ग़ज़ल - इतनी मेरी कहानी (Ghazal - Itni Meri Kahani)
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नखरे तिरे उठाये, तिरि बात हम ने मानी।
तिरा इंतज़ार करते, मिरि खो गयी जवानी।
तुम दूर हम से हो तो, कमतर है जिंदगानी।
दिन भी नहीं है अच्छा, न ही रात है सुहानी।
तुम आज हो ये कहते, कहीं और दिल लगा लूँ।
अब यूँ किसे मैं चाहूँ, न तिरा बना है सानी।
अहसान कर दे इतना, कि न याद हम को करना।
यदि कोइ रह गयी है, मिरि फेंक दे निशानी।
शुरुआत भी तुझी से, अनजाम तुम हो मेरा।
कुछ और ना है शामिल, इतनी मेरी कहानी।
~ विवेक (सर्व अधिकार सुरक्षित)
स्वरचित व मौलिक
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