ग़ज़ल - इश्क़ है (Ghazal - Ishq Hai)
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तुम अकेले में अगर हो मुस्कुराते इश्क़ है।
महफ़िलों में भी अकेले गुनगुनाते इश्क़ है।
जब नज़र से दूर हो वो चैन दिल को ना मिले,
सामने जब वो पड़े नजरें चुराते इश्क़ है।
बेखबर तो है नहीं वो जानती हर बात है,
हाल कहते होंठ फिर भी थरथराते इश्क़ है।
ख़्वाब देखे जो खुली आँखों से तुमने रात दिन,
बंद आँखों में सितारे झिलमिलाते इश्क़ है।
हाथ उठते जब दुआ में माँगते उसकी ख़ुशी,
नूर उसके अक्स का दिल में सजाते इश्क़ है।
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शाइर - विवेक अग्रवाल 'अवि'
संगीत और गायन - रानू जैन
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