माँ तू मुझे सिखा दे, आसमान में उड़ना
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माँ तू मुझे सिखा दे, आसमान में उड़ना
ओ माँ तू मुझे सिखा दे,
आसमान में उड़ना।
पंखों में भर जोश मुझे भी,
तेज हवा से लड़ना।
हर सुबह तू छोड़ के मुझको,
दाना लेने जाती है।
सर्दी गर्मी में श्रम करके,
तू सदैव मुस्काती है।
बारिश के मौसम में जब,
नीड़ हमारा रिसता है।
वन में तू घूम अकेले,
तिनका तिनका लाती है।
तेरी प्रेरणा से मैं भी चाहूँ,
नित ऊँचाई पे चढ़ना।
ओ माँ तू मुझे सिखा दे,
आसमान में उड़ना
कभी सोचता था मैं मन में,
प्रभु ने अपना घर क्यों तोडा।
भाग्य चक्र को अपने क्यों,
विपरीत दिशा में मोड़ा।
गत जीवन के कृत्य थे,
या इस जीवन की गलती।
भरे पूरे इस सुन्दर वन में,
हमको जो एकाकी छोड़ा।
सोच सिहर जाता क्या होगा,
जो पड़ा हमें बिछुड़ना।
ओ माँ तू मुझे सिखा दे,
आसमान में उड़ना।
ऊपर वाली शाख के बच्चे,
दिन भर शोर मचाते हैं।
देख निलय में मुझे अकेला,
मिल कर खूब चिढ़ाते हैं।
अपना क्या दोष हैं इसमें,
जो अपना परिवार अधूरा।
फिर क्यों कटु शब्दों के बाण,
हम पर वो चलाते हैं।
अब तू ही मुझे बता कैसे,
उद्विग्नता में न पड़ना।
ओ माँ तू मुझे सिखा दे,
आसमान में उड़ना।
वसंतऋतू के स्वागत में जब,
सुरभित बयार है बहती।
नूतन किसलय कोपल कलियाँ,
कोने कोने में महकती।
हर्षोल्लास से उत्सव को,
सब मिल जुल कर मनाते हैं।
मुझे प्रसन्न करने हेतु तू,
कृत्रिम स्मित से चहकती।
तुझे अकेला देख स्वाभाविक,
दृग में नीर उमड़ना।
ओ माँ तू मुझे सिखा दे,
आसमान में उड़ना।
नीचे बैठा व्याध जाल ले,
बाज ऊपर मंडराता है।
इन खतरों को देख मेरा मन,
शंका से भर जाता है।
हर दिन तेरे साहस की,
एक नयी परीक्षा होती है।
पर तेरा संकल्प देख दॄढ,
संकट भी सहमा जाता है।
तुझे अकम्पित देख मैं सीखा,
पीछे कभी न मुड़ना।
ओ माँ तू मुझे सिखा दे,
आसमान में उड़ना।
~ विवेक (सर्व अधिकार सुरक्षित)
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