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Velankanni Mother Mary Novena in Hindi | DAY 05 का विषय- "ख्रीस्तीय जीवन में माँ मरियम का महत्व"

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माँ मरियम के जन्मोत्सव की तैयारी के पांचवां दिन हमारे मनन चिंतन के लिए लिया हुआ विषय है - "ख्रीस्तीय जीवन में माँ मरियम का महत्व"

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माँ मरियम के बिना क्या ख्रीस्तीय जीवन संभव है?

इस सवाल को थोड़ा बदलकर भी पूछ लें - माँ मरियम के बिना क्या प्रभु येसु का जीवन संभव था?

जरूर ईश्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। लेकिन ईश्वर के पुत्र के शरीरधारण और मानव रूप में उनके जीवन को देखें तो बिना धन्य कुँवारी मरियम का वे अनाथ होते !

आपका क्या विचार है?

यदि माँ मरियम प्रभु के जन्म के कुछ ही दिनों या सालों के अंदर मर गयी होती, तो प्रभु का जीवन कैसे रहा होता?

अब हम प्रभु के जगह पर अपने आपको रखें !

क्या माँ मरियम के बिना ख्रीस्तीय जीवन संभव है?

इस सवाल का जवाब देने से पहले हमें दो शब्दों का अर्थ जानना है।

1. ख्रीस्तीय

2. कलीसिया

1. ख्रीस्तीय

ख्रीस्तीय कौन है?

ख्रीस्तीय वह नहीं जो -

* हर दिन पवित्र बाइबिल पढता है।

* वचन पर आधारित जीवन जीता है।

* अच्छा नैतिक जीवन जीता है।

ये सब जरुरी है, लेकिन पर्याप्त नहीं।

ईश्वर का एक निर्णायक कार्य होना अनिवार्य है। कौनसा है वह कार्य जिसके बिना कोई भी ख्रीस्तीय नहीं हो सकता?

वह निर्णायक कार्य है बपतिस्मा संस्कार !

बपतिस्मा संस्कार के द्वारा एक व्यक्ति प्रभु येसु के साथ एक कर दिया जाता है। संत पौलुस इस कार्य को "कलम करना" कहते हैं।

"यदि कुछ डालियाँ तोड़ कर अलग कर दी गयी हैं और आप, जो जंगली जैतून है, उनकी जगह पर कलम लगाये गये और जैतून के रस के भागीदार बने, तो आप अपने को डालियों से बढ़ कर न समझें।"

(रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 11:17)

इसी सन्दर्भ में हमें योहन 15:1-8 को पढ़ने की जरुरत है।

प्रभु येसु कहते हैं, "मैं दाखलता हूँ और तुम डालियाँ हो। जो मुझ में रहता है और मैं जिसमें रहता हूँ वही फलता है क्योंकि मुझ से अलग रहकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते।"

(सन्त योहन का सुसमाचार 15:5)

प्रभु येसु की डाली बनना मानव कार्य नहीं है और यह अपने आप होता भी नहीं है।

तो हमें यह बात स्पष्ट है कि ख्रीस्तीय होने का अर्थ प्रभु येसु के साथ कलम लगाए जाकर उनके अतिपवित्र शरीर और रक्त से पोषित किया जाना है।

प्रभु येसु के साथ एक कर देने के कारण हम ईश्वर की संतान बन जाते हैं।

इसी सन्दर्भ में हमें 'गलातियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 4:6-7' को पढ़ने की जरुरत है।

"आप लोग पुत्र ही हैं। इसका प्रमाण यह है कि ईश्वर ने हमारे हृदयों में अपने पुत्र का

आत्मा भेजा है, जो यह पुकार कर कहता है -"अब्बा! पिता!" इसलिए अब आप दास नहीं, पुत्र हैं और पुत्र होने के नाते आप ईश्वर की कृपा से विरासत के अधिकारी भी हैं। इसलिए अब आप दास नहीं, पुत्र हैं और पुत्र होने के नाते आप ईश्वर की कृपा से रासत

के अधिकारी भी हैं।"

बपतिस्मा और अन्य संस्कारों के द्वारा हर ख्रीस्तीय प्रभु येसु ख्रीस्त के सामान बना दिया जाता है। इस रहस्य को समझते हुए संत पौलुस कहते हैं,

"क्योंकि ईश्वर ने निश्चित किया कि जिन्हें उसने पहले से अपना समझा, वे उसके पुत्र के प्रतिरूप बनाये जायेंगे, जिससे उसका पुत्र इस प्रकार बहुत-से भाइयों का पहलौठा हो।" (रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 8:29)

इसलिए हमें धन्य कुँवारी मरियम को हमारे ख्रीस्तीय जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान देने की जरुरत है।

--- Send in a voice message: https://podcasters.spotify.com/pod/show/greatergloryofgod/message
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माँ मरियम के बिना क्या ख्रीस्तीय जीवन संभव है?

