प्रकृति का पाठ (Lessons from Nature)
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आओ बच्चों आज तुमको एक पाठ नया पढ़ाता हूँ।
प्रकृति हमको क्या सिखलाती, ये तुमको बतलाता हूँ।
देखो कैसे पत्थर खा के भी, पेड़ हमें फल देते हैं।
क्षमा-दान से बड़ा कुछ नहीं, ये हम सबसे कहते हैं।
पर्वत से सागर तक नदिया, लम्बा सफर है करती।
निज लक्ष्य तक बढ़ो निरंतर, सीख यही है मिलती।
सबका भार उठाये मस्तक पर, देखो धरती माता।
सहनशीलता का अर्थ क्या, इससे समझ में आता।
ज्वार-भाटा नित्य आता पर, सागर सीमा ना तोड़े।
सुख-दुःख में धैर्य रखें हम, मर्यादा कभी ना छोड़ें।
देखो कैसे रोज नियम से, सूरज है आता जाता।
अनुशासन का पाठ हमको, अच्छे से सिखलाता।
झंझावत कितने आयें परन्तु, पर्वत अडिग है रहता।
कठिन समय में दृढ़ रहने की बात हमसे कहता।
आसमान में स्थिर ध्रुव तारा, भटकों को राह दिखाता।
अटल इरादे अगर हमारे, सब कुछ संभव हो जाता।
सुन्दर सुरभित पुष्प यहाँ, सबको सुख पहुंचाते।
हम भी यूँ खुशियां बरसायें, ये हमको समझाते।
जैसा बीज खेत में डालो, वैसी फसल है उगती।
ये देख हम सबको, अच्छे कर्म की प्रेरणा मिलती।
भाषा गणित इतिहास कला, इन सबसे बढ़ता ज्ञान।
पर अच्छे गुण पाकर ही, एक व्यक्ति बनता महान।
प्रकृति के कण कण में भरा है, सीखों का भण्डार।
इस ज्ञान से चलो सँवारे, मिल कर अपना संसार।
स्वरचित
विवेक अग्रवाल
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