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इश्क़ दोबारा

3:33
 
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Manage episode 325088526 series 3337254
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एक किताब सा मैं जिसमें तू कविता सी समाई है,

कुछ ऐसे ज्यूँ जिस्म में रुह रहा करती है।

मेरी जीस्त के पन्ने पन्ने में तेरी ही रानाई है,

कुछ ऐसे ज्यूँ रगों में ख़ून की धारा बहा करती है।

एक मर्तबा पहले भी तूने थी ये किताब सजाई,

लिखकर अपनी उल्फत की खूबसूरत नज़्म।

नीश-ए-फ़िराक़ से घायल हुआ मेरा जिस्मोजां,

तेरे तग़ाफ़ुल से जब उजड़ी थी ज़िंदगी की बज़्म।

सूखी नहीं है अभी सुर्ख़ स्याही से लिखी ये इबारतें,

कहीं फ़िर से मौसम-ए-बाराँ में धुल के बह ना जायें।

ए'तिमाद-ए-हम-क़दमी की छतरी को थामे रखना,

शक-ओ-शुबह के छींटे तक इस बार पड़ ना पायें।

~ विवेक (सर्व अधिकार सुरक्षित)

--- Send in a voice message: https://podcasters.spotify.com/pod/show/vivek-agarwal70/message
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कुछ ऐसे ज्यूँ जिस्म में रुह रहा करती है।

मेरी जीस्त के पन्ने पन्ने में तेरी ही रानाई है,

कुछ ऐसे ज्यूँ रगों में ख़ून की धारा बहा करती है।

एक मर्तबा पहले भी तूने थी ये किताब सजाई,

लिखकर अपनी उल्फत की खूबसूरत नज़्म।

नीश-ए-फ़िराक़ से घायल हुआ मेरा जिस्मोजां,

तेरे तग़ाफ़ुल से जब उजड़ी थी ज़िंदगी की बज़्म।

सूखी नहीं है अभी सुर्ख़ स्याही से लिखी ये इबारतें,

कहीं फ़िर से मौसम-ए-बाराँ में धुल के बह ना जायें।

ए'तिमाद-ए-हम-क़दमी की छतरी को थामे रखना,

शक-ओ-शुबह के छींटे तक इस बार पड़ ना पायें।

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