इस सवाल को थोड़ा बदलकर भी पूछ लें - माँ मरियम के बिना क्या प्रभु येसु का जीवन संभव था?

जरूर ईश्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। लेकिन ईश्वर के पुत्र के शरीरधारण और मानव रूप में उनके जीवन को देखें तो बिना धन्य कुँवारी मरियम का वे अनाथ होते !

आपका क्या विचार है?

यदि माँ मरियम प्रभु के जन्म के कुछ ही दिनों या सालों के अंदर मर गयी होती, तो प्रभु का जीवन कैसे रहा होता?

अब हम प्रभु के जगह पर अपने आपको रखें !

क्या माँ मरियम के बिना ख्रीस्तीय जीवन संभव है?

इस सवाल का जवाब देने से पहले हमें दो शब्दों का अर्थ जानना है।

1. ख्रीस्तीय

2. कलीसिया

1. ख्रीस्तीय

ख्रीस्तीय कौन है?

ख्रीस्तीय वह नहीं जो -

* हर दिन पवित्र बाइबिल पढता है।

* वचन पर आधारित जीवन जीता है।

* अच्छा नैतिक जीवन जीता है।

ये सब जरुरी है, लेकिन पर्याप्त नहीं।

ईश्वर का एक निर्णायक कार्य होना अनिवार्य है। कौनसा है वह कार्य जिसके बिना कोई भी ख्रीस्तीय नहीं हो सकता?

वह निर्णायक कार्य है बपतिस्मा संस्कार !

बपतिस्मा संस्कार के द्वारा एक व्यक्ति प्रभु येसु के साथ एक कर दिया जाता है। संत पौलुस इस कार्य को "कलम करना" कहते हैं।

"यदि कुछ डालियाँ तोड़ कर अलग कर दी गयी हैं और आप, जो जंगली जैतून है, उनकी जगह पर कलम लगाये गये और जैतून के रस के भागीदार बने, तो आप अपने को डालियों से बढ़ कर न समझें।"

(रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 11:17)

इसी सन्दर्भ में हमें योहन 15:1-8 को पढ़ने की जरुरत है।

प्रभु येसु कहते हैं, "मैं दाखलता हूँ और तुम डालियाँ हो। जो मुझ में रहता है और मैं जिसमें रहता हूँ वही फलता है क्योंकि मुझ से अलग रहकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते।"

(सन्त योहन का सुसमाचार 15:5)

प्रभु येसु की डाली बनना मानव कार्य नहीं है और यह अपने आप होता भी नहीं है।

तो हमें यह बात स्पष्ट है कि ख्रीस्तीय होने का अर्थ प्रभु येसु के साथ कलम लगाए जाकर उनके अतिपवित्र शरीर और रक्त से पोषित किया जाना है।

प्रभु येसु के साथ एक कर देने के कारण हम ईश्वर की संतान बन जाते हैं।

इसी सन्दर्भ में हमें 'गलातियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 4:6-7' को पढ़ने की जरुरत है।

"आप लोग पुत्र ही हैं। इसका प्रमाण यह है कि ईश्वर ने हमारे हृदयों में अपने पुत्र का

आत्मा भेजा है, जो यह पुकार कर कहता है -"अब्बा! पिता!" इसलिए अब आप दास नहीं, पुत्र हैं और पुत्र होने के नाते आप ईश्वर की कृपा से विरासत के अधिकारी भी हैं। इसलिए अब आप दास नहीं, पुत्र हैं और पुत्र होने के नाते आप ईश्वर की कृपा से रासत

के अधिकारी भी हैं।"

बपतिस्मा और अन्य संस्कारों के द्वारा हर ख्रीस्तीय प्रभु येसु ख्रीस्त के सामान बना दिया जाता है। इस रहस्य को समझते हुए संत पौलुस कहते हैं,

"क्योंकि ईश्वर ने निश्चित किया कि जिन्हें उसने पहले से अपना समझा, वे उसके पुत्र के प्रतिरूप बनाये जायेंगे, जिससे उसका पुत्र इस प्रकार बहुत-से भाइयों का पहलौठा हो।" (रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 8:29)

इसलिए हमें धन्य कुँवारी मरियम को हमारे ख्रीस्तीय जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान देने की जरुरत है।

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