस, पेस, देखने ना जायेगी। पत्तों पुष्पों से ढुलकती ओस की बूंदों को नयन घट में ले उगते सूर्य को अर्घ्य चढ़ायेगी। अब कानों पर हैडफ़ोन लगा, उच्च स्वर में तीव्र गति का संगीत सुन स्वयं को पृथक ना करूँगा। सिंधु की मचलती लहरों, चिड़ियों के कलरव और लाफ्टर क्लबके बिंदास ठहाकों को सुनूँगा। बस बहुत हुआ निन्यानवे का फेर, अब ना किसी रैट रेस में भागूँगा। कर्म करूंगा पूरे प्रयास से पर, रिजल्ट को प्रभु प्रसाद ही मानूँगा। यूँ तो कई बार मैंने हाफ मैराथन का डिस्टेंस भी तय किया था। पर आज अधूरी अपूर्ण मॉर्निंग वॉक ने मुझे सम्पूर्ण कर दिया था। जो खोज रहा था पूरी दुनिया में मिल गया अपने ही भीतर। थैंक यू, साढ़े नौ किलोमीटर। ~ विवेक (सर्व अधिकार सुरक्षित) --- Send in a voice message: https://podcasters.spotify.com/pod/show/vivek-agarwal70/message
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