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Velankanni Mother Mary Novena in Hindi | DAY 04 का विषय- " धन्य कुँवारी मरियम : ईश्वर की माँ"

32:37
 
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माँ मरियम के जन्मोत्सव की तैयारी के चौथे दिन हमारे मनन चिंतन के लिए लिया हुआ विषय - "धन्य कुँवारी मरियम : ईश्वर की माँ"

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इन दोनों में कौनसा सही है?

धन्य कुँवारी मरियम ईश्वर की माँ या धन्य कुँवारी मरियम ईसा / येसु की माँ?

ज्यादा लोग "धन्य कुँवारी मरियम ईसा / येसु की माँ" का प्रयोग करना पसंत करते हैं। और कुछ लोग धन्य कुँवारी मरियम को यह नहीं मानते हैं वे "ईश्वर की माँ" हैं।

आपका क्या विचार है?

धन्य कुँवारी मरियम ईसा / येसु की माँ कहना गलत नहीं है; पर 'धन्य कुँवारी मरियम ईश्वर की माँ' नहीं कहना प्रभु येसु का ईश्वर होने की सच्चाई को ठुकराना होता है।

यदि हम कहें कि धन्य कुँवारी मरियम ईश्वर की माँ नहीं हैं, तो हम यह कह रहे हैं कि प्रभु येसु ईश्वर नहीं है।

धन्य कुँवारी मरियम को ईश्वर की माँ कहना मरियम को अनुचित रीती से ऊँचा उठाना नहीं है; पर प्रभु येसु की वास्तविकता को स्वीकार करना होता है।

प्रारंभिक कलीसिया में प्रभ येसु के बारे में और उनके व्यकित के बारे में बहुत सारी गलत धारणाएँ रहीं। समय समय पर महासभाओं के द्वारा कलीसिया इनको दूर करती आयी और सही शिक्षा देती थी। इफिसुस की महासभा (COUNCIL OF EPHESUS) जो 431 ई. में बुलाई गयी थी इस Dogma की घोषणा की कि "धन्य कुँवारी मरियम ईश्वर की माँ हैं"।

यह धन्य कुँवारी मरियम के बारे में नहीं बल्कि प्रभु येसु के बारे में है।

पवित्र बाइबिल में एक भी जगह पर प्रभु येसु का अपनी माँ, धन्य कुँवारी मरियम को "माँ" कहकर बुलाने का वर्णन नहीं है।

लेकिन संत योहन अपने सुसमाचार में दो घटनावों का वर्णन करते हैं जहाँ प्रभु अपनी माँ को "भद्रे!" कहकर सम्बोधित करते हैं। एक घटना प्रभु के मिशन कार्य के प्रारम्भ में और दूसरी उनके मिशन कार्य के अंत में।

लेकिन संत योहन क्यों जान - बूझकर इसका वर्णन करते हैं?

यह इसलिए है क्योंकि संत योहन अपने सुसमाचार को नई सृष्टि के रूप में प्रस्तुत करते हैं। इसलिए स्वर्ग से शुरू करते हैं।

"आदि में शब्द था, शब्द ईश्वर के साथ था और शब्द ईश्वर था।" इन्हीं शब्दों से संत योहन अपना सुसमाचार शुरू करते हैं। इस सन्दर्भ में हमें उत्पत्ति ग्रन्थ की भी शुरुआत को पढ़ने की जरुरत है। "प्रारंभ में ईश्वर ने स्वर्ग और पृथ्वी की सृष्टि की।" (उत्पत्ति ग्रन्थ 1:1)

योहन रचित सुसमाचार में भी विवाह का वर्णन है, आदम और हेवा का भी और पतन के जगह पर मुक्ति और छुटकारे का।

इस सन्दर्भ में जब हम योहन रचित सुसमाचार पढ़ेंगे तो हमें "भद्रे!" शब्द का अर्थ समझ पाएंगे और हम इसके लिए ईश्वर को धन्यवाद देंगे और धन्य कुँवारी मरियम को उचित महत्व देंगे।

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धन्य कुँवारी मरियम ईश्वर की माँ या धन्य कुँवारी मरियम ईसा / येसु की माँ?

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आपका क्या विचार है?

धन्य कुँवारी मरियम ईसा / येसु की माँ कहना गलत नहीं है; पर 'धन्य कुँवारी मरियम ईश्वर की माँ' नहीं कहना प्रभु येसु का ईश्वर होने की सच्चाई को ठुकराना होता है।

यदि हम कहें कि धन्य कुँवारी मरियम ईश्वर की माँ नहीं हैं, तो हम यह कह रहे हैं कि प्रभु येसु ईश्वर नहीं है।

धन्य कुँवारी मरियम को ईश्वर की माँ कहना मरियम को अनुचित रीती से ऊँचा उठाना नहीं है; पर प्रभु येसु की वास्तविकता को स्वीकार करना होता है।

प्रारंभिक कलीसिया में प्रभ येसु के बारे में और उनके व्यकित के बारे में बहुत सारी गलत धारणाएँ रहीं। समय समय पर महासभाओं के द्वारा कलीसिया इनको दूर करती आयी और सही शिक्षा देती थी। इफिसुस की महासभा (COUNCIL OF EPHESUS) जो 431 ई. में बुलाई गयी थी इस Dogma की घोषणा की कि "धन्य कुँवारी मरियम ईश्वर की माँ हैं"।

यह धन्य कुँवारी मरियम के बारे में नहीं बल्कि प्रभु येसु के बारे में है।

पवित्र बाइबिल में एक भी जगह पर प्रभु येसु का अपनी माँ, धन्य कुँवारी मरियम को "माँ" कहकर बुलाने का वर्णन नहीं है।

लेकिन संत योहन अपने सुसमाचार में दो घटनावों का वर्णन करते हैं जहाँ प्रभु अपनी माँ को "भद्रे!" कहकर सम्बोधित करते हैं। एक घटना प्रभु के मिशन कार्य के प्रारम्भ में और दूसरी उनके मिशन कार्य के अंत में।

लेकिन संत योहन क्यों जान - बूझकर इसका वर्णन करते हैं?

यह इसलिए है क्योंकि संत योहन अपने सुसमाचार को नई सृष्टि के रूप में प्रस्तुत करते हैं। इसलिए स्वर्ग से शुरू करते हैं।

"आदि में शब्द था, शब्द ईश्वर के साथ था और शब्द ईश्वर था।" इन्हीं शब्दों से संत योहन अपना सुसमाचार शुरू करते हैं। इस सन्दर्भ में हमें उत्पत्ति ग्रन्थ की भी शुरुआत को पढ़ने की जरुरत है। "प्रारंभ में ईश्वर ने स्वर्ग और पृथ्वी की सृष्टि की।" (उत्पत्ति ग्रन्थ 1:1)

योहन रचित सुसमाचार में भी विवाह का वर्णन है, आदम और हेवा का भी और पतन के जगह पर मुक्ति और छुटकारे का।

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